हर कष्टों से पाये छुटकारा, जानिये मंगलवार के व्रत के बारे में सब कुछ

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कोलकाता : मंगलवार का दिन भगवान हनुमान जी से संबंधित है। इस दिन हनुमान जी की पूजा करने के साथ व्रत रखने से हर संकट से छुटकारा मिल जाता है। इसके साथ ही सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। जानिए मंगलवार व्रत का पूजा और उद्यापन विधि।

मंगलवार क्यों है हनुमान जी का दिन?

स्कंद पुराण के अनुसार, मंगलवार के दिन पवन पुत्र हनुमान का जन्म हुआ था। इसी कारण इस दिन इनकी पूजा करने से विशेष फलों की प्राप्ति होती है और हर संकट से छुटकारा मिल जाता है। वहीं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मंगलवार मंगल ग्रह से भी संबंधित है। इसी कारण कहा जाता है कि कुंडली में मंगल ग्रह को मजबूत करने के लिए हनुमान जी की पूजा अर्चना करें।

कब से शुरू करें मंगलवार का व्रत?

अगर आप मंगलवार का व्रत आरंभ करना चाहते हैं, किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के पहले मंगलवार के दिन इस व्रत को आरंभ कर सकते हैं। इस दिन अपने मन में कामना कह कर आप व्रत शुरू करें। इसके साथ ही 21 या 45 मंगलवार का व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद पूरे मंगलवार होते ही उद्यापन कर दें।

जानें मंगलवार व्रत की पूजा विधि

आपने 21 या 45 मंगलवार का संकल्प लिया, तो उसे पूर्ण अवश्य करें। मंगलवार वाले दिन प्रात: काल उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान आदि कर लें। इसके बाद ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व कोने को साफ करके एक चौकी में भगवान हनुमान की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। आप चाहे, तो हनुमान जी की तस्वीर पूजा घर में ही रख सकते हैं। इसके बाद भगवान हनुमान को लाल रंग के कपड़े पहनाएं और हाथ में थोड़ा सा जल लेकर व्रत का संकल्प लें। अब भगवान हनुमान को लाल रंग का फूल और माला चढ़ाएं। इसके साथ ही सिंदूर लगाएं। फिर भोग लगाएं। भोग में बूंदी के लड्डू या फिर चने और गुड़ का प्रसाद बना सकते हैं। जल चढ़ाने के बाद धूप और घी का दीपक जला लें। दीपक जलाने के बाद सुंदरकांड, चालीसा का पाठ कर लें। पाठ समाप्त करने के बाद आरती कर लें। अंत में भूल चूक के लिए माफी मांग लें। अब दिनभर व्रत रखें। सूर्यास्त से पहले भगवान हनुमान की आरती करने के बाद प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रत खोल लें और भोजन कर लें।

ऐसे करे मंगलवार व्रत का उद्यापन

21 या 45 मंगलवार व्रत रखने के बाद 22वें या 46वें मंगलवार के दिन उद्यापन करना चाहिए। इसके लिए भगवान हनुमान को चोला चढ़ाएं। इसके साथ ही 21 ब्राह्मणों को बुलाकर भोजन कराएं। इसके साथ ही अपनी योग्यता के अनुसार दान -दक्षिणा कराएं। अगर इतने ब्राह्मण नहीं मिल रहे हैं, तो 1, 5 आदि ब्राह्मणों को भी बुला सकते हैं।

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