‘महिला आरक्षण बिल’ से संसद में बनेंगे नए समीकरण, समझें पूरा गणित

नई दिल्ली: नए संसद भवन में केंद्र सरकार ने आज पहला विधेयक महिला आरक्षण बिल पेश कर दिया है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने संसद के निचले सदन में ये बिल पेश किया। इस बिल पर कल यानी बुधवार (20 सितंबर) को लोकसभा में चर्चा होगी। इस बिल की खासियत यह है कि इसमें महिलाओं को लोकसभा और राज्‍यों की विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण की सुविधा मिलेगी। माना जा रहा है कि कल ही सरकार विधेयक पर चर्चा के बाद इसे सदन से पारित करा लेगी।

महिला आरक्षण कब तक दिया जाएगा ?

यह बिल करीब 27 सालों से लटका है। साल 1996 में जब ये विधेयक पेश किया गया था, तो उस समय उसके प्रस्ताव में लिखा गया था कि इसे सिर्फ 15 साल के लिए ही लागू किया जाएगा। इसके बाद इसके लिए फिर से विधेयक लाकर संसद के दोनों सदनों से पारित कराना होगा। कानून के जानकारों के मुताबिक, महिला आरक्षण की 15 साल की अवधि लोकसभा में इसके लागू होने के बाद से ही शुरू होगी। अगर ये 2029 में लागू हो जाता है तो ये 2044 तक लागू रहेगा। इसके बाद दोबारा विधेयक संसद में लाना होगा और पूरी प्रक्रिया से गुजरना होगा।

महिला सांसदों की बढे़गी संख्या

महिला आरक्षण लागू होने के बाद संसद के निचले सत्र में कम से कम 181 महिला सांसद होंगी। वर्तमान समय में लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 78 है। अगर परिसीमन के बाद संसद सीटों की संख्‍या बढ़ती है तो महिला सांसदों की संख्‍या में भी बढ़ोतरी होगी। अगर राज्‍यों की बात की जाए तो फिलहाल ज्‍यादातर विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्‍व 15 फीसदी से भी कम है। वहीं, कई राज्‍य विधानसभाओं में तो महिलाओं की हिस्‍सेदारी 10 फीसदी से भी कम है। इसमें देश की 19 राज्यों की विधानसभा शामिल है। इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, ओडिशा, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा और पुडुचेरी है।

27 सालों से लटका है बिल

बता दें कि महिला आरक्षण बिल 27 सालों से पेंडिंग में है। साल 1996 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने पहली बार सदन में महिला आरक्षण बिल पेश किया था। उस समय सदन में भारी विरोध के कारण पास नहीं हो पाया। इसके बाद अलग-अलग सरकारों में समय-समय पर बिल सदन में पेश किया गया, लेकिन भारी विरोध के चलते अभी तक इसे मंजूरी नहीं मिल पाई है।

जब सदन में फाड़ी गई बिल की कॉपियां

साल 1998 और 1999 में बिल का सबसे बड़ा विरोध हुआ। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में बिल को लेकर सदन में जबरदस्त हंगामा हुआ। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच सिर्फ जोरदार बहसबाजी के अलावा कानून मंत्री के हाथ से बिल छीनकर उसकी कॉपियां सदन में फाड़ दी गई थीं। इसके बाद साल 2008 में यूपीए सरकार में बिल को राज्यसभा में मंजूरी मिल गई, लेकिन लोकसभा में पेश न हो पाने के कारण बिल 27 सालों से बिल लटका है।

क्‍या अलग से मिलेगा एससी-एसटी आरक्षण?
लोकसभा और राज्‍य विधानसभाओं में SC-ST वर्ग के लिए पहले से आरक्षित सीटों में ही महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण मिलेगा। अभी लोकसभा में 47 सीटें ST और 84 सीटें SC वर्ग के लिए आरक्षित हैं। संसद की मौजूदा स्थिति के आधार पर कहा जा सकता है कि कानून बनने के बाद 16 सीटें एसटी और 28 सीटें एससी वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। बता दें कि लोकसभा में ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण की कोई व्‍यवस्‍था नहीं है।

 

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