वाम पंथ के एक अध्याय का अंत : दो कमरे के फ्लैट में बुद्धदेव ने गुजार दी पूरी जिंदगी | Sanmarg

वाम पंथ के एक अध्याय का अंत : दो कमरे के फ्लैट में बुद्धदेव ने गुजार दी पूरी जिंदगी

कट्टर मार्क्सवादी नेता की छवि हटायी थी

कृषि और उद्योग दोनों को साथ लेकर चलना चाहते थे

कोलकाता : पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और कद्दावर मार्क्सवादी नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य के निधन के साथ ना केवल एक युग का अंत हो गया, बल्कि पश्चिम बंगाल की राजनीति के ‘भद्रलोक’ भी चले गये। भट्टाचार्य को सादगीपूर्ण जीवन जीने के लिए जाना जाता था क्योंकि वह मुख्यमंत्री रहने के दौरान और उसके बाद पाम एवेन्यू स्थित अपने दो कमरे के सरकारी फ्लैट में ही रहे और उसी में पूरी ​जिंदगी गुजार दी। बुद्धदेव भट्टाचार्य को इतिहास में एक व्यावहारिक कम्युनिस्ट के रूप में जाना जाएगा, जिन्होंने पश्चिम बंगाल में औद्योगीकरण के लिए पूंजीवादियों को लुभाने के वास्ते अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता तक की परवाह नहीं की थी। पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने कट्टर मार्क्सवादी नेता की छवि हटायी थी। वह राज्य में कृषि और उद्योग दोनों को साथ लेकर चलना चाहते थे और राज्य में विकास के लिए जी तोड़ कोशिश भी की थी। लंबे समय से तबीयत खराब रहने के बावजूद कई बार बुद्धदेव भट्टाचार्य ब्रिगेड परेड मैदान में माकपा की सभा में पहुंचे थे। लगातार 24 साल तक विधायक रहने के बाद वह अपनी ही सरकार के पूर्व मुख्य सचिव मनीष गुप्ता से चुनाव हार गए थे।

औद्योगीकरण और रोजगार के लिए की कड़ी मेहनत : बेदाग छवि वाले उत्कृष्ट बंगाली ‘भद्रलोक’ कहे जाने वाले भट्टाचार्य ने सबसे लंबे समय तक लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई कम्युनिस्ट सरकार का नेतृत्व किया, लेकिन राजनीतिक रूप से अत्यधिक ध्रुवीकृत राज्य में वाममोर्चे को लगातार आठवीं बार जीत दिलाने में असफल रहे। पश्चिम बंगाल के सातवें मुख्यमंत्री रहे भट्टाचार्य ने अपनी पार्टी की उद्योग विरोधी छवि मिटाने तथा बंगाल की मरणासन्न अर्थव्यवस्था में नयी जान फूंकने के उद्देश्य से औद्योगीकरण को बढ़ावा देने के लिए काफी मेहनत की। वह युवाओं के लिए रोजगार के अधिक अवसर पैदा करने के मुख्य लक्ष्य के साथ राज्य में उद्योग स्थापित करने के लिए निवेशकों और बड़े पूंजीवादियों को लुभाने में सक्रिय रूप से लगे रहे।

बुद्धदेव ने कहा था- मोदी पीएम बने तो देश के लिए खतरनाक : साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद देश में एनडीए की सरकार आई थी। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को देश का पीएम चुना गया था। चुनाव से पहले बुद्धदेव भट्टाचार्य ने कहा था, अगर मोदी पीएम बनते हैं तो ये देश के लिए बहुत खतरनाक होगा।

33 साल की उम्र में पहली बार बने मंत्री : वह 1977 में पहली बार कोसीपुर निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा के लिए चुने गए और 33 साल की उम्र में ज्योति बसु के नेतृत्व में वाममोर्चा की पहली सरकार में सूचना और संस्कृति मंत्री बने। भट्टाचार्य ने बंगाली संस्कृति, रंगमंच, साहित्य और गुणवत्तापूर्ण फिल्मों को बढ़ावा देने के लिए प्रशंसा अर्जित की और कोलकाता में फिल्म एवं सांस्कृतिक केंद्र ‘नंदन’ की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन 1982 में वह चुनाव हार गये। इससे उन्हें अपना निर्वाचन क्षेत्र बदलकर शहर के दक्षिणी हिस्से में जादवपुर से चुनाव लड़ना पड़ा और वह 1987 में राज्य मंत्रिमंडल में लौटे। हालांकि, एक नौकरशाह के साथ अपने अशिष्ट व्यवहार के लिए कथित तौर पर फटकार लगाए जाने के बाद उन्होंने 1993 में अचानक कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति से दूरी बना ली और उन्होंने ‘दुष्समय’ (बैड टाइम्स) नामक नाटक लिखा। उनकी स्थिति में उस समय नाटकीय बदलाव आया जब उम्रदराज हो चुके बसु का उत्तराधिकार तलाश रही और सत्ता विरोधी कड़ी लहर का सामना कर रही माकपा ने भट्टाचार्य को राज्य के गृह मंत्री के रूप में मंत्रिमंडल में फिर से शामिल किया। तीन साल के भीतर ही वह उपमुख्यमंत्री बने और आखिरकार नवंबर 2000 में मुख्यमंत्री के रूप में बसु का स्थान लिया। अगले वर्ष उन्होंने राज्य विधानसभा चुनावों में वाम मोर्चे को जीत दिलाई और कृषि प्रधान राज्य में तेजी से औद्योगीकरण के लिए महत्वाकांक्षी पहल शुरू की।

एक नजर इस पर : भट्टाचार्य का जन्म 01 मार्च 1944 को उत्तर कोलकाता में एक विद्वान पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ था। उनके दादा कृष्णचंद्र स्मृतितीर्थ एक संस्कृत विद्वान थे जिन्होंने पुजारियों के लिए एक पुस्तिका लिखी थी। वह प्रसिद्ध बंगाली कवि सुकांत भट्टाचार्य के दूर के रिश्तेदार थे, जिन्होंने आधुनिक बंगाली कविता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्हें खुद एक सफल लेखक के रूप में जाना जाता है और वह विभिन्न परिस्थितियों में रवींद्रनाथ टैगोर को उद्धृत करने में माहिर थे। बंगाली में प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक के बाद पूरी तरह से राजनीति में आने से पहले एक शिक्षक के रूप में काम किया और 1960 के दशक के मध्य में माकपा में शामिल हो गए। इस दौरान प्रमोद दासगुप्ता की नजर उन पर पड़ी जिन्होंने बिमान बोस, अनिल विश्वास, सुभाष चक्रवर्ती और श्यामल चक्रवर्ती जैसे बंगाल के अन्य पार्टी नेताओं के साथ भट्टाचार्य को राजनीति सिखायी।

बंद की राजनीति की करते थे निंदा

पार्टी के शक्तिशाली पोलित ब्यूरो के सदस्य होने के बावजूद उन्होंने निडरता से ‘बंद’ (हड़ताल) की राजनीति की निंदा की, जिसे वाम दल विभिन्न मुद्दों पर अपना विरोध दर्ज कराने के लिए बात-बात पर इस्तेमाल करते थे। पार्टी में और उसके बाहर इसके लिए उनकी आलोचना और प्रशंसा दोनों हुई। उन्होंने निवेशकों को आकर्षित करने के लिए अपनी विचारधारा तक की परवाह नहीं की और आए दिन बंद व हड़ताल का आह्वान करने वाले पार्टी के मजदूर संघ सीआईटीयू की सार्वजनिक रूप से निंदा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। लोगों को उनका यह कदम पसंद आया और उनकी लोकप्रियता चरम पर पहुंच गयी और वाममोर्चे ने 2006 के विधानसभा चुनाव में शानदार जीत दर्ज की।

बुद्धदेव ने पद्म भूषण लेने से किया था इनकार

साल 2022 में बुद्धदेव भट्टाचार्य को पद्म भूषण देने की घोषणा की गई थी, लेकिन उन्होंने इसे लेने से इनकार कर दिया। माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने बताया था- बुद्धदेव ने कहा है कि मैं पद्म भूषण सम्मान के बारे में कुछ नहीं जानता। मुझे किसी ने इसके बारे में नहीं बताया। अगर मुझे पद्म भूषण सम्मान दिया गया है तो मैं इसे अस्वीकार कर रहा हूं।

 

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