अपराध की गंभीरता के हिसाब से होनी चाहिए सजा : सुप्रीम कोर्ट | Sanmarg

अपराध की गंभीरता के हिसाब से होनी चाहिए सजा : सुप्रीम कोर्ट

धोखा देकर की गयी दूसरी में शादी दिया था बेटी का साथ, दामाद की शिकायत पर बढ़ी सास-ससुर की सजा
नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने एक दंपति को पहली शादी के वैध रहते हुए दूसरी शादी करने वाली अपनी बेटी का साथ देने के लिए 6 महीने कैद की सजा सुनाई है। हालांकि दूसरी शादी से महिला को एक बच्चा भी हुआ लेकिन दूसरा पति अपनी पत्नी की पहली शादी से अनजान था। जब राज खुला तो उसने पत्नी के साथ-साथ उसके माता-पिता के खिलाफ भी मामला दर्ज कराया।
दामाद ने दी थी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
दामाद ने सास-ससुर पर आरोप लगाया था कि उन्होंने अपनी बेटी को पहली शादी के प्रभावी रहते हुए दूसरी शादी करने के लिए उकसाया। इस मामले में माता-पिता अदालत से दोषी भी करार दिये गये लेकिन सजा मामूली मिली। उन्हें सजा सुनाये जाने वाले दिन अदालत की कार्यवाही पूरी होने तक के लिए कैद की सजा सुनायी थी। दामाद ने सजा को मामूली बताते हुए इसे शीर्ष न्यायालय में चुनौती दी। न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार के पीठ ने अपने फैसले में माना कि महिला के माता-पिता ने पहली शादी के रहते हुए अपनी बेटी की दूसरी शादी कराने में मदद की थी।
सजा आनुपातिकता के अनुरूप नहीं
पीठ ने फैसले में कहा कि एक बार जब यह पाया जाता है कि आईपीसी की धारा 494 के तहत अपराध एक गंभीर अपराध है, तो इस मामले में मौजूद परिस्थितियां हमें यह मानने के लिए मजबूर करती हैं कि ‘कोर्ट के कामकाज खत्म होने तक की कैद’ उचित सजा नहीं है। यह सजा देने में आनुपातिकता के नियम के अनुरूप नहीं है। महिला ने आईपीसी की धारा 494 के तहत दो विवाह करने का गुनाह किया और उसके माता-पिता ने उसे ऐसा करने के लिए उकसाया। महिला के माता-पिता की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दलील दी गयी कि आईपीसी की धारा 494 के तहत अपराध के लिए कोई न्यूनतम सजा तय नहीं है लेकिन शीर्ष न्यायालय ने इस दलील को खारिज कर दिया।

 

Visited 89 times, 1 visit(s) today
शेयर करे
0
0

Leave a Reply

ऊपर