हावड़ा : हावड़ा में हर जगह नये-नये कॉम्प्लेक्स तैयार हो गये हैं। जहां तहां कंक्रीट के जंगल बन गये। मॉल से लेकर कई स्कूल बन गये परंतु नहीं बदलीं तो इस आधुनिक हावड़ा के ‘आधुनिक लिलुआ’ की तस्वीरें जहां पर थोड़ी बारिश भी उसे दरिया बना देती है। यहां गत 3 दिनों से लगातार हो रही बारिश ने कहर बरपा रखा है। यह हालात आज के नहीं बल्कि बरसों के हैं। जलजमाव की यह समस्या आज की नहीं बल्कि सालों पुरानी है। हम यहां बात कर रहे हैं लिलुआ थानांतर्गत बामनगाछी के विवेकनगर की जहां पर केंद्रीय विद्यालय बामनगाछी स्कूल स्थित है। यहां हल्की बारिश ही घर और स्कूल में के लोगों के लिए तूफान ला देती है। दरअसल तस्वीरों में देखने से लगता है कि यह एक तालाब है मगर यह पूरा इलाका है जो हल्की बारिश में ही पानी में डूब गया है। यहां सड़कों की हालत इतनी खराब है कि लोग चलने में खौफ खाते हैं। वहीं उस सड़क पर बारिश के पानी जमा होने से लोगों के रोंगटे खड़े हो जा रहे हैं। यहां केंद्रीय विद्यालय बामनगाछी में जहां प्राथमिक से उच्च विद्यालय के सैकड़ों बच्चे पढ़ते हैं। वे भी सुबह के समय इन सड़कों से गुजरने में डरते हैं। अब स्थिति यह है कि बारिश के कारण इस स्कूल में पिछले एक सप्ताह से कक्षाएं ऑनलाइन चल रही हैं क्योंकि छोटे बच्चे जिनके कंधों से भी जलजमाव का पानी अधिक हो गया है। ऐसे में कहीं बच्चे डूब न जायें, इसलिए स्कूल ने यह निर्णय लिया है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस समस्या के समाधान के लिए न तो कोई जनप्रतिनिधि ही उनकी सुध लेने आता है और न ही इस समस्या का समाधान हो पा रहा है।
सालों से है यह नारकीय अवस्था : दरअसल जहां केंद्रीय विद्यालय का परिसर है वहां से गुजरनेवाली सड़क का नाम विवेकानंद रोड है। मगर यहां पर पढ़नेवाले बच्चे, शिक्षक व अभिभावकों का कहना है कि उन्होंने बारिश के दौरान कभी भी इस सड़क को ही नहीं देखा है। उनका कहना है कि इस पानी में झील का पानी, बारिश का पानी और नालियों का गंदा पानी मिला हुआ है। इसके कारण उन्हें बीमार होने का खतरा मंडराता रहता है। अक्सर कभी बच्चे तो कभी अभिभावक इस जलजमाव से होकर गुजरते हैं तो इसमें गिर जाते हैं। यहां रहनेवाले बादल मल्लिक का कहना है कि यहां आज से नहीं बल्कि 5 सालों से यही स्थिति है। अक्सर बारिश के कारण यहां पर कमर तक पानी हो जाता है। दूर दूर तक देखने पर केवल पानी ही पानी नजर आता है। यहां रहनेवाली शांति मल्लिक ने कहा कि यहां 12 महीने एक ही नजारा रहता है। घरों में पानी आ जाता है और यहां तक कि सांप भी घर में घुस जाते हैं। पलंग पर बैठकर खाना बनाना पड़ता है। उन्होंने राज्य सरकार और हावड़ा निगम से अपील की कि उन्हें जल्द से जल्द इस नारकीय पीड़ा से मुक्ति दिलाई जाए।