‘अंधेरे में अपनों को तलाशता रहा कोई तो किसी ने नींद खुलते देखा मौत का मंजर’

  •   जैसा आंख खुली देखा पूरे डिब्बे में तितर-बितर पड़े थे लोग
  • भयानक मंजर को याद करते हुए सहम जा रहे हैं यात्री
  • शवों को देख ऐसा लग रहा था मानो जाल में मछलियां पड़ी हुई हैं

सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : ‘मैं जनरल डिब्बे के नंबर वन बोगी में नीचे लेटा था, आंख अभी लगी ही थी कि अचानक झटका लगा, आंख खुली तो मेरे ऊपर कम से कम 15 लोग आ गिरे। किसी तरह जान बचाकर बाहर निकला, तो देखा कि कई सारे लोग तितर-बितर बिखरे पड़े हैं। सभी बिलख रहे थे और जान बचाने की गुहार लगा रहे थे। मेरे बगल में बैठी लगभग 13 वर्षीया बच्ची का चेहरा बुरी तरह बिगड़ चुका था, मैंने उसे बचाना चाहा लेकिन मेरे हाथ में तेज दर्द हो रहा था। बाहर निकलने की कोशिश की तो देखा कि मेरे डिब्बे से सटा डिब्बा ट्रेन से बाहर निकल चुका था,’ इतना कहते ही असम निवासी राजीव दास बिलखने लगा। वह अपने दोस्त गणेश के साथ बंगलुरु में बर्गर बनाने का काम करता था। दोनों दोस्तों को हावड़ा के आर्थोपेडिक अस्पताल में ले जाया गया। ओडिशा के बालासोर में हुए वीभत्स ट्रेन हादसे को याद करके यात्री सहम जा रहे हैं। हावड़ा स्टेशन पर जब शनिवार की दोपहर डेढ़ बजे हावड़ा एसएमवीटी बंगलुरु सुपरफास्ट एक्सप्रेस पहुंची तो लोगों ने अपनी आपबीती सुनाई।
गणेश ने कहा कि जैसे-तैसे बाहर निकले तो हमने लोगों से मदद की गुहार लगायी लेकिन वहां का नजारा देख हम सहम गये। जनरल बोगी होने के कारण ट्रेन में पहले से ही खचाखच भीड़ थी। पहले तो हमें एक झटका महसूस हुआ और लगा कि गाड़ी चलते-चलते शायद पटरी से उतर गयी है। स्थिति सामान्य होगी, लेकिन पलक झपकते ही गाड़ी पलट गई। मेरे ऊपर सीट टूट के गिर गयी। मैं अपने दोस्त को ढूंढने लगा तो देखा कि वह कुछ लोगों के नीचे दबा हुआ है। मैंने उसे आवाज देने की कोशिश की लेकिन उस रोते-बिलखते लोगों की आवाज के बीच मेरी आवाज दब गई।
डेढ घंटे बाद मिली पति और दोनों बेटों की खबर
हावड़ा स्टेशन पर रोती-बिलखती हुईं जोल्हा बीबी अपनी आपबीती सुनाते हुए बेसुध हो रही थीं। जोल्हा ने कहा कि जब दुर्घटना हुई तो मैैं अपने दोनों बेटों और पति को ढूंढ़ने लगी। मुझे कोई नहीं दिख रहा था। मेरे पैरों में चोट लगी थी। मैं किसी भी तरह बाहर निकली और अपने परिवार को तलाशने में जुट गई। मुझे दूर-दूर तक बस शव पड़े हुए दिख रहे थे। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैं उसी अंधेरे में अपनों के टुकड़े तलाश रही थी। मेरी हालत बहुत खराब थी। लगभग डेढ़-दो घंटों तक अपनों को ढूंढ़ते-ढूंढ़ते मैं थक गई। मुझे लगा मेरा सब कुछ उजड़ गया, लेकिन अंत में ईश्वर ने अपनी कृपा बरसायी और मेरे पति और दोनों बेटे मेरी आंखों के सामने सही सलामत नजर आये। मैं ईश्वर के प्रति अपने परिवार को मिले इस जीवनदान के लिये हमेशा शुक्रगुजार रहूंगी।
मानो मिल गया नया जीवन
वहीं, हादसे में बाल-बाल बचे बिहार के एक परिवार ने कहा, हम अपने बच्चे की जान बचाने बंगलुरु गये थे, लेकिन कल शाम ऐसी दुर्घटना घटी जिससे हमें लगा मानो हमसे सब कुछ छिन गया हो। पीड़िता अंशु देवी ने कहा ‘ जब हादसा हुआ, हम कुछ भी समझ नहीं पा रहे थे। सब कुछ एकाएक हुआ। हम एस 1 बोगी में सवार थे। पता नहीं हम कैसे बच गए। यह हमारे लिए दूसरी जिंदगी की तरह है। मैं यह दृश्य जिंदगी भर नहीं भूलूंगी। मेरे 9 साल के बेटे क्वार्टली बाबू को दिल की समस्या है। रात भर वह दर्द से करहाता रहा। हम कैसे भी अपने घर बिहार लौटना चाहते हैं।’
बिलखता रहा 5 माह का बच्चा
भुवनेश्वर से हावड़ा के जगतबल्लभपुर जाने वाली महिला पूरोबी साहा जब हावड़ा स्टेशन पर पहुंची तो उसने कहा कि मैं अपनी बेटी के साथ अपने घर लौट रही थी। मेरी बेटी का 5 माह का बेटा है जो रात भर रोता रहा और दूध के लिये परेशान रहा। हमने लोगों से मदद की गुहार लगाई लेकिन किसी ने भी मदद का हाथ नहीं बढ़ाया। रात भर हमें काफी परेशानी हुई। रात में लगभग डेढ़ बजे हमें ट्रेन में बिठाया गया लेकिन खाने का कोई खास इंतजाम नहीं था। यह दर्दनाक रात मेरे लिये भूलना असंभव है।
बाहर पड़े थे 200 से भी अधिक शव
जो कोच छिटक कर बाहर निकल गया था मैं उसके बगल वाले कोच में सवार था। मुझे खास चोट नहीं आयी है। यात्री रक्तिफ मंडल ने बताया मैंने डिब्बे को धुएं से भरते देखा। इसके बाद मैं किसी को नहीं देख सका। स्थानीय लोग मेरी सहायता के लिए आए और उन्होंने मुझे बाहर निकाला। मैंने बाहर शवों को देखातो लगा मानो जाल में मछलियां पड़ी हुई हैं।इस दृश्य ने मुझे अंदर से झकझोर कर रख दिया है।

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