हावड़ा में डीएनए टेस्ट की मदद से की गयी शव की पहचान

सिटी पुलिस ने कोर्ट व डीएनए रिपोर्ट के जरिये परिजन को सौंपा शव
परिवार व लोगों ने पुलिस की भूमिका की सराहना
24 सितम्बर को स्वीमिंग प्रैक्टिस करने में बह गये थे दो दोस्त
जगन्नाथ घाट में मिला था एक दोस्त का शव, दूसरा था लापता
सन्मार्ग संवाददाता
हावड़ा : हावड़ा के बेलूड़ के जगन्नाथ घाट पर गत 24 सितम्बर को डूबे दो युवकों के शवों में से नहीं मिले एक शव को आखिरकार ढूंढ निकाला गया। उन्हें उनके अभिभावकों को सौंपा गया, परंतु यह इतना आसान नहीं था। इसके लिए हावड़ा में पहली बार कोर्ट के आदेश के बाद डीएनए टेस्ट कराकर शव की पहचान की गयी और पुरानी गुत्थी को सुलझा लिया गया। इसके लिए मृत युवक के परिवार ने हावड़ा के पुलिस कमिश्नर प्रवीण ​त्रिपाठी समेत सभी काे धन्यवाद दिया।
क्या था मामला : दरअसल गत 24 सितम्बर को शनिवार की सुबह बेलूड़ के जगन्नाथ घाट पर एक डॉक्टर साैरभ साहा राय का शव बरामद किया गया था, परंतु उसके दोस्त रोहन कुमार की कोई जानकारी नहीं थी। पुलिस ने जब पता लगाया तो यह जानकारी मिली कि डॉक्टर व उनका दोस्त गंगा में स्वीमिंग प्रैक्टिस करने के लिए आये थे। इसके बाद उनमें से एक का शव बरामद किया गया। उसके साथ ही एक स्कूटी व कपड़े भी मिले थे। सौरभ की तो बॉडी मिली थी लेकिन उसका दोस्त रोहन का पता नहीं चल पाया था। हालांकि उस दौरान रिवर ट्रैफिक पुलिस व गोताखोर उसकी तलाश में जुटे थे मगर सफलता नहीं मिली थी।
डीएनए टेस्ट कराकर की गयी पहचान : इस बारे में सीपी प्रवीण त्रिपाठी के नेतृत्व में पुलिस की ओर से हावड़ा समेत कोलकाता के विभिन्न थानों को रोहन की जानकारी दे दी गयी थी। इसके बाद 3 से 4 दिन बाद बाबूघाट से एक डिकंपोज्ड बॉडी मिली, जिसे पहचान पाना मुश्किल था। पुलिस की ओर से रोहन के परिवार को जानकारी दी गयी। फिर भी वे नहीं पहचान पा रहे थे। तभी सीपी के नेतृत्व में कोर्ट से एक ऑर्डर लिया गया जो कि हावड़ा में पहली बार था कि डीएनए टेस्ट के जरिये शव की पहचान की जाये। इसलिए शव के दांत और मृतक के भाई रौनक के सैंपल लेकर ट्रूथ लैब में डॉ. डी. के. सेनगुप्ता से टेस्ट कराया गया। जो कि फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी वेस्ट बंगाल के फार्मर डायरेक्टर रह चुके हैं। आखिरकार उसकी पहचान हो गयी। अंत में रोहन के परिवार को उसका शव सौंप दिया गया। इसके बाद रोहन के परिवार ने सीपी समेत पुलिस को उनके बेहतरीन कार्य के लिए धन्यवाद दिया। साथ ही इस मामले को सुलझाकर खुश प्रवीण त्रिपाठी का भी कहना है कि वे इस मामले को सुलझाकर संतुष्ट हैं क्योंकि कई बार ऐसे में मामले अधर में रह जाते हैं। कई शवों की पहचान नहीं होती तो कई परिवारों को उनके डूबे हुए परिजनों का सालों तक पता हीं नहीं चल पाता है। ऐसे होनी को तो कोई नहीं रोक सकता है लेकिन परिवार द्वारा शव के अंतिम संस्कार से उन्हें मन की शांति मिली है।

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