कोरोना की तरह ही विकराल रूप ले रहा है एडिनो वायरस, सरकारी अस्पतालों में बच्चों के बेड फुल

सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : राज्य में कोरोना की तरह विकराल रूप ले रहा है एडिनो वायरस। चाहे वह बी सी राय अस्पताल हो या फिर इंस्टिट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ, कोलकाता या कोई अन्य सरकारी व निजी अस्पताल हो, हर जगह इस वायरस ने हड़कंप मचा रखा है। बच्चों को भर्ती करने के लिए लंबी-लंबी कतारें देखने को मिल रही हैं। यहां इस वायरस से कोलकाता व जिलों में भी लाखों बच्चे प्रभावित हो रहे हैं। राज्य में हालात गंभीर है। सरकारी और प्राइवेट, दोनों अस्पतालों में बच्चों को भर्ती करने के लिए बेड नहीं मिल रहे हैं। वहीं कई अस्पतालों में बेड को भी बढ़ाया गया है, जबकि कई बच्चों के अस्पतालों में तो एक बेड पर दो-दो बच्चों तक को रख रहे हैं। कोलकाता में ‘राष्ट्रीय कॉलेरा और आंत्र रोग संस्थान (आईसीएमआर-नाइसेड) है। सूत्रों के मुताबिक बंगाल के स्वास्थ्य मंत्रालय ने जनवरी से अब तक वहां हजार से ऊपर सैंपल भेजे हैं।
डॉ. बी सी राय पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ पेडियाट्रिक साइंस के डॉक्टर ने यह कहा
यहां पर बुखार से पीड़ित तो कोई सांस की समस्या से ग्रसित काफी संख्या में बच्चे आ रहे हैं। इतने अधिक संख्या में बच्चे आ रहे हैं कि सबको एडमिट कर पाना संभव नहीं हो पा रहा है। यही कारण है कि कुछ बच्चों को अन्य अस्पतालों में रेफर कर ​दिया जा रहा है। परिजनों ने आरोप लगाया था कि यहां आने पर उन्हें रेफर कर दिया जा रहा है। कुछ परिजनों ने बताया कि एक ही बेड पर 2 से 3 बच्चों को रखा जा रहा है। इससे संक्रमण फैलने का खतरा काफी अधिक है। इस बारे में नाम न बताने की शर्त पर डॉक्टर ने कहा कि सभी बच्चों तक चिकित्सा पहुंचे यही कोशिश जारी है। फिलहाल बेड व अन्य सुविधाओं को सेकेंडरी रखा जा रहा है। चिकित्सा को प्राइमरी रखकर अधिक से अधिक बच्चों को ठीक करने की कोशिश की जा रही है।
टाइप – 7 स्ट्रेन सबसे खतरनाक
टाइप-7 को एडिनो वायरस का सबसे खतरनाक ‘स्ट्रेन’ माना जाता है। इस स्ट्रेन में सबसे पहले बच्चों को निमोनिया होता है। वहीं टाइप-3 बच्चों में सांस की सीरियस बीमारियां फैलाने वाला ‘स्ट्रेन’ है। अगर किसी बच्चे के शरीर में ये दोनों ‘स्ट्रेन’ घुस जाएं, तो मामला बहुत सीरियस हो सकता है।
परिजनों को किया गया है अलर्ट
कोलकाता के अस्पतालों में इन दोनों स्ट्रेन के मिलने के बाद अब बात इतनी बिगड़ गई है कि अस्पतालों में बच्चों के वॉर्ड तेजी से भर रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में बेड की कमी के कारण बच्चों को घर ले जाने की ​स्थिति होने पर उन्हें घर भेज दिया जा रहा है। चारनॉक हॉस्पिटल की सीईओ इप्शिता कुंडू ने बताया कि बच्चों के वार्ड में काफी अधिक संख्या में बच्चे भर्ती हो रहे हैं लेकिन हमारे पास इंतजाम है, अभी स्थिति नियंत्रण में है। हालांकि परिजनों को अलर्ट रहने की जरूरत है। कई बच्चे पेट की बीमारी की शिकायत के साथ भर्ती हुए हैं। कई ठीक होकर डिस्चार्ज हो गये हैं। वहीं वुडलैंड हॉस्पिटल के अधिकारी ने बताया कि उनके यहां 2 बच्चे इस वायरसे से प्रभावित होकर भर्ती हैं। हालांकि ओपीडी में काफी अधिक बच्चे आ रहे हैं। वहीं इंस्टिट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ, कोलकाता के डिपार्टमेंट ऑफ पेडियाट्रिक मेडिसिन के एसोसियेट प्रोफेसर व चाइल्ड स्पेशलिस्ट अरुणालोक भट्टाचार्य का कहना है कि कुछ बच्चे सांस की बीमारी के चलते भर्ती हुए हैं। उनका कहना है कि बच्चों की इम्युनिटी बड़ों से कमजोर होती है। इसलिए 5 साल और उससे कम उम्र के बच्चों में इस वायरस के फैलने का ज्यादा खतरा है। सबसे अधिक डेंजर जोन में एक साल तक के शिशु हैं।
ऐसे लक्षण हों तो कोताही न करें
दवाई देने पर भी नाक बहना न रुके। निमोनिया, फेफड़ों के पाइप में सूजन। सीने में ठंडक महसूस होना। कुछ मामलों में छोटे बच्चों के पेट में इन्फेक्शन भी हो सकता है। कुछ को डायरिया, तेज बुखार, लाल आंखों की परेशानी हो सकती है।
स्वास्थ्य भवन के अधिकारी के मुताबिक
राज्य में एडिनो वायरस को लेकर पैनिक नहीं होना चाहिए। स्वास्थ्य विभाग की ओर से सभी अस्पतालों में निर्देश भेज दिया गया है। हां, यह सच है कि 10 सालों में इस बार यह थोड़ा अधिक है लेकिन यह हर साल इस मौसम में बच्चों में फैलता है और गर्मी आते ही कम हो जाता है। लगभग 90 प्रतिशत मामले सीरियस नहीं होते। अस्पतालों पर निगरानी रखी जा रही है। बेड की कमी के बारे में अधिकारी का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में बेड की कमी की समस्या रहती है लेकिन इस वायरस के कारण बेडों की संख्या भी बढ़ायी गयी है।

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