राहुल गांधी ने बचपन में घर छोड़ने का किस्सा बताया तो भावुक हुईं सोनिया

रायपुर : छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में चल रहे कांग्रेस के 85वें अधिवेशन के तीसरे और आखिरी दिन राहुल गांधी ने भाषण दी। राहुल ने भाषण की शुरुआत भारत जोड़ो यात्रा के अपने अनुभवों से की। इस दौरान उन्होंने अपने बचपन में घर छोड़ने का किस्सा भी बताया। इस दौरान उनकी मां सोनिया गांधी भावुक हो गईं।
जब गले लगता था तो ट्रांसमिशन सा होता था

राहुल गांधी ने कहा, ‘4 महीने कन्याकुमारी से श्रीनगर तक भारत जोड़ो यात्रा हमने की। वीडियो में आपने मेरा चेहरा देखा, लेकिन हमारे साथ लाखों लोग चले। बारिश, गर्मी और बर्फ में हम सब एकसाथ चले। बहुत कुछ सीखने को मिला। आपने देखा हो कि पंजाब में एक मैकेनिक आकर मुझसे मिला। मैंने उसके हाथ पकड़े और सालों की उसकी तपस्या, उसका दर्द और दुख मैंने पहचान लिया। लाखों किसानों के साथ जैसे ही हाथ मिलाता था, गले लगता था एक ट्रांसमिशन सा हो जाता था।

शुरुआत में बोलने की जरूरत होती थी कि क्या करते हो, कितने बच्चे हैं, क्या मुश्किलें हैं। एक-डेढ़ महीना ये चला और उसके बाद बोलने की जरूरत नहीं पड़ती थी। जैसे ही हाथ पकड़ा, गले लगे उनका दर्द एक सेकंड में समझ आ जाता था। जो मैं उनसे कहना चाहता था, बिना कुछ बोले वो समझ जाते थे।’

यात्रा शुरू की तो पुरानी चोट का दर्द उभर आया
राहुल गांधी ने कहा, ‘आपने बोट रेस देखी होगी। मैं बोट में बैठा था। मेरे पैर में भयंकर दर्द था। मैं उस फोटो में मुस्कुरा रहा हूं, मगर मेरे दिल के अंदर रोना आ रहा था। मैंने यात्रा शुरू की। फिट आदमी हूं। 10-12 किलोमीटर ऐसे ही दौड़ लेता हूं। घमंड था कि 20-25 किलोमीटर चलने में कौन सी बड़ी बात है। पुरानी चोट थी। कॉलेज में चोट लगी थी फुटबॉल खेलते वक्त। मैं दौड़ रहा था दोस्त ने अड़ंगी मार दी थी। वो दर्द गायब हो गया था। जैसे ही यात्रा शुरू की, दर्द वापस आ गया। आप मेरा परिवार हो तो आपसे कह सकता हूं कि सुबह उठकर सोचता था कैसे चला जाए। उसके बाद सोचता था कि 25 किलोमीटर नहीं 3 हजार 500 किलोमीटर चलना है, कैसे चलूंगा।

फिर कंटेनर से उतरता था चल देता था। लोगों से मिलता था। पहले 10-15 दिन में अहंकार और घमंड गायब हो गया। क्यों गायब हुआ। क्योंकि भारत माता ने मैसेज दिया था कि तुम निकले हो कन्याकुमारी से कश्मीर के लिए तो अपने दिल से अहंकार मिटा दो। नहीं तो मत चलो। मुझे ये बात सुननी पड़ी। मुझमें इतनी शक्ति नहीं थी कि ये बात ना सुनूं।’

आज तक मेरे पास घर नहीं है

उन्होंने कहा, ‘मैंने धीरे-धीरे नोटिस किया कि मेरी आवाज चुप होती गई। जम्मू-कश्मीर पहुंचा तो बिल्कुल चुप हो गया। मेडिटेशन करता हूं जैसे वैसे ही चुप हो गया। मां बैठी हैं। मैं छोटा था, 1977 की बात है। चुनाव आया, मुझे उसके बारे में कुछ नहीं मालूम था। घर में अजीब सा माहौल था। मैंने मां से पूछा मम्मी क्या हुआ। मां कहती हैं कि हम घर छोड़ रहे हैं।

तब तक मैं सोचता था कि वो घर हमारा था। मैंने मां से पूछा हम घर क्यों छोड़ रहे हैं। पहली बार मां ने मुझे बताया कि ये हमारा घर नहीं है। ये सरकार का घर है। अब हमें यहां से जाना है। मैंने पूछा कहां जाना है तो कहती हैं कि नहीं मालूम कहां जाना है। मैं हैरान था। मैंने सोचा था कि वो हमारा घर था। 52 साल हो गए मेरे पास घर नहीं है। आज तक नहीं है।’ इस दौरान उनकी मां सोनिया गांधी भावुक हो गईं।

 

 

 

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