कोलकाता: हिंदू धर्म में आश्विन मास में पितरों के लिए किए जाने श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि का बहुत महत्व होता है। सनातन परंपरा में जिन तीन प्रमुख ऋण यानि देव ऋण, पितृ ऋण और ऋषि ऋण की बात कही गई है, उसमें पितृ ऋण को उतारने के लिए श्राद्ध को सबसे उत्तम साधन बताया गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार पितृपक्ष के दौरान यदि कोई अपने पितरों से जुड़ी तिथि पर उनके लिए विधि-विधान से श्राद्ध करता है तो उसके पितृगण प्रसन्न होकर उस पर अपनी पूरी कृपा बरसाते हैं।
आईए जानें कितने प्रकार के श्राद्ध किए जाते हैं:
1. श्राद्धनित्य श्राद्ध –
ऐसे श्राद्ध प्रतिदिन किए जाते हैं। इस श्राद्ध को अघ्र्य तथा आवाहन के बिना ही किसी निश्चित अवसर पर किया जाता है।
2. नैमित्तिक श्राद्ध –
यह श्राद्ध देवताओं के लिए किया जाता है। यह श्राद्ध पुत्र जन्म आदि के समय किया जाता है। इसका समय अनिश्चित होता है।
3. काम्य श्राद्ध –
यह श्राद्ध किसी विशेष फल या फिर कहें मनोकामना की पूर्ति के लिए किया जाता है। अमूमन इस श्राद्ध को लोग मोक्ष, संतति आदि मनोकामना पूर्ति के लिए के लिए करते हैं।
4. शुद्धयर्थ श्राद्ध –
यह श्राद्ध शुद्धि की कामना के लिए किया जाता है।
5. पुष्टयर्थ श्राद्ध –
यह श्राद्ध तन, मन, धन, अन्न आदि की पुष्टि के लिए किया जाता है।
6. दैविक श्राद्ध –
इस श्राद्ध को आराध्य देवी-देवताओं का आशीर्वाद पाने के लिए किया जाता है।
7. यात्रार्थ श्राद्ध –
इस श्राद्ध को किसी सुरक्षित और सफल यात्रा की कामना को लिए किया जाता है।
8. कर्मांग श्राद्ध –
इस श्राद्ध को सनातन परंपरा में किए जाने वाले 16 संस्कारों के दौरान किया जाता है।
9. गोष्ठी श्राद्ध –
इस श्राद्ध को पूरे परिवार के सभी सदस्यों के साथ मिलकर सामूहिक रूप से किया जाता है।
10. वृद्धि श्राद्ध –
इस श्राद्ध को परिवार में वृद्धि यानि संतान की प्राप्ति, विवाह आदि की कामना की पूर्ति के लिए किया जाता है।
11. पार्वण श्राद्ध –
यह श्राद्ध पितृपक्ष, प्रत्येक मास की अमावस्या आदि पर बड़े बुजुर्गों जैसे दादा, दादी आदि के लिए किया जाता है।
12. सपिण्डन श्राद्ध –
यह श्राद्ध किसी मृत व्यक्ति के 12वें दिन किया जात है। यह मृत व्यक्ति के पितरों से मिलन की कामना के लिए किया जाता है।
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