सिर्फ Kolkata की Biryani में ही क्यों डाला जाता है आलू?

सिर्फ Kolkata की Biryani में ही क्यों डाला जाता है आलू?
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कोलकाता : भारतीय व्यंजनों में बिरयानी का अलग ही स्वैग होता है। चाहे अवध की बिरयानी हो या हैदराबादी दम बिरयानी…शायद ही ऐसा कोई होगा जो इस लजीज व्यंजन का दीवाना ना हो। जिस तरह कोस-कोस पर भारत में बोलियां बदलती रहती हैं उसी तरह देश के हर प्रांत में बिरयानी का जायका भी बदलता रहता है। लेकिन इन सबमें सबसे अलग होती है कोलकाता की बिरयानी। अब आप सोच रहे होंगे कि बिरयानी तो बिरयानी है, उसमें अलग क्या होता होगा? जी नहीं जनाब, कोलकाता की बिरयानी में वह चीज डाली जाती है जो देश के किसी भी इलाके की बिरयानी में नहीं डलती। और वह है आलू। जी हां, कोलकाता में आलू के बिना बिरयानी का स्वाद अधुरा माना जाता है। लेकिन एक मुगलई व्यंजन में आखिर यह ट्विस्ट आया कैसे?

आलू डालने का होता है अलग अंदाज

जिस तरह बिरयानी को पकाने का खास अंदाज होता है, ठीक उसी तरह कोलकाता में बिरयानी में आलू को डालने का अंदाज भी अलग होता है। ऐसा नहीं है कि बस यूं ही आलू को छिला और दम लगाती बिरयानी में डाल दिया गया। बड़े आकार के आलूओं को छिलने के बाद पहले उसके बीच में एक छेद बनाया जाता है। इसके बाद साबुत ही आलूओं को घी में तेज आंच पर सुनहरे रंग का होने तक तला जाता है। तल लेने के बाद आलूओं को उबलते पानी में कुछ देर के लिए डाला जाता है। इससे आलू आधा पक जाते हैं। अब बारी आती है इन्हें बिरयानी में शामिल करने की। जब बिरयानी को दम लगाने के लिए बंद किया जा रहा होता है, उसी समय आलूओं को भी चावल के अंदर डाल कर ऊपर से और चावल डाल दिया जाता है। इससे चावल के साथ ये पक भी जाएंगे और बिरयानी के मसाले इनका स्वाद भी बढ़ा देंगे।

क्यों डाला जाता है आलू?

आखिर में सवाल उठता है कि आखिर बिरयानी में आलू डालने की क्या जरूरत आ गयी? इसका कारण ब्रिटिशकालिन भारत है। इस कहानी की शुरुआत तब होती है जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने सभी नवाबों को धीरे-धीरे उनकी रियासतों से बाहर करना शुरू कर दिया था। उसी क्रम में अवध के नवाब वाजिद अली शाह को भी भी बेदखल कर दिया गया और वह कोलकाता (तत्कालिन कलकत्ता) चले गये। उनके साथ 7 हजार लोग भी कलकत्ता आ गये और अंग्रेजी सरकार उन्हें सिर्फ 1 लाख रुपये प्रतिमाह देती थी। एक कहानी के अनुसार इतने सारे लोगों का खाना मात्र 1 लाख रुपये में बनाना मुश्किल हो रहा था। इसलिए अन्य चीजों के बजाए बिरयानी में आलू डालकर किफायती व्यंजन बनाया जाने लगा ताकि सभी लोगों का पेट भरा जा सके। दूसरी कहानी के अनुसार अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह जब 1856 में अवध से निष्काशित होकर कोलकाता आए तब उनके साथ कई रसोईए भी थे जो अवधी बिरयानी बनाने में पारंगत थे। नवाब के पास उस समय ज्यादा रुपये नहीं थे, इसलिए उनके रसोईए हमेशा बिरयानी में डालने के लिए कुछ सस्ते सामान ढूंढा करते थे। इधर यहीं वह समय था जब अंग्रेज बंगाल में चावल के स्थान पर आलू की पैदावार बढ़ाने पर जोर दिया करते थे। उस समय नवाब के रसोईयों ने बिरयानी में आलू डालना शुरू कर दिया। वजह चाहे जो भी रही हो, लेकिन कोलकाता और यहां के लोग आलू के बिना बिरयानी की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।

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