एक्सरसाइज करते समय ज्यादातर यंगस्टर्स लाउड म्यूजिक सुनना पसंद करते हैं। पार्क हो या जिम सेंटर, दोनों जगह पर म्यूजिक के साथ वर्क आउट एंज्वॉय करते हुए लोग देखे जा सकते हैं लेकिन इससे किसी तरह के लाभ के बजाय नुकसान होता है। हाल में ही किए गए शोध इससे पूरी तरह बचने की सलाह देते हैं।
क्या कहता है शोध: आमतौर पर यंगस्टर्स एक्सरसाइज करते समय लाउड म्यूजिक सुनते हैं। यही नहीं, हाल ही में न्यूजीलैंड स्थित वेलिंगटन विश्वविद्यालय में किए गए शोध में पाया गया कि 90 फीसदी युवा, तेज साउंड मेें म्यूजिक सुनने के आदी होते हैं। यह साउंड इतनी तेज होती है कि सामान्य अवस्था में परेशानी पैदा करती है।
फिर एक्सरसाइज के दौरान तो शरीर का नर्वस सिस्टम इस तरह से काम करता है कि तेज म्यूजिक उसे सीधे अपना काम करने में बाधा पहुंचाता है। हालांकि विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि थोड़े बहुत हल्के साउंड में म्यूजिक चल सकता है।
क्या है असल समस्या: म्यूजिक हमारे लिए हानिकारक नहीं है। यहां तक कि इसका प्रयोग कई बीमारियों के इलाज में भी किया जा रहा है। इसे म्यूजिक थेरेपी कहा जाता है लेकिन इसे काफी नियंत्रित ढंग से एक खास डेसिबल का म्यूजिक सीमा के बीच और विशेषज्ञों की निगरानी में किया जाता है जबकि जिम में चलने वाला म्यूजिक इस डेसिबल सीमा से काफी अधिक का होता है। रिसर्च बताते हैं कि 80-85 डेसिबल से अधिक तीव्रता का म्यूजिक, नर्वस सिस्टम और हार्ट बीट्स पर बुरा प्रभाव डालता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ट्रेड मिल या फिर वेट ट्रेनिंग के समय तेज संगीत खून के बहाव को थोड़ा अनियंत्रित कर देता है।
क्या है डेसिबल: एक सामान्य म्यूजिक प्लेयर का अधिकतम साउंड 120 डेसिबल के करीब होता है। डीजे में जो संगीत बजता है, वो 150 डेसिबल से अधिक होता है। रॉक कंसर्ट में आगे की कतार पर लगभग 120 डेसिबल का शोर होता है। एक विमान जब टेक ऑफ करता है तो इससे 140 डेसिबल तक का शोर होता है। 80 से ऊपर डेसिबल सुनना नुकसानदेह होता है।
लाइट म्यूजिक है बेस्ट: युवा अक्सर सोचते हैं कि लाउड म्यूजिक के साथ एक्सरसाइज की जाए तो ज्यादा मजा आता है और इससे उनका जोश भी चरम पर पहुंच जाता है लेकिन ऐसा है नहीं। एक्सरसाइज के दौरान तेज साउंड जोश का केवल आभास देता है। सच्चाई यह है कि स्लो म्यूजिक हो तो कंफर्ट, मोटिवेशन और एंज्वॉयमेंट, तीनों बेहतर होते हैं। रिलैक्सिंग एक्सरसाइज और स्ट्रेचिंग के दौरान स्लो म्यूजिक सुनना हर नजरिए से लाभप्रद है लेकिन यहां भी एक बात ध्यान में रखने वाली है कि म्यूजिक हेडफोन के जरिए जहां तक हो सके, कम सुना जाएं। ● नरेंद्र देवांगन