हाई कोर्ट ने फांसी की सजा को उम्रकैद में बदला
सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : फांसी की सजा से राहत तो मिल गई पर जेल की दुनिया से बाहर की दुनिया में कदम रखने को अर्जी देने के लिए भी अभी और 15 सालों तक इंतजार करना पड़ेगा। हाई कोर्ट के जस्टिस देवांशु बसाक और जस्टिस मो.शब्बार रसीदी के डिविजन बेंच ने अभियुक्त को मिली फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलते हुए यह आदेश दिया है। सजायाफ्ता कैदी ने यह अपील दायर की थी।
डिविजन बेंच ने अपने आदेश में कहा है कि तपन बाग पैरोल के लिए भी अपनी शुरुआती गिरफ्तारी की तारीख से 30 साल बाद ही आवेदन कर सकता है। जब उसे गिरफ्तार किया गया था उस समय उसकी उम्र महत 23 साल थी। यहां गौरतलब है कि उम्रकैद की सजा भुगत रहे कैदियों को एक निश्चित समय के बाद कुछ दिनों के लिए पैरोल पर रिहा किया जाता है। उसे 2008 में गिरफ्तार किया गया था। यानी 2038 से पहले वह जेल की सलाखों से बाहर नहीं आ सकता है। फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने का आदेश देते हुए डिविजन बेंच ने कहा कि विरल मामलों में ही फांसी की सजा सुनायी जानी चाहिए। उम्रकैद की सजा ही मुनासिब है। इसके साथ ही लोवर कोर्ट को भी फांसी की सजा सुनाये जाने से पहले यह मुतमईन कर लेना चाहिए कि कैदी में सुधार लाए जाने की कोई गुंजाइश नहीं है और न ही उसका पुनर्वासन किया जा सकता है। इस मामले का एक विरल पहलू और भी है। अपने व्यापारिक पार्टनर की हत्या के मामले में तपन के साथ ही उसके माता-पिता को भी गिरफ्तार किया गया था। सेशन कोर्ट ने तपन को फांसी और उसके माता-पिता को उम्रकैद की सजा सुनायी थी। बहरहाल हाई कोर्ट ने उसकी मां को इस मामले में बरी कर दिया है।
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