
चावल और गेहूं के साथ दाल भी दी जाने का आदेश
कोलकाता : पैनडेमिक के इस दौर में सेक्स वर्करों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। उन्हें राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत पूरा राशन नहीं मिल रहा है। इसका हवाला देते हुए हाई कोर्ट में एक पीआईएल दायर की गई है। एक्टिंग चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस राजर्षि भारद्वाज के डिविजन बेंच ने राज्य सरकार को इस बाबत एफिडेविट दाखिल करके जवाब देने का आदेश दिया है।
एडवोकेट जोवेरिया सब्बाह ने इस बाबत बहस करते हुए कहा कि यह सुविधा नहीं मिलने से उनके जीवन के बुनियादी अधिकार का उल्लंघन हो रहा है। इसके साथ ही डिविजन बेंच ने आदेश दिया है कि सेक्स वर्करों की भी पहचान पत्र तक पहुंच सुनिश्चित की जाए ताकि उन्हें भी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिल सके। बेंच ने कहा कि इस बाबत लीगल सर्विसेस ऑथरिटी की भी मदद ली जा सकती है। वाटगंज के रेडलाइट क्षेत्र में एक अध्ययन के बाद यह पीआईएल दाखिल की गई है। यह भी खुलासा हुआ है कि उन्हें आईसीडीएस स्कीम के तहत आंगनबाड़ी से पौष्टिक खाद्य पदार्थ भी नहीं मिलते हैं। इस क्षेत्र के बच्चे, गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाओं को भी यह सुविधा नहीं मिलती है। जबकि तीन से छह साल तक के बच्चों को आंगनबाड़ी के स्कूलों में शिक्षा पाने का अधिकार है। एडवोकेट सब्बाह ने कोर्ट से अपील की कि इन सेक्स वर्करों को सरकार की तरफ से वित्तीय सहायता उपलब्ध करायी जाए। इनके कल्याण के लिए एक कमेटी बनाने का आदेश देने की सिफारिश भी की गई है। एडवोकेट जनरल किशोर दत्त ने कहा कि सरकार ने इस बाबत एक गाइड लाइन बनायी है। डिविजन बेंच ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि सेक्स वर्करों को गेहूं और चावल के साथ ही दाल भी दी जाए। साथ ही राज्य सरकार से यह मालूम करने को कहा कि क्या ये सुविधाएं देते समय पहचान पत्र की मांग की जाती है।