कोलकाता : परिक्रमा हिंदू धर्म में एक अनुष्ठान है जिसमें एक व्यक्ति किसी व्यक्ति या वस्तु के चारों ओर दक्षिणावर्त दिशा में परिक्रमा करता है। बता दें कि परिक्रमा मूर्तियों, मंदिरों, पेड़-पौधों, नदियों, पहाड़ों, व्यक्तियों और अन्य वस्तुओं के आसपास की जाती है। हिंदू धर्म में मंदिर में पूजा करने के बाद पूरे मंदिर या एक विशेष मूर्ति की खास तौर पर परिक्रमा की जाती है। शास्त्रों में ऐसा कहा है कि मंदिर में पूजा के बाद भगवान की परिक्रमा करने से ईश्वर की कृपा बनी रहती है और पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं, देवी-देवता प्रसन्न होते हैं और भक्तों के दुख-संकट दूर करते हैं। आइए जानते हैं मंदिर में परिक्रमा से जुड़ी कुछ जरूरी बातों के बारे में।
कैसे की जाती है मंदिर में परिक्रमा
मंदिर में परिक्रमा हमेशा घड़ी की सुई की दिशा में लगाई जाती है, जिसे मंत्रों के उच्चारण के साथ लगभग 3 बार पूरा किया जाता है। जब कोई ऐसा करता है तो उसका दाहिना भाग गर्भगृह के अंदर देवता की ओर होता है और परिक्रमा वेद द्वारा अनुशंसित दक्षिणाचारम या शुभ होती है।
परिक्रमा का महत्व क्या है?
मंदिर में पूजा करने के बाद परिक्रमा करने से तनाव, नकारात्मक भावनाओं का अंत होता है और व्यक्ति को बहुत हल्का महसूस होता है। कहते हैं कि जिस बोझ और अपनी प्रार्थना के साथ व्यक्ति मंदिर में प्रवेश करते है, परिक्रमा मंदिर में भगवान से जुड़ने का एक आध्यात्मिक तरीका बताया गया है। इससे व्यक्ति ईश्वर का मन से ध्यान कर उन्हें नमन करता है इसके साथ ही, जो व्यक्ति परिक्रमा करता है भगवान उस पर प्रसन्न हो जाते हैं और उस व्यक्ति को आशीर्वाद देते हैं।
परिक्रमा दक्षिणावर्त दिशा में क्यों करनी चाहिए?
हिंदू धर्म में दाहिना भाग शुभ और बायां भाग अशुभ माना जाता है। हिंदू बाएं हाथ में प्रसाद स्वीकार नहीं करते या उससे पवित्र वस्तुओं को नहीं छूते। परिक्रमा करते समय, कुछ लोग भगवान के प्रति आस्था और सम्मान दिखाने के लिए मंदिर की दीवारों को अपनी उंगलियों से छूते हैं और उंगलियों को वापस अपने माथे पर लगाकर नमन करते हैं। यदि कोई ऐसा अपनी दाहिनी ओर से करेगा, तो यह करना उनके लिए आसान होगा।