Anne Frank Diary : ‘द डायरी ऑफ अ यंग गर्ल’… | Sanmarg

Anne Frank Diary : ‘द डायरी ऑफ अ यंग गर्ल’…

नई दिल्ली : 11 साल की मासूम बच्ची ने डायरी लिखनी शुरू की. उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ये डायरी आगे चलकर दुनिया की सबसे फेमस किताब बनेगी। इस बच्ची का नाम था एनेलिस मैरी फ्रैंक, जिसे लोग ऐन फ्रैंक के नाम से भी जानते हैं। ऐन का जन्म 12 जून 1929 को जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में एक यहूदी परिवार में हुआ था। माता-पिता और एक बहन के साथ ऐन यहां रहती थी। सब कुछ ठीक चल रहा था। मगर, 1933 में देश में हिटलर यानी नाजी पार्टी की सरकार आई और यहां के हालात एकदम से बदल गए. फ्रैंकफर्ट का मेयर भी नाजी पार्टी से नाता रखता था, जो यहूदियों की विरोधी थी। ऐन के पिता ओटो फ्रैंक  समझ गए थे कि अब जर्मनी में रहना खतरे से खाली नहीं है। इसलिए जल्द से जल्द वे परिवार सहित जर्मनी छोड़ नीदरलैंड में शिफ्ट हो गए। अब परिवार राजधानी एम्स्टर्डम में रहने लगा। उस समय ऐन महज 4 साल की थी।

कुछ समय बाद दोनों बहनें स्कूल जाने लगीं। ओटो फ्रैंक को यहां नई नौकरी मिल गई थी। सब कुछ पहले जैसा ठीक होने लगा था। हां, फर्क सिर्फ इतना था कि पहले परिवार जर्मनी में बहुत ही आलीशान घर में रहता था। यहां किराए के मकान में उन्हें रहना पड़ रहा था। फिर भी परिवार खुश था। कुछ साल ऐसे ही बीत गए। फिर वक्त आया 1 सितंबर 1939 का। दुनिया में दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया। फ्रैंक परिवार यह जान गया था कि नीदरलैंड में रहना भी अब खतरे से खाली नहीं है। यहां से परिवार ब्रिटेन शिफ्ट होना चाहता था, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

जर्मन सैनिकों ने किया नीदरलैंड पर कब्जा
जर्मन सैनिकों ने 10 मई 1940 को नीदरलैंड पर पूरी तरह कब्जा कर लिया था। अब वहां भी जर्मनी की तरह यहूदी विरोधी कानून लागू होने लगे। डर के बावजूद फ्रैंक परिवार अपनी जिंदगी जैसे-तैसे वहां काट रहा था। अब ऐन भी 11 साल की हो चुकी थी। माता-पिता ने उसे बर्थडे पर एक डायरी गिफ्ट की। इसमें ऐन अपने हर दिन की हर एक बात लिखती।

दोनों बहनों का स्कूल छूट गया 
इसी बीच यहूदियों के हालात एम्स्टर्डम में भी काफी खराब हो गए थे। पहले दोनों बहनों का स्कूल छूटा। फिर पता चला कि ऐन की बहन मार्गोट को जर्मनी के लेबर कैंप में भेजा जाएगा। माता-पिता पूरी तरह डर चुके थे। मगर, जाते भी तो कहां? उस दिन ऐन ने अपनी डायरी में लिखा, ‘छिप जाएं? कहां छिपेंगे? गांव में या शहर में? किसी घर में या झोपड़ी में? ये वो सवाल हैं, जिन्हें पूछने की मुझे इजाजत नहीं हैं। मगर, फिर भी में जहन में ये सवाल चल रहे हैं।”

परिवार को मिली छिपने की जगह
दिन आया 6 जुलाई 1942 का। परिवार ने आखिरकार छिपने के लिए एक जगह ढूंढ ही ली, जहां पिता ओटो फ्रैंक काम करते थे, वहीं छोटा सा प्लैट तैयार किया गया था। परिवार उसमें शिफ्ट हो गया। कोई देख न ले इसलिए दरवाजे के बाहर बुक रैक बना दी गई थी, ताकि किसी को पता न चले कि यहां एक फ्लैट भी है। इस काम में कंपनी के कुछ लोगों ने ही फ्रैंक परिवार की मदद की। खाने-पीने और जरूरी सामान को समय-समय पर वे लोग छिप-छिपाकर फ्रैंक परिवार तक पहुंचा देते। साथ ही बाहर क्या चल रहा है, इस बारे में भी परिवार को बताते रहते।

8 सालों तक दो परिवार रहे साथ में
इसी जगह पर एक और परिवार भी छिपने के लिए आया। कुल 8 सालों तक दोनों परिवार छिपकर यहां साथ में रहे। इन्हें दिन भर चुपचाप रहना पड़ता था, ताकि किसी को भनक न लग जाए कि वे लोग यहां छिपे हैं। दोनों परिवार जिस टॉयलेट को इस्तेमाल करते थे, उसे पूरा दिन फ्लश भी नहीं कर सकते थे, ताकि किसी को इसकी आवाज न सुनाई दे। रात के समय ही टॉयलेट साफ किया जाता था।

वक्त बिताने के लिए डायरी लिखती रही ऐन
अपनी डायरी में ऐन ने इस फ्लैट को नाम ‘सीक्रेट अनेक्स’ यानी खुफिया कोठरी लिखा था। यूं तो यहां जरूरत की हर चीज थी। बस खुलकर जीने की आजादी नहीं थी। पूरा दिन बिना बोले उन्हें वहां समय काटना पड़ता था। वक्त बिताने के लिए ऐन बस डायरी लिखती रहती। कई बार खुद ही कई चीजें लिखकर उन्हें मिटाती। फिर दोबारा उसकी जगह कुछ और लिखती। एक बार तो मां से झगड़ा होने पर ऐन ने लिखा, ”वो मेरे साथ मां जैसा बर्ताव नहीं करती हैं।” बाद में जब उसे इसका पछतावा हुआ, तो लिखा, ”ऐन तुम ऐसी नफरत भरी बातें कैसे लिख सकती हो?”

ऐन की इस डायरी में न केवल उसकी पर्सनल लाइफ का जिक्र था, बल्कि उस समय यहूदियों पर क्या-क्या अत्याचार हुए, उनके बारे में भी हम इसी डायरी के जरिये काफी कुछ जान पाए हैं। ऐन ने जो भी बातें डायरी में लिखीं, उनसे हम महसूस कर सकते हैं कि यहूदी उस समय कैसा महसूस करते होंगे। ऐन ने एक जगह ये भी लिखा कि जो हुआ उसे बदला तो नहीं जा सकता, लेकिन उसे रोका तो जा सकता है।

जर्मन पुलिस ने परिवार को भेजा यातना कैंप
फिर 4 अगस्त 1944 को जर्मनी की पुलिस ने इस फ्लैट पर रेड मारी और 8 लोगों को पकड़ लिया। दरअसल, किसी को उनके यहां रहने की भनक लग गई थी और उसने नाजियों को इसकी सूचना दे दी थी। फिर एक महीने बाद इन 8 लोगों को दूसरे यहूदियों के साथ ट्रेन में भरकर आउशवित्स यातना शिविर भेज दिया गया। इस ट्रेन में 1000 से भी ज्यादा यहूदी थे। यहां लाकर पुरुषों और महिलाओं को अलग-अलग कर दिया गया। ऐन और उसकी बहन मां के साथ रहीं। जबकि, पिता को दूसरी जगह भेज दिया गया।

कैंप में होता था जानवरों जैसा बर्ताव
कैंप में लाए गए लोगों के साथ जानवरों जैसा बर्ताव किया जाता था। उनके बदन पर नंबर वाला टैटू बनवा दिया गया था। अब नाम नहीं, नंबर से इनकी पहचान होती। बड़े लोगों से मजदूरी करवाई जाती, तो बच्चों पर कुछ साइंस एक्सपेरिमेंट किए जाते। जो लोग किसी काम के नहीं लगते, उन्हें गैस चैंबर में ले जाकर मार डाला जाता। दिन भर काम करवाने के बाद लोगों को तंग कमरों में सोने के लिए भेज दिया जाता। ऐन भी बहन मार्गोट के साथ कैंप में पत्थर तोड़ने का काम करतीं। कुछ दिन बाद दोनों बच्चियों को दूसरे शिविर में भेज दिया गया। सर्द मौसम में वहां टाइफाइड बीमारी फैल गई, जिसकी चपेट में आने से 17 हजार कैदियों की मौत हो गई।

ऐसे हुई ऐन फ्रैंक की मौत
फिर अप्रैल 1945 में ब्रिटिश सेना ने यातना शिविर से लोगों को छुड़वाया. मगर, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। ऐन और मार्गोट को भी टाइफाइड हुआ था। ब्रिटिश सेना के आने से दो तीन हफ्ते पहले ही मार्गोट फिर ऐन की टाइफाइड से जान चली गई थी। उधर, मां की भी मौत हो गई थी। परिवार में सिर्फ पिता ही जिंदा बचे थे। मगर, वह भी इस बात से अंजान थे कि उनकी पत्नी और बेटियों की मौत हो चुकी है। 6 महीने बाद उन्हें पता चला कि उनकी पत्नी और दोनों बेटियां अब इस दुनिया में नहीं रहीं।

पिता ने डायरी को दी किताब की शक्ल
जिस घर में ऐन अपने परिवार के साथ छुपी थीं, एम्स्टर्डम में आज भी वो घर मौजूद है। यह घर ऐन फ्रैंक हाउस के नाम से मशहूर है। दुनिया भर के लोग आज भी इस घर को देखने के लिए आते हैं। आज भी वहां सबकुछ वैसा ही रखा है, जैसा तब रखा था। ऐन की असली डायरी भी वहीं मौजूद है. कहा जाता है कि जिस समय ऐन फ्रैंक के परिवार को पुलिस फ्लैट से निकाल कर ले जा रही थी। तब ओटो फ्रैंक की एक दोस्त ने ऐन की डायरी को अपने पास संभाल कर रख लिया था।

फिर उन्होंने यातना शिविर से लौटने पर ऐन की वो डायरी ओटो फ्रैंक को सौंप दी थी। बेटी की डायरी पढ़कर ओटो फ्रैंक खूब रोए। वह जानते थे कि ऐन लेखिका बनना चाहती थी। इसलिए उन्होंने उसकी डायरी को एक किताब की शक्ल दी। आज इस किताब का 70 से ज्यादा भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है। इसका नाम है ‘द डायरी ऑफ अ यंग गर्ल’। यह होलोकॉस्ट पर लिखी गई सबसे ज्यादा बिकने वाली किताब बन चुकी है।

 

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