कोलकाता : रवीन्द्र सरोवर के आसपास रहने वाले छठव्रतियों को इस बार भी अर्घ्य देने के लिए दूर जाना पड़ेगा। पिछले तीन साल से रवीन्द्र सरोवर को छठ पूजा के दौरान बंद करने के कारण इस इलाके में रहने वाले लोगों को भारी परेशानी हो रही है।
यहां जाने वाले अधिकतर लोग अब या तो अपनी छत पर पूजा कर रहे हैं या तो उन्हें बाबू घाट जाकर पूजा करनी पड़ रही है। इस बारे में अधिकतर स्थानीय लोगों का कहना है कि रवीन्द्र सरोवर जब खुला था तो वहां एक बेहतरीन माहौल में बच्चे से बूढ़े तक यहां आते थे। अब जब से यह छठ पूजा के दौरान बंद कर दिया जाता है, तब से लोगों को इधर-उधर जाना पड़ता है। पूजा के लिए दूसरी जगह पर जाना पड़ता है।
स्थानीय लोगों ने जताई निराशा
इस बारे में चेतला में रहने वाली छठव्रती मिंगू ठाकुर ने बताया कि जब तक यह खुला था तब तक हम सभी वहीं छठ पूजा मनाते थे लेकिन अब जब यह छठ पूजा के दौरान बंद हो गया है तो हम सभी अपने घर के सामने ही छठ मना लेते हैं। इसका कारण यह है कि अन्य जो घाट बनाये गये हैं वह काफी दूर है और बच्चों और प्रसाद के साथ उतना दूर जा पाना संभव नहीं है। उनका कहना है कि उन्हें नहीं पता कि और कहां पर अस्थायी घाट बनाया जा रहा है। रवीन्द्र सरोवर करीब होने के कारण हम सभी पैदल ही वहां चले जाते थे। वहां का माहौल काफी अच्छा है। प्राकृतिक माहौल के बीच सूर्य को अर्घ्य देने में काफी अच्छा लगता था। वहां साफ-सफाई का खास ध्यान दिया जाता है। वहीं हरिदेवपुर के रहने वाले दीपक राय ने बताया कि पहले हम सभी लेक इलाके में जाते थे। रवीन्द्र सरोवर एक बेहतरीन स्थान है लेकिन फिलहाल अब यह छठव्रतियों के लिए बंद है। ऐसे में हमें अब बाटा बजबज स्थित एक लेक में जाना पड़ता है। वहां पर बहुत कीचड़ रहता है फिर भी हमें वहीं छठ करना पड़ता है। यही नहीं रवीन्द्र सरोवर की दूरी मात्र 3 किलोमीटर है जबकि बजबज इलाका हरिदेवपुर से काफी दूर है। यह लगभग 15 किलोमीटर है लेकिन फिर भी हमें वहां जाना पड़ता है। वहीं साकेत झा ने बताया कि हम वहां पहले जाते थे जब यह खुला हुआ करता था, अब हम सभी छत पर ही पूजा कर लेते हैं। हमें पता नहीं है कि कहां-कहां अस्थायी घाट बनाये गये हैं।केएमडीए के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक रवींद्र सरोवर और सुभाष सरोवर के आसपास के रहने वाले छठव्रतियों को घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि इसके लिए अलग व्यवस्था की गयी है। केएमडीए की ओर से छठव्रतियों की सुविधा के लिए कई कृत्रिम घाटों का निर्माण किया जा रहा है।