रूस के लूना-25 से आधे बजट में कैसे बना चंद्रयान ? ISRO प्रमुख ने बताई वजह

कम खर्च में चांद पर सफलतापूर्वक पहुंचकर चंद्रयान ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया है। चंद्रयान-3 का बजट 615 करोड़ रुपए था जबकि रूस के मून मिशन का बजट इससे करीब दो गुने से भी ज्यादा 1600 करोड़ रुपए था। कम बजट में सफल लैंडिंग की क्या थी इसरो की रणनीति इसरो प्रमुख ने बताया।

नई दिल्ली: चंद्रयान-3 के सफल लैंडिंग के बाद इसके बजट को लेकर चर्चा हो रही है। अधिकांश हॉलीवुड के फिल्मों और कुछ बॉलीवुड के फिल्मों के बजट से भी कम खर्चे में चांद पर पहुंचना भारत के लिए बड़ी उपलब्धि है। रूस के मून मिशन लूना-25 का बजट 1600 करोड़ रहा है। जबकि चंद्रयान बनाने में 615 करोड़ रुपए का बजट रखा गया। 20 अगस्त को लूना-25 क्रैश हो गया। वहीं, 23 अगस्त को चंद्रयान ने चांद पर शाम 6 बजकर 04 मिनट पर कदम रखा। इसरो चीफ एस सोमनाथ ने कम बजट के पीछे की रणनीति को बताया है।

स्वदेशी चीजों का इस्तेमाल: इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने कहा था कि किसी एक मिशन की तुलना दूसरे से नहीं करनी चाहिए। रॉकेट को तैयार करने में स्वदेशी चीजों पर फोकस किया गया। केवल इलेक्ट्रॉनिक चीजों को आयात किया गया है। बता दें कि अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने ज्यादातर समय बड़े रॉकेट और सैटेलाइट को आयात किया है और भारत ने चीजों को खुद तैयार किया। इस कारण नासा जैसी एजेंसियों का बजट बढ़ गया है। जबकि इसरो का बजट कम हो गया।

कम बजट में मैनपॉवर

इसके अलावा मिशन को आसान बनाने के लिए कम पैसों में मैनपॉवर का इस्तेमाल किया गया। क्योंकि ऐसे बड़े-बड़े मिशन के लिए दूसरे देशों में मैनपॉवर पर बहुत पैसे खर्च किए जाते हैं। वहीं, इसरो ने इस मिशन के लिए मैनपावर में कम खर्च पर भी फोकस किया है।

लूना-25 में हुआ बूस्टर का इस्तेमाल
बता दें कि चंद्रयान-3 40 दिन की यात्रा के बाद चांद पर पहुंचा। वहीं, रूस का लूना-25 को जल्दी चांद पर पहुंचाने के लिए खास बूस्टर का इस्तेमाल किया गया। खास बूस्टर का इस्तेमाल करने की वजह से लूना-25 के बजट में भी बढ़ोतरी हुई।

रूसी मिशन के बढ़ने की एक और वजह है प्रोप्ल्शन। इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने कहा कि मिशन मून के लिए रॉकेट जितना ज्यादा बड़ा होगा, उतना ही ज्यादा इस पर खर्च करना पड़ेगा। वहीं, इसरो के पूर्व चेयरमैन के. राधाकृष्णन ने कहा है कि इसरो मॉडलर फिलॉसफी पर काम करता है। हम सिस्टम और स्ट्रक्चर पर काम करके रॉकेट तैयार करते हैं। यही वजह है कि GSLV में इस्तेमाल होने वाली कई तकनीक PSLV से ली गई हैं। हम अपने मिशन में कॉमन सैटेलाइट बस स्ट्रक्चर का इस्तेमाल करते हैं।

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