क्या है कच्चातिवु को श्रीलंका को सौंपने का मामला, जानिए सारे सवालों के जवाब | Sanmarg

क्या है कच्चातिवु को श्रीलंका को सौंपने का मामला, जानिए सारे सवालों के जवाब

नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1974 में कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को सौंपने का फैसला लोकसभा चुनाव के दौरान तमिलनाडु में प्रमुख मुद्दा बनता जा रहा है। भाजपा इसे जोर-शोर से उठा रही है। आइए जानते हैं आखिर क्या है इस द्वीप की कहानी।
कहां स्थित है यह द्वीप?
कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका में नेदुनथीवु और भारत में रामेश्वरम के बीच स्थित है। यह 285 एकड़ का एक निर्जन स्थान है। अपने सबसे चौड़े बिंदु पर इसकी लंबाई 1.6 किमी से ज्यादा नहीं है। यह भारतीय तट से लगभग 33 किमी दूर, रामेश्वरम के उत्तर-पूर्व में स्थित है। श्रीलंका के जाफना से यह लगभग 62 किमी दूर है। पारंपरिक रूप से दोनों पक्षों के मछुआरे इसका इस्तेमाल करते रहे हैं। कच्चातिवु द्वीप तमिलनाडु के मछुआरों के लिए सांस्कृतिक रूप से अहम है। इसे श्रीलंका को सौंपने के खिलाफ तमिलनाडु में कई आंदोलन हुए हैं।
द्वीप का इतिहास क्या है?
14वीं शताब्दी के ज्वालामुखी विस्फोट के बाद यह द्वीप बना। मध्ययुगीन काल में, इस पर श्रीलंका के जाफना साम्राज्य का नियंत्रण था। 17वीं शताब्दी में, नियंत्रण रामनाद जमींदारी के हाथ में चला गया, जो रामनाथपुरम से लगभग 55 किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित है। ब्रिटिश राज के दौरान यह मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा बन गया। लेकिन 1921 में भारत और श्रीलंका दोनों ने मछली पकड़ने की सीमा निर्धारित करने के लिए द्वीप पर दावा किया। यह विवाद 1974 तक नहीं सुलझा था।
अब क्या है समझौता?
1974 में, इंदिरा गांधी ने भारत-श्रीलंका के बीच समुद्री सीमा को हमेशा के लिए सुलझाने का प्रयास किया। इस समझौते के एक हिस्से के रूप में इंदिरा गांधी ने कच्चातिवु को श्रीलंका को सौंप दिया। उस समय, उन्होंने सोचा कि इस द्वीप का कोई रणनीतिक महत्व नहीं है और इस भारत का दावा खत्म करने से श्रीलंका के साथ संबंध और गहरे हो जाएंगे। समझौते के मुताबिक, भारतीय मछुआरों को अभी भी इस द्वीप तक जाने की इजाजत थी। 1976 में भारत में इमरजेंसी की अवधि के दौरान एक और समझौता हुआ। इसमें किसी भी देश को दूसरे के विशेष आर्थिक क्षेत्र में मछली पकड़ने से रोक दिया गया।

क्या बताया गया था?
1974 में, तत्कालीन विदेश सचिव केवल सिंह ने तमिलनाडु के CM रहे करुणानिधि को कच्चातिवु पर अपना दावा छोड़ने के भारत के फैसले से अवगत कराया। विदेश सचिव ने करुणानिधि को यह भी बताया था कि श्रीलंका ने बहुत दृढ़ रुख अपनाया है और वार्ताकारों को सूचित किया कि यह द्वीप डच और ब्रिटिश मानचित्रों में जाफनापट्टनम का हिस्सा था।

कच्चातिवु पर तमिलनाडु की स्थिति क्या है?
तमिलनाडु विधानसभा से सलाह किए बिना यह द्वीप श्रीलंका को दिया गया। उस समय ही इंदिरा गांधी के कदम के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन हुए थे। 1991 में श्रीलंकाई गृहयुद्ध में भारत के दखल के बाद कच्चातिवु को दोबारा वापस लेने की मांग उठी थी। 2008 में तत्कालीन नेता जे. जयललिता ने कोर्ट में अर्जी दी थी। कहा गया था कि संवैधानिक संशोधन के बिना कच्चातिवु को किसी अन्य देश को नहीं सौंपा जा सकता। पिछले साल, तमिलनाडु के CM स्टालिन ने श्रीलंका के PM रानिल विक्रमसिंघे की भारत यात्रा से पहले PM मोदी को एक पत्र लिखा था। उन्होंने कच्चातिवु पर बात करने को कहा था।

क्या कहा गया?
तत्कालीन अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने 2014 में सुप्रीम कोर्ट को बताया था, ‘कच्चाथिवु 1974 में एक समझौते के तहत श्रीलंका को दिया गया था…। आज इसे वापस कैसे लिया जा सकता है? अगर आप कच्चातिवु को वापस चाहते हैं, तो आपको इसे वापस पाने के लिए युद्ध करना होगा।’

 

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