Hanuman Janmotsav 2024 : हनुमानजी के रोम-रोम में बसे हैं श्रीरामजी

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भक्ति और समर्पण आपस में गुथे हुवे हैं, जैसे बँधे हुवे माला में धागा व फूल। जैसा हम सभी जानते हैं कि भगवान हनुमानजी, प्रभु श्रीरामजी के प्रति पूर्णरूपेण समर्पित थे। यहाँ आप यह भी जान लें कि हनुमानजी महाराज स्वयं शिव के ही अवतार थे। श्रीमद्भागवत में हनुमानजी को परम-भागवत अर्थात सर्वश्रेष्ठ भक्त उल्लेख किया गया है,जिसके अनेक कारण हैं।अब आप सभी के ध्याननार्थ, उन्हीं अनेक कारणों में से एक प्रमुख कारण का उल्लेख करना चाहूँगा ,जो इस प्रकार है –

भगवान हनुमानजी ने एक बार प्रभु से अनपायनी भक्ति अर्थात ऐसी भक्ति जो कभी हमसे दूर न हो, उसका कभी ह्रास न हो और वह दिन-दूनी, रात-चौगुनी आपके चरणों में बढ़ती जाये, का वर प्रदान करने का निवेदन किया था। यथा:

चौ॰-नाथ भगति अति सुखदायनी। देहु कृपा करि अनपायनी॥

सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी। एवमस्तु तब कहेउ भवानी॥श्रीरामचरितमानस ५.३४.१॥

‘अनपायनी भक्ति के वर प्रदान’ पर प्रभु शिवजी, माता पार्वती जी को बताते हैं कि उनकी [हनुमानजी की] अत्यन्त सरल वाणी सुनकर, हे भवानी ! प्रभु श्री रामचन्द्रजी ने ‘एवमस्तु'(ऐसा ही हो) कहा। लेकिन इस वरदान को प्राप्त करने के पहले ही, उन्हें माता सीताजी से एक अनुपम वरदान प्राप्त हुआ था। यथा:

अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू॥श्रीरामचरितमानस ५.१७.२॥

भावार्थ :-हे पुत्र ! तुम अजर अर्थात जरावस्था (बुढ़ापा) से मुक्त रहकर सदैव युवा रहोगे, मृत्यु के कालपाश भी तुम्हे बांध न सकेंगे अर्थात तुम अमर रहोगे, साथ ही रघुकुल के श्रेष्ठ नायक श्रीरामजी की तुम पर अपार कृपा बनी रहेगी।

हनुमानजी सब समय, हर हालात में प्रभु श्रीरामजी का स्मरण करते ही रहते हैं और उपरोक्त दोनों वरदान प्राप्त कर, हनुमानजी ने प्रभु श्रीरामजी को अपने रोम-रोम में बसा ही नहीं लिया, बल्कि वे हर उसी वस्तु को अपने पास रखते हैं जिसमें प्रभु का वास हो अर्थात विद्दमान हो। इसी से सम्बन्धित एक दृष्टांत है। जो संक्षेप में इस प्रकार है –

अयोध्या लौटने के पश्चात प्रभु श्रीरामजी का राज्याभिषेक हुआ। उस अवसर पर सभी को तरह तरह के उपहार बांटे गये। माता सीताजी ने हनुमानजी को एक अनमोल मोतियों का हार दिया। लेकिन उसे ग्रहण करने के पश्चात, वे उस हार के हर मोती का परिक्षण करने लगे। मोतियों को अपने से दूर करते गए। यह देख उनसे पूछा गया, तब हनुमान जी ने कहा कि मैं इन मोतियों में अपने प्रभु राम को ढूंढ रहा हूं।हनुमान जी ने कहा ‘जिसमें मेरे प्रभुराम ही नहीं, वह मेरे किसी काम की नहीं’। इनके इस तरह के उत्तर पर, जब उनसे विभीषणजी ने पूछा, अगर हमारे शरीर में भगवान नहीं है तो शरीर भी बेकार है क्या ?

प्रत्युत्तर में हनुमानजी ने जबाब दिया- हां लंकेश्वर। उन्होंने अपने इस कथन की पुष्टि के लिये, उपस्थित सभी सभासदों को, अपने सीने को चीर, उसमें प्रभु श्रीरामजी का दर्शन करवाया।

इस तरह, भगवान हनुमानजी ने हम सभी को स्पष्ट सन्देश दिया है कि आप भी यह सारी शक्तियाँ, हर हालात व समय में, प्रभु श्रीरामजी के प्रति पूर्णरूपेण समर्पित हो, राम नाम जप कर, आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।

इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुवे, सन्त शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी ने तो यहाँ तक स्पष्ट किया कि, जो वरदान देते हैं वह स्वयं राम नाम से वर प्राप्त करते हैं। जैसा हम सभी जानते हैं कि मुख्य वरदाता तीन हैं – ब्रह्मा, विष्णु और महेश और जैसा सन्त शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी ने बताया यानी ये तीनों रामनाम जप कर ही सिद्ध हुए हैं।

हम सब भी, भगवान हनुमानजी का अनुसरण कर, बिना समय गवायें, अपना जीवन सफल बनाने की चेष्टा में लग जाएं।

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