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उत्तरकाशी: उत्तराखंड में मजदूरों को फंसे 16 दिन से ज्यादा हो चुके हैं। उन्हें निकालने के लिए वर्टिकल ड्रिलिंग से लेकर रैट होल तकनीक का भी इस्तेमाल किया गया है। ख़बर लिखने तक मजदूर नहीं निकले हैं बस थोड़ी ही देर में निकाले जाएंगे। मजदूरों को निकालने में इस्तेमाल हुए सारे तकनीक में रैट होल माइनिंग तकनीक को सबसे अहम बताया जा रहा है। आपको बताते हैं कि रैट होल माइनिंग क्या है और इस तकनीक का पहले इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया।
रैट होल माइनिंग क्या है?
रैट होल माइनिंग में खदानों में काम करने वाले लोग सुरंगों में नीचे उतरते हैं। बेहद संकीर्ण सुरंग में घुसकर वे कोयला निकालते हैं। सुरंग इतना संकीर्ण होता है कि बमुश्किल एक समय में एक आदमी सुरंग में अट पाए और फिर वह शख्स चूहे की तरह हाथों से सुरंग खोद मलबा हटाता है। इसी तकनीक के सहारे अब 41 मजदूरों की जिंदगी बचाने की कोशिश जारी है।
इस माइनिंग पर क्यों है विवाद ?
रैट होल माइनिंग की तकनीक खदान में काम करने वाले लोगों के लिए बहुत खतरनाक साबित हुई है। इस लिए साल 2014 में एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस पर रोक लगा दी थी। बावजूद इसके मेघालय जैसे राज्य में इसका इस्तेमाल जारी रहा।
रैट माइनिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी के प्रतिबंध को रद्द कर दिया था और वैज्ञानिक तरीके से राज्य में कोयला खनन को अनुमति दे दी थी। तब राज्य की नेशनल पीपल्स पार्टी और बीजेपी के समर्थन वाली सरकान ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का श्रेय बटोरा था। हालांकि कहते हैं कि ऊपरी अदालत के फैसले से राज्य में रैट माइनिंग को लेकर चीजें थोड़ी उलझ गईं।