आखिर क्यों जल उठा मणिपुर? | Sanmarg

आखिर क्यों जल उठा मणिपुर?

सर्जना शर्मा

पूर्वोत्तर भारत की ‘सेवन सिस्टर्स’ में से एक मणिपुर 3 मई से जो सुलगना शुरू हुआ, वह हिंसा अब तक भी जारी है। 45 दिन से जारी हिंसा में अब तक 102 लोग मारे जा चुके हैं, 300 घायल हुए 40 हजार विस्थापित हुए हैं। अनेक घर जला दिए गए, हजारों लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं। भारी संख्या में सुरक्षा बल तैनात हैं। हिंसा फैलाने वालों के खिलाफ पुलिस, केंद्रीय सुरक्षा बल और सेना कड़ा एक्शन ले रही है। गिरफ्तारियां और हथियारों की बरामदगी जारी है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राज्य का दौरा किया, स्थिति की समीक्षा की, समाज के विभिन्न समुदायों से मिले, सबको न्याय देने का भरोसा दिलाया। सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में जांच आयोग का गठन किया, राज्य के लिए 101 करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की। आखिर ऐसा क्या हुआ कि मणिपुर अचानक हिंसा से जल उठा, मणिपुर की स्थि​ति पर सन्मार्ग की विशेष रिपोर्ट –
म्यांमार में हैं मणिपुर हिंसा की जड़ें
मणिपुर की तीन सीमाएं असम, मणिपुर और मिजोरम से लगती हैं। इन तीनों राज्यों से मणिपुर की कुछ न कुछ सांस्कृतिक समानताएं हैं। चौथी सीमा अतंरराष्ट्रीय है जो लगती है म्यांमार से, जिसे पहले बर्मा कहा जाता था। सुंदर रम्य घाटियों, पहाड़ियों, नदियों, वनों, झरनों वाले इस राज्य को प्रकृति ने फुरसत से संवारा है। इतना सुंदर कि पुराणों के अनुसार यहां गायन के लिए स्वर्ग से गंधर्व आते थे और भगवान श्रीकृष्ण राधारानी और गोपियों के साथ रास रचाते थे। कहते हैं एक बार देवी पार्वती को रास देखने की बहुत इच्छा हुई। महादेव पार्वती को अपने साथ लेकर यहां आ गए। एक सर्प ने अपने मस्तक की मणि के प्रकाश से राधा-कृष्ण का रास पार्वती को रातभर दिखाया। तभी से इस स्थान का नाम पड़ा मणिपुर।

देवताओं, गंधर्वों, अप्सराओं के मन को भाने वाली ये रम्य स्थली आखिर सुलग क्यों उठी?
मणिपुर का इतिहास उठा कर देखें तो पायेंगे यहां की हिंसा की जड़ में आज से नहीं सदियों से म्यांमार रहा है। मणिपुर में मुख्य रूप से तीन समुदाय हैं – मैइती, नगा और कुकी। नगा और कुकी को जनजाति का दर्जा प्राप्त है, जबकि मैईती जिनको 1950 से पहले जनजाति का दर्जा प्राप्त था, नया संविधान लागू होने के बाद उनका जनजाति का दर्जा समाप्त कर दिया गया। उनको पिछड़ी और ओबीसी जाति के आधार पर आरक्षण दिया गया। नगा और कुकी में से ज्यादातर धर्मांतरण करके ईसाई बन गए हैं, लेकिन नगा में बहुत से लोगों की संस्कृति मैइती से मिलती है, वे उन्हीं देवी-देवताओं की पूजा करते हैं जो मैइती के आराध्य भी हैं। ज्यादातर मैइती हिंदू हैं, हिंदू देवी-देवताओं के साथ उनके अपने कबीलों को देवी-देवता भी हैं। मैइती इंफाल घाटी में रहते हैं जबकि नगा और कुकी पहाड़ी इलाकों में रहते हैं। मैइती को पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदने का अधिकार नहीं है, नगा और कुकी घाटी एवं पहाड़ी दोनों में जमीन और घर खरीद सकते हैं। कुकी मणिपुर में सब जगह फैले हैं नगा और मैइती बहुल इलाकों में भी। नगा मणिपुर की इंफाल घाटी के उत्तर में रहते हैं। नगा और मैइती के संबंध बहुत मधुर हैं, दोनों के बीच अनेक सांस्कृतिक समानताएं हैं। मैइती और नगा यहां के मूल निवासी हैं।
मणिपुर के राजाओं पर नगा हमले किया करते थे, उनसे रक्षा के लिए मणिपुर के राजा पड़ोसी देश बर्मा से चिन समुदाय के लड़ाकों को बुलाते थे। उनमें से कुछ मणिपुर में बस गए, जिन्हें चिन कुकी या पुराने कुकी कहा जाता है। कुछ कुकी बाद में घुसपैठ करके आए, जो नए कुकी कहलाते हैं। कुकी बांग्ला भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है- बॉस्केट कैरियर (टोकरी लेकर चलने वाला)। कुकी दावा करते हैं कि उनका मणिपुर में अलग साम्राज्य रहा है और वे स्वतंत्र है। सांस्कृतिक रूप से वे मिजो जनजाति के नजदीक हैं। कुकी का दावा है कि वे यहां के मूल निवासी हैं, मैइती और नगा बाद में आए। जबकि 1881 में अंग्रेजों ने जो जनगणना करवायी थी, उसमें नगा 34.8 फीसदी और कुकी केवल 3.7 फीसदी थे, शेष मैइती थे। एक नगा इतिहासकार के अनुसार कुकी ने नगा को हिंसक संघर्ष के बाद मणिपुर के दक्षिणी जिलों से भगा दिया। बीसवीं सदी में 1993 में नगा और कुकी के बीच खूनी संघर्ष हुआ इसमें बहुत लोग मारे गए थे। कुकी को मैइती से ये नाराजगी भी है कि जब उनका नगा के साथ खूनी संघर्ष चल रहा था तो मैइती ने नगा का साथ दिया था ।
अफीम की खेती और उग्रवाद के कारण हिंसा
मैइती और कुकी के बीच विवाद के तीन कारण है। मैइती आज़ादी से पहले वाला जनजाति का दर्जा मांग रहे हैं ताकि उनको भी पूरे मणिपुर में जमीन खरीदने का अधिकार मिले। कुकी इसके सख्त विरोध में हैं। दूसरा कारण है – अफीम की खेती। मणिपुर में अफीम की 85 फीसदी खेती पर कुकी का कब्जा है, बाकी नगा के कब्जे में है। नशे के बड़े माफिया कुकी हैं। इनके पास चीन निर्मित आधुनिक हथियार रहते हैं, जो म्यांमार के रास्ते इनको सप्लाई किए जाते हैं। मैइती को नाराजगी है कि कुकी मणिपुर की युवा पीढ़ी को नशे से बर्बाद कर रहे हैं। मणिपुर सरकार ने नशे की खेती, धंधे और तस्करी के खिलाफ अभियान चला रखा है। कुकी उग्रवादी संगठन अलग कुकीलैंड के लिए हिंसा करते रहते हैं। कुकी नेशनल आर्मी नाम उग्रवादी संगठन मणिपुर और म्यांमार में सक्रिय है। इसके उग्रवादी सेना, पुलिस और सशस्त्र बलों पर हमले कर हथियार लूट लेते हैं। मणिपुर, केंद्र और कुकी नेशनल आर्मी के बीच 2008 में एक समझौता हुआ था सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशनंस, जिसके तहत कुकी नगा संघर्ष विराम हुआ था। लेकिन तीनों समुदायों के बीच टकराव खत्म नहीं हो पाया है।
अब क्यों भड़की हिंसा?
अप्रैल के तीसरे सप्ताह में मैइती समुदाय की याचिका पर मणिपुर उच्च न्यायालय ने मैइती को आजादी से पहले की तरह जन​जाति दर्जा देने पर सहमति जताई और राज्य सरकार से चार सप्ताह के भीतर रिपोर्ट मांगी तथा केंद्र सरकार को सिफारिश भेजने का फैसला सुनाया। इस फैसले का पहाड़ी क्षेत्र के लोगों और नेताओं दोनों ने विरोध शुरू कर दिया। जनजातीय समाज भी लामबंद हो गया। मैइती को किसी कीमत पर जनजाति का दर्जा न दिया जाए, इसके विरोध में ऑल ट्राईबल स्टूडेंट युनियन ऑफ मणिपुर ने 3 मई को इंफाल से 65 किलोमीटर दूर विरोध रैली की। इसी रैली के बाद जनजातीय संगठनों ने मैइती लोगों के घर जला दिए। उसके बाद तो हिंसा का तांडव रुका ही नहीं।

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