दक्षिण बंगाल और जंगलमहल में कड़ा मुकाबला होने के आसार | Sanmarg

दक्षिण बंगाल और जंगलमहल में कड़ा मुकाबला होने के आसार

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कोलकाता : बंगाल में इस बार दक्षिणी हिस्सा व जंगलमहल के इलाके इनमें घनघोर लड़ाई की तस्वीर उभरती दिख रही है। बांकुड़ा, आसनसोल, दुर्गापुर, बदंवान, बीरभूम कुछ ऐसी सीटें दक्षिण बंगाल की हैं जहां अभी से कुछ भी कहना बहुत कठिन है। पश्चिम बंगाल के दो क्षेत्र – गंगा के मैदानी इलाके और मेदिनीपुर – राज्य में चुनावी मुकाबले का केंद्र बनते प्रतीत हो रहे हैं। उत्तर बंगाल में जलपाईगुड़ी क्षेत्र और दक्षिण बंगाल में मतुआ क्षेत्र भी राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण हैं। पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 सीट हैं। इन 42 सीट में से 10 अनुसूचित जाति उम्मीदवारों के लिए और दो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में, टीएमसी ने 22 सीट, कांग्रेस ने 2और भाजपा ने 18 सीट जीती थीं। गंगा के मैदानी क्षेत्र में पांच जिले – उत्तर और दक्षिण 24 परगना, कोलकाता, हावड़ा और हुगली शामिल हैं। इस क्षेत्र में लोकसभा की 16 सीट हैं, जिनमें से भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव में सिर्फ तीन पर जीत हासिल की थी। टीएमसी को इस क्षेत्र में राजनीतिक प्रभुत्व के लिए जाना जाता है। उसने सत्ता विरोधी लहर को भांपते हुए, इस बार उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना और हुगली से आने वाली छह सीट पर नए उम्मीदवार उतारे हैं। यहां तृणमूल की अग्नि परीक्षा है।

टीएमसी ने हालांकि राज्य की सभी 42 लोकसभा सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है, लेकिन भाजपा ने केवल बीस सीट पर अपने उम्मीदवार घोषित किये हैं। वहीं, वाम मोर्चा ने सोलह सीट के लिए उम्मीदवारों की घोषणा की है। भाजपा ने पिछले आम चुनाव के दौरान नागरिकता कानून को अपने चुनावी मुद्दों में से एक बनाया था। भाजपा शरणार्थियों के एक वर्ग, विशेष रूप से मतुआ समुदाय के लोगों को लुभाने में सक्षम हुई और बनगांव लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की। भाजपा को सीएए के कार्यान्वयन से सकारात्मक परिणाम की उम्मीद है, जबकि टीएमसी इसे लेकर व्याप्त भ्रम का फायदा उठाना चाहती है।

टीएमसी अपने वरिष्ठ मंत्रियों और कथित प्रभावशाली हस्तियों की गिरफ्तारी से चिंतित है, जो दक्षिण 24 परगना, उत्तर 24 परगना और कोलकाता में संगठन और चुनाव मामलों का प्रबंधन करते थे। उत्तर 24 परगना के प्रभारी ज्योति प्रिय मलिक और कोलकाता और हुगली में पार्टी मामलों की देखरेख करने वाले पार्थ चटर्जी को घोटालों में उनकी कथित संलिप्तता के कारण केंद्रीय एजेंसियों ने हिरासत में लिया है। वहीं, भांगड़ के एक प्रमुख नेता अराबुल इस्लाम और बशीरहाट लोकसभा सीट के संदेशखालि इलाके में यौन हिंसा और जमीन हड़पने के आरोप में वर्तमान में सीबीआई की हिरासत में बंद शाहजहां शेख की गिरफ्तारी ने टीएमसी के लिए चीजों को और अधिक जटिल बना दिया है। जंगलमहल क्षेत्र को बंगाल का आदिवासी क्षेत्र माना जाता है और इसमें पांच जिले – बांकुड़ा, पश्चिम मेदिनीपुर, पूर्व मेदिनीपुर, पुरुलिया और झाड़ग्राम शामिल हैं। इस क्षेत्र में लोकसभा की आठ सीट हैं। वर्ष 2019 के चुनाव में इनमें से भाजपा ने पांच और टीएमसी ने तीन सीट जीती थीं। आदिवासी कुर्मी और महतो समुदायों को लक्षित कल्याणकारी योजनाओं जरिये टीएमसी के पुनरुत्थान और मजबूत प्रभाव के बावजूद शुभेंदु अधिकारी के भाजपा में शामिल होने से क्षेत्र में पलड़ा भाजपा की ओर झुक गया है।

जंगलमहल क्षेत्र में पिछले साल अशांति देखी गई थी, क्योंकि कुर्मी समुदाय के सदस्यों ने अनुसूचित जाति दर्जे की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन और नाकेबंदी की थी। कुर्मी समुदाय तीन सीट पर एक निर्णायक कारक है। राज्य के पर्वतीय और तलहटी के रूप में पहचाने जाने वाले जलपाईगुड़ी क्षेत्र में पांच जिले- अलीपुरद्वार, कूचबिहार, दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी शामिल हैं, जहां भाजपा ने लोकसभा की सभी चार सीटें जीती थीं। यह क्षेत्र 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद से भाजपा का गढ़ बन गया है। वह उत्तर बंगाल में अलगाव की भावना और अलग राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के दर्जे की मांग को लेकर जनता के बीच असंतोष का फायदा उठाने की कोशिश कर रही है। बंगाल के मतुआ क्षेत्र में बनगांव के अलावा नदिया जिले की दो सीटों -रानाघाट और कृष्णानगर पर भी सीएए का प्रभाव पड़ने की संभावना है, क्योंकि यहां पर मतुआ समुदाय की काफी आबादी है। नदिया में भाजपा को जीत मिली थी, जबकि कृष्णानगर सीट पर टीएमसी की महुआ मोइत्रा को जीत मिली थी।

भाजपा ने राणाघाट से मौजूदा सांसद जगन्नाथ सरकार को उम्मीदवार बनाया है, जबकि टीएमसी ने हाल ही में पाला बदलने वाले भाजपा विधायक मुकुट मणि अधिकारी को मैदान में उतारा है। टीएमसी ने महुआ मोइत्रा को कृष्णानगर सीट से फिर से उम्मीदवार बनाया है, जिन्हें नकद लेकर सवाल पूछने के मामले में लोकसभा से निष्कासित कर दिया गया था।

 

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