कोलकाता : पूर्वांचल का महापर्व है छठ। प्राकृतिक चीजों से होने वाली सूर्योंपासना में ऐसी कई चीजें हैं जो इसे दूसरे पूजा-पाठों से अलग करती हैं। ऐसी ही एक चीज है ‘कोसी भरना’। आखिर क्यों भरी जाती है कोसी? क्यों होती है छठ पूजा में मिट्टी के हाथी की आवश्यकता? आज हम इससे जुड़ी जानकारी आपके लिए लेकर आए हैं। मान्यताओं के अनुसार, जब भी किसी श्रद्धालु की मनोकामना पूरी होती है, तब वह बड़े ही श्रद्धा भाव के साथ छठ के तीसरे दिन शाम के समय भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद घर पर कोसी भराई की पवित्र परंपरा पूरी करता है। अर्थात मनोकामनाओं की पूर्ति के पश्चात व्रती कोसी भराई करती हैं।
छत पर या आंगन में होती है कोसी भराई
बता दें कि सूर्यषष्ठी की शाम अर्घ्य देने के बाद घर के आंगन या छत पर कोसी पूजन होता है। चारों तरफ से गन्ने के समूह से छत्र बनाकर लाल रंग के कपड़े में ठेकुआ, फल और केला रखकर गन्ने को छत्र से बांधा जाता है। गन्ने के छत्र के बीच में मिट्टी का हाथी रखा जाता है। जिसके ऊपर कोसी को मिट्टी के जलते हुए दीये और जलती हुई अगरबत्ती के साथ सजाया जाता है। फिर छठी मईया का गीत गाया जाता है। पूजा की इस प्रक्रिया में अधिकांशतः महिलाओं की भागीदारी होती है, हालांकि घर के पुरुष भी वहां मौजूद होते हैं।
कोसी और मिट्टी का हाथी
मिट्टी से बने हाथी पर कोसी को रखने से उसकी शोभा बढ़ती है। यही कारण है कि कोसी भराई की इस प्रक्रिया के समय मिट्टी के हाथी का उपयोग विशेष रूप से किया जाता है, जिससे उसकी शोभा में चार चांद लग जाते हैं।