कभी खेला था एशिया कप लेकिन आज कंधे पर है जोमैटो का डिलीवरी बैग

– आर्थिक तंगी से टूट रहा है फुटबॉलर बनने का सपना
कोलकाताः गोल! यह शब्द सुनते ही वह आज भी सिहर उठती है, लेकिन किस्मत की मारी बेहला की पौलमी अब एक जोमैटो डिलीवरी गर्ल है। जहां ज्यादातर लड़कियों का बचपन खिलौनों और गुड़ियों के साथ खेलने में बीता, वहीं पौलमी फुटबॉल खेलते हुए बड़ी हुई है। पौलमी को फुटबॉल खेलने की ऐसी लत थी कि यह उसके पेशे में तब्दील हो गया। वह इतना शानदार फुटबॉल खेलती थी कि उसे राष्ट्रीय टीम के लिए खेलने का मौका भी मिला, लेकिन आर्थिक संकट ने उसके सपने को चकनाचूर कर दिया और अब वही घर-घर खाना पहुंचाने का काम करने लगी है। पौलमी जिसने अपनी पीठ पर फुटबॉल किट का बैग लेकर देश-विदेश में भ्रमण किया है, वह आज अपने कंधे पर जोमैटो-स्विगी का बैग लेकर गली-गली दौड़ रही है।
कुछ ऐसा है पौलमी का सफर
पौलमी ने कहा, “जब मैं छोटी थी तब मेरी मां का देहांत हो गया था। मेरे पिता ड्राइवर हैं। मैं अपनी मौसी के साथ रहती हूं। पढ़ाई के अलावा मुझे परिवार का खर्चा भी उठाना पड़ता है, इसलिए मजबूर होकर मुझे यह काम करना पड़ता है। फुटबॉल किट, जूते, डायट सहित खेलने के लिए आवश्यक खर्च इकट्ठा करने के लिये मुझे डिलीवरी का काम करना पड़ता है। मैंने पहली बार फुटबॉल खेलना तब शुरू किया जब मैं कक्षा चार में पढ़ती थी।”
भारतीय टीम के लिए एशिया कप खेला
2013 में पौलमी ने भारतीय टीम के लिए एशिया कप खेला है। इसके साथ ही अंडर-16 और अंडर-19 टीम में भी खेला है। 2016 में उसने ग्लासगो में खेला। इसके बाद उसे चोट लग गई जिससे उसे उबरने में काफी समय लगा। वित्तीय स्थिति इतनी खराब थी कि मजबूरन पौलमी को 2017 से जोमैटो, स्विगी, ओला, उबर में नौकरी ढूंढनी पड़ी। कभी 200 तो कभी 500 रुपये की कमायी होती है और इसका इस्तेमाल वह अपने लिये खेल के उपकरण खरीदने और कॉलेज की फीस भरने के लिये करती है।

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