चुनावी रैलियों में हो रहा बच्चों का इस्तेमाल !

नई दिल्ली : चुनाव आयोग की नजर से बचने के लिए नाबालिग बच्चों को हम होटल में रोके रखते हैं, जब सभा को संबोधित करने वाला मुख्य नेता (स्टार प्रचारक) आ जाता है तब उन्हें होटल से रैली में ले जाते हैं और नारे लगवाते हैं। अगर हम स्टार प्रचारक के आने से पहले नाबालिग बच्चों को राजनीतिक रैली में ले जाएंगे तो वे पुलिस और चुनाव अधिकारियों के साथ-साथ कैमरों में भी कैद हो जाएंगे तथा हम फंस जाएंगे।’

यह बात राजनीतिक रैलियों के लिए भीड़ जुटाने में कुशल बिचौलिये (एजेंट) मुराद अहमद ने कही। उसने 2024 के लोकसभा चुनाव अभियानों के लिए पैसे लेकर नाबालिग बच्चों को उपलब्ध कराने का वादा किया। उसने यह भी बताया कि चुनाव आयोग के अधिकारियों द्वारा पता लगाये बिना राजनीतिक अभियानों में उनका उपयोग कैसे किया जाए।

इस साल फरवरी में भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने सभी राजनीतिक दलों को चुनाव अभियानों में बच्चों का उपयोग करने से परहेज करने के निर्देश जारी किये और कहा कि इस मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति रहेगी। हाल ही में, कांग्रेस ने इसी मामले में नागपुर में भाजपा की शिकायत की थी। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने 2024 के आम चुनावों की घोषणा करते हुए कहा था, ‘बाहुबल, पैसा, गलत सूचना और आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन; ये चार चीजें हैं, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने में आयोग के लिए एक कठिन चुनौती पेश कर रही हैं।’

‘सन्मार्ग एसआईटी’ ने पिछला खुुलासा पहले ‘एम’ यानी बाहुबल के बाद इस पड़ताल में एक और ‘एम’ यानी आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन का पर्दाफाश किया है।

कुछ एजेंट चुनाव प्रचार के लिए नाबालिगों को परोस रहे हैं। मामले की तह तक जाने के लिए ‘सन्मार्ग’ रिपोर्टर की मुलाकात इस रिपोर्ट के मुख्य किरदार मुराद अहमद से दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल में हुई। मुराद अपने रिश्तेदार और साथी मोहम्मद वजाहत सिद्दीकी के साथ रिपोर्टर से मिलने पहुंचा। रिपोर्टर ने खुद को ग्राहक बताया और मुराद से 2024 के आम चुनावों के लिए दिल्ली और दिल्ली के बाहर हमारे काल्पनिक उम्मीदवार द्वारा की जाने वाली चुनावी रैलियों के लिए नाबालिगों को लाने में मदद करने के लिए कहा।

चुनाव जीतने के लिए हरसंभव प्रयास में लगे नेता और उनकी पार्टियां चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों और आचार संहिता की धज्जियां उड़ाने से बाज नहीं आते। चुनाव आयोग की कड़ी चेतावनी के बावजूद राजनीतिक पार्टियां और नेता चुनावी रैलियों में हर वो काम करते हैं, जो आचार संहिता का उल्लंघन है। यहां तक कि वे अपनी रैलियों और जनसभाओं में नाबालिगों को नारेबाजी करने और पार्टी के झंडे-बैनर उठवाने तक का काम करवाते हैं। ‘सन्मार्ग’ एसआईटी ने इस बार खुलासा किया है कि किस तरह बिचौलिये पैसों के बदले नाबालिगों को चुनाव प्रचार के लिए आसानी से उपलब्ध करा देते हैं।

रिपोर्टर : ऐसा न हो कुछ गड़बड़ हो जाए …आप कर चुके पहले ऐसा रैली वाला काम?

मुराद : हां; लेकिन करा है लाल किला वाले एरिया में ही। …रामलीला ग्राउंड के अंदर वहीं आसपास।

रिपोर्टर : 500 रुपीज, एक बच्चे…?

मुराद : वे लोग (राजनीतिक दल) 1,000-1,000 रुपीज तो दे जाया करते थे, खाना-पानी, नाश्ता अलग। …सिर्फ रोड पर आकर ताली बजाने के लिए। …xxxx को तो जानते होगे?उनकी बहुत रैली हुई हैं, xxxx की हुई हैं। xxxx की हुई हैं। …सिर्फ रोड पर चक्कर लगाने के, 1,000 रुपीज और चाय, खाना-नाश्ता अलग था।

रिपोर्टर : तो आप बताओ फिर कितना?

मुराद : छोटे बच्चों के उनके मां-बाप भी हैं। कम-से-कम 2,000 रुपीज तो होने ही चाहिए।

रिपोर्टर : 2,000 रुपये एक बच्चा! …ज्यादा नहीं हैं?

मुराद : ज्यादा नहीं हैं। जब पैसा मिलता है ना बच्चे को, तो हो सकता है वो दिल्ली के बाहर भी चले जाए। …50 कर दें, …100 बच्चे हो जाएं।

रिपोर्टर : 100 बच्चे?

मुराद : देखिए, आपने अगर 1,000 रुपये दिये …कोई प्रॉब्लम नहीं। जिन बच्चों को मिलेगा पैसा, वो आगे बताएंगे तो आगे और बच्चे आने को तैयार हो जाएंगे। …बातें नहीं खींचतीं, पैसा खींचता है।

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रिपोर्टर : तो आप ये कह रहे हो, 2,000 रुपये एक बच्चे का दे दें? बाहर भी चले जाएंगे रैली के लिए?

मुराद : जा सकते हैं। …हम उनको कह सकते हैं धौंस के साथ कि पैसा भी तो दे रहे हैं। …500 रुपीज, 200 रुपीज तो बच्चा आजकल चीज खा लेता है। …मोबाइल का रिचार्ज ही करा लेते हैं इतने-इतने से; बच्चों के पास तो मोबाइल हैं आजकल।

रिपोर्टर : आपने जैसे बताया ना xxxxx की रैली में वो 500 रुपीज बांट जाते हैं, तो खाना थोड़ी देते होंगे?

मुराद : पैसों के साथ नाश्ता, खाना भी दिया जाता है। स्नैक के पैकेट दिये जाते हैं।

रिपोर्टर : इनको करना क्या पड़ता है?

मुराद : नारेबाजी, हाय-हाय। …किसी के हाय-हाय के लगाने होते हैं, किसी के जिंदाबाद के; …यही काम होता है पॉलिटिक्स में।

रिपोर्टर : और बताता कौन है नारे?

मुराद : पार्टी बताती है, भाई! नेताजी आएंगे, तो आपको ये कहना है। …अगर वो जाएं तो आपको ये कहना है। उछल-कूद करनी है। …वही लोग बताते हैं। हाय-हाय और जिन्दाबाद, बस यही दो चीजें होती हैं।रिपोर्टर : दिल्ली के बाहर भेजना हो तो?

वजाहत : टाइम कितना लगेगा?

रिपोर्टर : एक रात; …अलीगढ़ हो गया, मेरठ हो गया, आगरा हो गया; …आसपास के इलाके हैं। ऐसा नहीं है कि आपको कर्नाटका जाना, बैंगलोर जाना होगा…।

रिपोर्टर : चुनाव आयोग ने साफ बोला है कि बच्चों का इस्तेमाल न हो चुनाव रैली में।

मुराद : छोटे बच्चे?

रिपोर्टर : हां, नाबालिग बच्चे। …उसका कैसे बचाव करोगे कि निगाह में न आ जाए किसी की?

वजाहत : वहां कोई आधार कार्ड थोड़ी चेक करेगा? …उमर थोड़ी चेक करेगा?

रिपोर्टर : कोई तरीका तो बताओ; आप तो मास्टर हो इन सब चीजों के?

मुराद : तरीका यही है भाई! उन बच्चों को रोककर रखा जाए, जब कोई बड़ा नेता आये, …तब जब नारे लगाने हों, झण्डे दिखाने हों, तब आएं; और फिर उसके बाद फौरन हटा दिया जाए उनको।

रिपोर्टर : ये भी सही है तरीका।

मुराद : भाई! जैसे कोई होटल है, वहां पर तैयार रहेंगे बच्चे; जैसे ही नेताजी आएंगे, बच्चे आ जाएंगे। जिस टाइम पर नेताजी आये, उसी टाइम पर बच्चे आये और नारे लगाये… हाय-हाय, या जिन्दाबाद; लेकिन वो सब आपकी जिम्मेदारी होगी, वहां से हटाना और लाना; …हम थोड़ी कर पाएंगे।

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पूरे पैसे पहले चाहिए

वजाहत : अच्छा; पे जो आप करोगे, वो जिस दिन काम होगा, उस दिन करोगे ना?

रिपोर्टर : वैसे तरीका क्या है?

वजाहत : नहीं, पैसे पहले हमारे पास आ जाएं, और काम खत्म होते ही हम उनको पैसे दे दें।

मुराद : हमने उनको आधे पैसे दे दिये और आधे हम देंगे काम करने के बाद, तो उनको भरोसा भी हो गया; खुश भी हो गये, पैसे आ गये आज। …तो काम वो खुशी से करेंगे और बंध भी जाएंगे; …तो तरीका यही होता है।

रिपोर्टर : बच्चों से क्या बुलवाना है?

मुराद : वो आपकी पार्टी बोलेगी।

रिपोर्टर : जिन्दाबाद के लगवाने…।

मुराद : जिन्दाबाद के, हाय-हाय के लगवाने हैं। काले झंडे दिखाना है। बैनर दिखाना है। जो आपकी पार्टी बोले; …पैसे किस बात की ले रहे हैं।

शुरू में रिपोर्टर ने नाबालिगों को उपलब्ध कराने के लिए मुराद और वजाहत को एक रैली के लिए 20,000 रुपये की फीस की पेशकश की। हालांकि अन्त में यह बढ़कर 25,000 रुपये प्रति रैली हो गयी।

जब नाबालिगों के स्रोत के बारे में पूछताछ की गयी, तो मुराद ने बताया कि वह उन्हें दिल्ली के जामा मस्जिद इलाके से लाएगा, जहां ज्यादातर मुस्लिम बच्चे अपने माता-पिता के साथ मजदूरी या स्ट्रीट वेंडिंग में लगे होते हैं।

रिपोर्टर : कहां से लाओगे आप?

मुराद : वो हैं सब अपने जान-पहचान के।काम करने वाले नहीं, पढ़ रहे हैं। छोटे स्कूल में।उनके मां-बाप वही मजदूरी, …कोई कुछ लगा रहा है, कोई कुछ। देखिए, भला हो जाए उन बच्चों का; …कुछ रेहड़ी-पटरी वाले हैं। कुछ नौकरी करने वाले हैं।

रिपोर्टर : और हैं सब वहीं, जामा मस्जिद के?

मुराद : हां; दिल्ली के हैं सब। पीछे से चले (चाहे) जहां के हों, मगर अब दिल्ली में रहते हैं। चाहे पीछे से बरेली के हों, काम-वाम करने आये हों।

रिपोर्टर : मतलब, दिल्ली में जामा मस्जिद के हैं।

मुराद : हां; जामा मस्जिद, तुर्कमान गेट, …इसी सर्कल में रहते हैं सारे।

चुनाव आयोग के राजनीतिक दलों को चुनाव अभियानों में बच्चों का उपयोग करने से परहेज करने के सख्त निर्देश के बावजूद ऐसे बेईमान एजेंट हैं, जो पैसे के बदले में स्वेच्छा से नाबालिगों को चुनाव प्रचार के लिए उपलब्ध कराते हैं। आदर्श आचार संहिता का यह घोर उल्लंघन न केवल चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को कमजोर करता है, बल्कि इन कमजोर बच्चों की भलाई को भी खतरे में डालता है।चुनाव आयोग और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को ऐसी गड़बड़ियों को रोकने के लिए अपने प्रयास बढ़ाने चाहिए। राजनीतिक लाभ के लिए बच्चों का शोषण निंदनीय है।

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