कोलकाता: हिंदू पंचांग की ग्यारहवी तिथि को एकादशी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है यानी महीने में दो बार एकादशी व्रत रखा जाता है। एक एकादशी पूर्णिमा के बाद आती है जिसे कृष्ण पक्ष की एकादशी के नाम से जाना जाता है तो वहीं दूसरी एकादशी अमावस्या के बाद आती है जिसे शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं। इन दोनो प्रकार की एकादशियों के व्रत का भारतीय सनातन संप्रदाय में बहुत महत्त्व है।
चार शुभ संयोग-
परिवर्तिनी एकादशी पर चार शुभ योग बन रहे हैं। जिसके कारण एकादशी तिथि का महत्व और बढ़ रहा है। इस दिन आयुष्मान, मित्र और रवि योग का शुभ संयोग बन रहा है। सूर्य, बुध,गुरु और शनि चार ग्रहों का स्वराशि में होना एकादशी का व्रत पुण्य लाभ दिलाने वाला होगा।
इस दिन श्रीहरि बदलते हैं करवट-
धार्मिक मान्यता के अनुसार, चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु पाताल लोक में योगनिद्रा में रहते हैं। भाद्रपद महीने की एकादशी को विष्णु जी करवट बदलते हैं। इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं।
शुभ मुहूर्त-
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 06 सितंबर मगंलवार को सुबह 05 बजकर 54 मिनट पर होगी, जो कि 07 सितंबर को सुबह 03 बजकर 04 मिनट पर समाप्त होगी। एकादशी व्रत का पारण 07 सितंबर को सुबह 08 बजकर 33 मिनट से करना शुभ रहेगा।
व्रत पूजा व विधि-
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।
अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
भगवान की आरती करें।
भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।
इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।
इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।