Guru Purnima : गुरु चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम | Sanmarg

Guru Purnima : गुरु चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम

सोमवार 3 जुलाई को गुरुपूर्णिमा है। यह एक ऐसा पावन दिवस है जब हम गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। मनुष्य को जन्म से ही किसी न किसी रूप में गुरु का सान्निध्य प्राप्त होता है। शास्त्रों में गुरु महिमा भगवान से भी बढ़कर बताई गई है। सबसे पहले गुरु माता-पिता होते हैं। इसके बाद शिक्षा गुरु होते हैं जो व्यक्ति को तमाम सांसारिक ज्ञान का उपदेश देने के साथ साथ चरित्र निर्माण की शिक्षा भी देते हैं। इसके बाद स्थान आता है आध्यात्मिक गुरुओं का, जो व्यक्ति को अपने सांसारिक कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर होने की राह दिखाते हैं। अभिप्राय यह है कि इस दुनिया में कुछ भी कार्य करने से पहले उसे सीखना आवश्यक होता है और सिखाने का यह काम गुरु ही करता है। महानगर के कुछ प्रमुख व्यक्तियों ने अपने-अपने गुरुजन को याद करते हुए उन्हें प्रणाम निवेदित किया है –

जब तक व्यक्ति को गुरु का सहारा नहीं मिलता, तब तक उसका कल्याण नहीं हो पाता। गुरु से ही जीवन का पथ प्रदर्शित होता है। स्कूल में पढ़ते हुए मुझे कई गुरुओं का सानिध्य प्राप्त हुआ, किन्तु मेरे पहले गुरु मेरे माता-पिता ही थे, जिन्होंने परिवार के तौर-तरीकों से परिचय कराया, अनेकता में एकता का पाठ पढ़ाया, नैतिक एवं चारित्रिक शिक्षा की अनवरत ज्ञान सरिता प्रवाहित की। बड़ा हुआ तो गुरु रूप में भाई साहब का सानिध्य प्राप्त हुआ जिन्होंने शिक्षा और व्यवसाय के क्षेत्र में मेरा ज्ञानवर्धन किया। मैं उनको कोटि-कोटि प्रणाम करता हूं।

● कुँज बिहारी अग्रवाल, मैनेजिंग डायरेक्टर, रूपा एंड कंपनी

मैं अपना गुरु इमामी के श्री आर.एस. अग्रवाल जी को मानता हूं, जिनके साथ मेरी अनेक भेंट हुई और हर भेंट से कुछ न कुछ ऐसा सीखा जिससे मेरा जीवन प्रभावित हुआ है। मैंने उनकी अनेक सीखों को अपने व्यवसायिक और व्यक्तिगत जीवन में लागू किया है, जिससे मुझे बहुत लाभ भी मिला है। मैं अपना दूसरा गुरु मानता हूं – आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र और आईआईएम कलकत्ता में व्याख्याता प्रोफेसर रंजन दास को। ‘व्यवसाय रणनीति’ पर उनके पाठ मेरे बहुत काम आए हैं।

  • दीपक जालान, एमडी एंड सीईओ, लिंक पेन एंड प्लास्टिक्स लि.

गुरु को याद करते समय मुझे आकाश इंस्टीट्यूट के संस्थापक, एक असाधारण शिक्षक, श्री जे. सी. चौधरी का ख्याल आता है। उन्होंने मुझमें शिक्षण के महान पेशे के प्रति सत्यनिष्ठा और प्रतिबद्धता के मूल्य प्रतिपादित किए। उनका अटूट समर्पण और कड़ी मेहनत पर जोर एक उल्लेखनीय उदाहरण है जो दर्शाता है कि हम कुछ भी कैसे हासिल कर सकते हैं। मेरा मानना ​​है कि एक शिक्षक का प्रभाव कक्षा की सीमा से परे, जीवनभर काम आने वाली सीखों के रूप में आजीवन रहता है।

● सुनील अग्रवाल, निदेशक, आकाश इंस्टीट्यूट

मेरे पहले गुरु निश्चित रूप से मेरे पिताजी थे। वर्तमान में मेरे जीवन में गुरु की भूमिका निभा रहे हैं – श्री सज्जन भजनका जी। पिताजी से जहां मुझे जीवन का सही अर्थ पता चला, सत्यनिष्ठा एवं लग्न का अर्थ समझ आया, वहीं भजनका जी से व्यक्तिगत एवं व्यावसायिक जीवन में निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली। हर परिस्थिति में साहस एवं उत्साह बनाए रखना ही सफलता का मंत्र है। इन्हीं दोनों के कारण पूर्ण सत्यनिष्ठा, आभारी होना, विनम्र रहना और निर्भीक होना ये सब गुण मेरे अंदर समाहित हो गए हैं।

  • संजय अग्रवाल, मैनेजिंग डायरेक्टर, सेंचुरी प्लाई

मेरी प्रथम गुरु मेरी माताजी श्रीमती प्रेमलता देवी अग्रवाल हैं। माँ ने हमेशा धर्म के मार्ग पर चलना सिखाया और यह सीख दी कि समस्या कितनी भी विकट आए कभी भी घबराओ मत, हमेशा संघर्ष करो। जो समस्याओं का सामना करना सीख जाता है, विजय अंततः उसके चरण छूती है। माँ द्वारा दी गई शिक्षा न केवल व्यक्गित जीवन, बल्कि मेरे व्यावसायिक जीवन में भी कदम-कदम पर सटीक एवं उपयोगी प्रमाणित हुई है। इस गुरु पूर्णिमा मैं उन्हें गुरु के रूप में नमन करता हूं।

  • दीपक अग्रवाल, सीएमडी, एलिगेंट स्टील

‘गुरु’ शब्द संस्कृत के दो वर्णों से बना है – ‘गु’ यानी ‘अंधकार या अज्ञान’ और ‘रु’ मतलब ‘हटाना’। गुरु को हमारे जीवन से अंधकार को हटाने वाला माना जाता है। सीखना आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है, हम हर दिन किसी न किसी से कुछ न कुछ सीखते हैं। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर, मैं अपने सभी गुरुओं को हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं जिन्होंने मुझे आज यहां तक ​​पहुंचाया है। गुरुवर बिन ज्ञान नहीं, ज्ञान बिन आत्मा नहीं, ध्यान – ज्ञान – धैर्य और कर्म, सब गुरुवर की ही देन है!

  • ललित भूतोड़िया, मैनेजिंग डायरेक्टर, जेम्स ग्रुप

आचार्य शिवनारायण जी व्यास सन् 1963-1965 कालावधि में कक्षा 9-11 के छात्र के रूप में मेरे हिंदी अध्यापक थे। जयशंकर प्रसाद की कविता “लाज भरे सौंदर्य” एवं “आकाशदीप” कहानी की आचार्य व्यासजी द्वारा की गई व्याख्या ने मेरी साहित्य रुचि का बीजारोपण किया था। किशोर मानस में “बेला विभ्रम की बीत चली रजनीगंधा की कली खिली” की मधुर व्याख्या छायावाद के प्रति मेरे लिए गोमुख सदृश्य थी। “परिवार मिलन” का छंदबद्ध कविता के लिए अखिल भारतीय “काव्य वीणा सम्मान” उसी बीज का वटवृक्ष है।

● अरुण चूड़ीवाल, चेयरमैन, बीएसएल लिमिटेड

मेरे आध्यात्मिक सद्गुरु ब्रह्मानंद जी शास्त्र ने हमेशा गृहस्थ आश्रम में रहते हुए पारिवारिक, सामाजिक, सांसारिक कर्तव्य का पालन करते हुए, ईश्वर वंदना, जप, सेवा, सांसरिक और आध्यात्मिक यात्रा साथ-साथ करने का संदेश दिया। मेरे जीवन वृत्त को भी शिक्षा गुरु जमशेदपुर के महेश चन्द्र जी शर्मा, स्वर्गीय नंद किशोर सिंह और आध्यात्मिक सद्गुरु जमशेदपुर के कालीबाड़ी आश्रम के अधिष्ठाता ब्रह्मानंद जी शास्त्री का सम्पूर्ण प्रभाव रहा। गुरु की सीख पर चलकर भौतिक और आध्यात्मिक निधियों को हम सहज ही पा सकते हैं।

गुरु ही सत्य, गुरु ही मंत्र, गुरु मैत्री करूणा है, गुरु ही तप, अपरिग्रह और तम हरणा है, गुरु ही पूजा, मंदिर-मस्जिद और गुरुद्वारा है, ब्रह्म-विष्णु-शिव समान, गुरु ब्रह्मानंद हमारा है।

  • विनोद अग्रवाल, विनोद पॉजिटिव फाउंडेशन, शिक्षायतन फाउंडेशन

 

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