चैताली तिवारी और तीन अन्य को नहीं मिली अग्रिम जमानत

हाई कोर्ट के डिविजन बेंच ने खारिज की याचिका
सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : आसनसोल नगरनिगम में विपक्ष की नेता व पार्षद चैताली तिवारी व तीन अन्य की अग्रिम जमानत याचिका हाई कोर्ट ने खारिज कर दी है। सुनवायी समाप्त होने के बाद हाई कोर्ट ने फैसला रिजर्व कर लिया था। जस्टिस देवांशु बसाक और जस्टिस मो. शब्बार रसीदी ने वृहस्पतिवार को अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि उनकी याचिका खारिज की जा रही है। उनके खिलाफ आसनसोल थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई है और इसी सिलसिले में यह अग्रिम जमानत याचिका दायर की गई थी।
डिविजन बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि चैताली तिवारी के अलावा, आसनसोल के पूर्व विधायक व मेयर जीतेंद्र तिवारी, एक पार्षद और एक राजनीतिक नेता पिटिशनर हैं। यहां गौरतलब है कि चैताली तिवारी ने हाई कोर्ट के जस्टिस राजाशेखर मंथा के कोर्ट में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज करने के लिए पिटिशन दायर किया था। जस्टिस मंथा ने मामले की सुनवायी के दौरान चैताली तिवारी के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं की जाने का आदेश दिया था। इसके साथ ही जांच में सहयोग करने और अपना बयान दर्ज कराने का आदेश दिया था। पिटिशनर की तरफ से अग्रिम जमानत याचिका दायर करने की बात कही गई तो जस्टिस मंथा ने सुनवायी नहीं होने तक कोई कठोर कार्रवाई की जाने पर रोक लगा दी थी। डिविजन बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि राज्य के मुताबिक इस दौरान चैताली तिवारी ने हाई कोर्ट से मिले सुरक्षा कवच का बेजा इस्तेमाल किया है। उन्होंने पूछताछ के दौरान जांच को गलत दिशा में मोड़ने की कोशिश की और गवाहों को खामोश करने के लिए अपनी राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल किया। पूछताछ के दौरान वे अपना बयान बदलती रहीं। उन्होंने कहा था कि कंबल वितरण का आयोजन उन्होंने नहीं किया था जबकि पिटिशन में उन्होंने माना है कि इसका आयोजन उन्होंने किया था। इसके साथ ही इस कंबल वितरण कार्यक्रम के लिए नगर निगम और बिजली विभाग से कोई अनुमति नहीं ली गई थी। जिस स्थान पर यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था उसके मालिक से भी कोई अनुमति नहीं ली गई थी। कंबल वितरण के लिए छह हजार कूपन बांटे गए थे जबकि वितरण के लिए कुल तीन हजार कंबल खरीदे गए थे। यहां गौरतलब है कि कंबल वितरण के दौरान मची भगदड़ में चार लोग मारे गए थे और काफी संख्या में लोग घायल हुए थे। डिविजन बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि जांच पूरी नहीं हो पाने के कारण अभी तक चार्जशीट दाखिल नहीं की गई है। लिहाजा चार्ज फ्रेम किए जाने का सवाल ही नहीं उठता है। डिविजन बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि अग्रिम जमानत याचिका पर विचार करते समय अपराध की गंभीरता और सजा की मियाद पर विचार किया जाना चाहिए। हिरासत में लेकर पूछताछ आवश्यक होने पर अग्रिम जमानत याचिका याचिका खारिज की जा सकती है। इसके अलावा अगर ऐसा नहीं हो तब भी अग्रिम जमानत याचिका खारिज की जा सकती है।

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