गर्मी में तपे लोग तो करायी मेंढक और मेंढकी की शादी | Sanmarg

गर्मी में तपे लोग तो करायी मेंढक और मेंढकी की शादी

– अच्छी बारिश के लिए ये अजब-गजब टोटके आपको कर देगी हंसते-हंसते लोटपोट

कोलकाता : तपती गर्मी से लोगों का हाल बेहाल है। भले ही केरल में आज यानी गुरुवार को मॉनसून ने दस्तक दे दी है लेकिन आज मौसम विभाग ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अभी बंगाल में बारिश के कोई आसार नहीं है। इसी बीच आज महानगर के राम मंदिर में पुजारियों ने तपती गर्मी से बचने के लिये भगवान की पूजा-अर्चना की और हवन किया ताकि बारिश हो। क्या आप जानते हैं कि कई जगहों पर बारिश के आगमन के लिये कई प्रकार के रस्मों को निभाया जाता है।

इसके अलावा एक से बढ़कर एक ऐसे टोटके किये जाते हैं जो आपको हंसते हंसते लोट-पोट करा देंगे। जानें गांव वाले बारिश लाने के लिए क्या-क्या करते हैं। इन्हीं सब के बीच आज हम आपको बताने जा रहे हैं, कई इलाके के लोग तो सदियों से इस परम्परा को निभाते आ रहे है वे आज भी बारिश होने की बात को वे 100 फीसदी सच मानते हैं।

होती है मेंढक और मेंढकी की शादी

  • बारिश को बुलाने के लिये लोग विधि विधान से मेंढक और मेंढकी की शादी कराते हैं ताकि इंद्र भगवान खुश हो और बारिश हो, क्योंकि बारिश ना होने की वजह से सब फसलें बर्बाद होती हैं और सूखे के आसार होते हैं। दरअसल माना जाता है कि मेंढक-मेंढकी की इस शादी का मौसम कनेक्शन है। मानसून के दौरान मेंढक बाहर निकलता है और टर्राकर मेंढकी को आकर्षित करता है। मेंढक-मेंढकी की शादी एक प्रतीक के तौर पर कराई जाती है जिससे वो दोनों मिलन के लिए तैयार हो जाएं और बारिश आ जाए। कुल मिलाकर लोगों इंद्रदेव को खुश करने के लिए ये शादी करवाई जाती है।
  • मध्य प्रदेश में अच्छे मॉनसून के लिए स्थानीय लोगों ने जीवित शख्स की शवयात्रा निकालने ती परम्परा है। पूरे इलाके के लोग इस दौरान शव यात्रा में शामिल होते है। ग्रामीणों का मानना है कि ऐसा करने से अच्छी बारिश होती है।
  • बारिश में विलंब हुआ तो श्मशान को हल से हांकने की परंपरा निभाई जाती है, जबकि श्मशान में कभी नहीं चलाया जाता है। ये परंपरा सिंहाड़ और कुराबड़ के बीच कायम है।
  • उदयपुर में बीएन कॉलेज, चंपा बाग के पास हस्तीमाता को पूजा जाता है। माता को चढ़ावा चढ़ाया जाता है और गीत गाते हैं बरसो नी इंदरराजा, थाने कुण जी विलमाया…- मुस्लिम समाज में भी आब-ए-बारां किया जाता है, यानी बारिश की पुकार की जाती है।
  • रामचरित मानस के पाठ भी किए जाते हैं। सोई जल, अनल, अनिल संघाता, होइ जलद जग जीवनदाता। अत्यधिक विलंब होने और उमस होने की स्थिति में शिवलिंग को पानी में डुबोया जाता है। घर से राब लेकर पहाड़ी पर जाते हैं और वहीं राब इंद्र देव को चढ़ाकर पीते हैं। ये परंपरा गोगुंदा में डूंगरी राब के नाम से निभाई जाती है। कोलर का गुड़ा में आज भी राब बना कर जाते हैं। इसी तरह उजरणी परंपरा के तहत गांव के प्रत्येक देवता को न्योता जाता है, प्रसन्न किया जाता है।
  • मध्यप्रदेश के कई गांवों में ऐसा माना जाता है कि शिवलिंग को पूरी तरह से पानी में डूबोकर रखे जाने से अच्छी बारिश होती है।
  • बारिश को बुलाने के लिए “बेड़” नाम का एक टोटका भी आजमाया जाता है। विदिशा के एक पठारी कस्बे की मान्यता के मुताबिक गाजे-बाजे के साथ ग्रामीण महिलाएं किसी खेत पर अचानक हमला बोल देती हैं। वो खेत पर काम कर रहे किसान को बंधक बना लेती हैं। किसान को गांव में लाकर दुल्हन की तरह सजाया जाता है और किसान की पैसे देकर विदाई की जाती है। मान्यता है कि ऐसा करने से इंद्र देव प्रसन्न होते है।
  • मध्यप्रदेश के ही खंडवा जिले के बीड़ में गांव के लोग मंदिर के कैंपस में खाली मटके जमीन में गाड़ देते हैं और अच्छे मानसून की कामना करते हैं।
  • उज्जैन की बड़नगर तहसील में पंचदशनाम जूना अखाड़ा के श्री शांतिपुरी महाराज ने साल 2002 में बारिश के लिए जमीन के अंदर 75 घंटे की समाधि ली।
  •  बुंदेलखंड में अच्छी बारिश के लिए महिलाएं जंगल में जाकर गाकड (बाटी) बनाती हैं। उसे खुद और पूरे परिवार के साथ मिल बांटकर खाती है। माना जाता है कि इससे अच्छी बारिश होती है।
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