कोलकाता : प्रदोष तिथि का व्रत हर माह की शुक्ल व कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है, इस बार यह शुभ तिथि 17 अप्रैल दिन सोमवार को है। सोमवार भगवान शिव का प्रिय दिन है, इसलिए प्रदोष तिथि का महत्व काफी बढ़ गया है। सभी प्रदोष व्रत में सोम प्रदोष व्रत का काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि सोम प्रदोष व्रत सर्व सुख प्रदान करता है और व्यक्ति को जन्म व मरण के बंधन से मुक्त करता है। जिस तरह एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है, उसी तरह त्रयोदशी तिथि भगवान शिव को समर्पित है। लेकिन इस बार सोम प्रदोष तिथि पर पूरे दिन पंचक काल रहेगा। ऐसे में आइए जानते हैं किस तरह भगवान शिव की पूजा करें और प्रदोष तिथि का महत्व क्या है…
मनोकामना पूरी करता है सोम प्रदोष व्रत
त्रयोदशी तिथि की व्रत की पूजा प्रदोष काल में की जाती है इसलिए इसे प्रदोष व्रत कहा जाता है। इस दिन विधिवत भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से मोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। सोमवार के दिन प्रदोष तिथि आने से उस तिथि को सोम प्रदोष व्रत कहा जाता है और अगर मंगलवार के दिन प्रदोष तिथि है तो उसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाता है। मान्यता है कि संतान प्राप्ति और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए सोम प्रदोष तिथि का व्रत करना चाहिए। पौराणिक मान्यताओं में बताया गया है कि प्रदोष तिथि में भगवान शिव कैलाश पर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं और उस समय सभी देवी देवता उनकी स्तुति करते हैं।
सोम प्रदोष व्रत का महत्व
सोम प्रदोष व्रत की पूजा से कुंडली में चंद्रमा समेत भी सभी ग्रह नक्षत्र शुभ प्रभाव देते हैं और इस व्रत के शुभ प्रभाव से सभी तरह की अड़चन दूर होती हैं और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यता है कि सोम प्रदोष व्रत की कथा सुनने मात्र से गौ दान के बराबर पुण्य मिलता है। दिन और रात्रि के मिलन को प्रदोष काल कहा जाता है अर्थात सूर्यास्त हो रहा है और रात्रि शुरू हो रही हो, उस काल को प्रदोष काल कहा जाता है। इसी समय भगवान शिव की पूजा करने से अमोघ फल की प्राप्ति होती है और हर दोष दूर हो जाता है।
सोम प्रदोष व्रत पूजा शुभ योग और मुहूर्त
सोम प्रदोष व्रत – 17 अप्रैल 2023 दिन सोमवार
प्रदोष तिथि प्रारंभ – 17 अप्रैल, दोपहर 3 बजकर 46 मिनट से
प्रदोष तिथि समापन- 18 अप्रैल, दोपहर 1 बजकर 27 मिनट तक
प्रदोष व्रत पूजा शुभ मुहूर्त – 17 अप्रैल 5 बजकर 45 मिनट से 7 बजकर 20 मिनट तक
सोम प्रदोष व्रत के दिन ऐन्द्र और ब्रह्म योग बन रहा है, जो बहुत ही फलकारी योग है। साथ ही पूरे दिन पंचक काल का साया रहेगा लेकिन भगवान शिव की पूजा में यह बाधक नहीं होता है। भगवान शिव सभी ग्रह-नक्षत्र और काल के स्वामी हैं इसलिए महादेव को महाकाल भी कहा जाता है।
सोम प्रदोष व्रत पूजा विधि
Monday Puja : सोम प्रदोष व्रत पर पंचक का साया, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व
सोम प्रदोष तिथि के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर हाथ में थोड़े चावल लें। इसके बाद ‘अहमद्य महादेवस्य कृपाप्राप्त्यै सोमप्रदोषव्रतं करिष्ये’ यह कहकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद पास के किसी शिव मंदिर में जायें और शिवलिंग पर बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल, जल, फूल, मिठाई आदि से विधि-विधान के साथ पूजन करें।शिवलिंग की पूजा के बाद पूरे दिन उपवास रखें और दान करें। प्रदोष तिथि पर हमेशा अपने मन में ‘ओम नमः: शिवाय’ का जप करते रहें। साथ ही आप रुद्राक्ष की माला से महामृत्युंजय मंत्र का जप भी कर सकते हैं।
त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष काल में यानी सूर्यास्त से तीन घड़ी पहले, महादेव की पूजा की जाती है। सोम प्रदोष व्रत की पूजा विधि विधान के साथ पंचामृत से शिवलिंग का अभिषेक करें और सभी पूजा की चीजें अर्पित करें। पूजा करने के बाद शिव चालीसा का पाठ करें और शिव मंत्रों का जप करें। इसके बाद अन्न-जल ग्रहण कर सकते हैं।
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