
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने मंगलवार को गणेश चतुर्थी के दिन महिला आरक्षण बिल नारी शक्ति वंदन अधिनियम के नाम से लोकसभा में पेश कर दिया। इस बिल के विरोध में कोई भी बड़ी पार्टी अबतक नहीं है। चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों इस मुद्दे पर एकसाथ हैं। ऐसे में लोकसभा और राज्यसभा में इसे आसानी से समर्थन मिल सकता है। यह बिल राज्यसभा से साल 2010 में पास हुआ था। उस समय देश में यूपीए की सरकार थी लेकिन अब यह दोबारा से पास करवाना होगा क्योंकि केंद्र सरकार ने इस बार बिल का नाम बदल दिया है। इस बार इसके पास होने में कोई भी दिक्कत नजर नहीं आ रही है।
कई राज्यों का मिल सकता है समर्थन
अगर किसी भी लेवल पर विरोध सामने आता भी है तो उस दल को इसका भुगतान करना पर सकता है। विधान सभाओं से भी इसके पास होने में कोई बड़ी दिक्कत नहीं दिखाई दे रही है। कम से कम 50 फीसदी विधान सभाओं का समर्थन इस बिल को चाहिए। चूंकि, बिल पर कांग्रेस भी साथ है, तो मुश्किल बिल्कुल नहीं लग रही है। वर्तमान समय में हिमाचल प्रदेश, छतीसगढ़, राजस्थान और कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है। देश में 11 राज्य ऐसे हैं, जहां या तो बीजेपी स्पष्ट बहुमत से सरकार में है या फिर किसी न किसी दल या दलों के समर्थन से सरकार चला रही है लेकिन सीएम बीजेपी के हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र ऐसा राज्य है जहां ज्यादा विधायक होने के बावजूद बीजेपी का सीएम नहीं है। बावजूद समर्थन में कोई दिक्कत नहीं आने वाली। इतने समर्थन से ही यह बिल आसानी से विधान सभाओं से भी पास हो जाएगा। हालांकि, यह संख्या इससे ज्यादा भी होने की संभावना है। क्योंकि मेघालय, नागालैंड, सिक्किम में बीजेपी का सीएम जरूर नहीं है लेकिन वह सरकार में शामिल है। लोकसभा, राज्यसभा और विधान सभाओं के समर्थन के बाद बिल पर राष्ट्रपति के दस्तखत होंगे और ‘नारी शक्ति वंदन’ यानी महिला आरक्षण बिल कानून के रूप में देश के सामने होगा।
नारी शक्ति की भागीदारी
लोकसभा में 543 सीटों में सिर्फ 78 महिला सांसद है। राज्यसभा में 238 में 31 महिला सांसद है। छतीसगढ़ में महिला विधायकों की संख्या 14 फीसदी है। पश्चिम बंगाल में महिला विधायक 13.7 फीसदी है। इसके अलावा झारखंड में यह संख्या 12.4 फीसदी है। उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, दिल्ली में 10 से 12 फीसदी महिला विधायक है जबकि अन्य सभी राज्यों में महिला विधायकों की संख्या 10 फीसदी से कम है।