Ayodhya Ram Mandir Innaugration : राम लला ने अदालत में ऐसे लड़ी लंबी कानूनी लड़ाई

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करोड़ों हिंदुओं की आस्था के केंद्र में हैं भगवान श्री राम, कोई उनको मर्यादा पुरुषोत्तम राम के रूप में पूजता है तो कोई सियापति रामचंद्र के रूप में, कोई कौशल्या नंदन के रूप में, तो कोई रघुनंदन के रूप में और सीधे सरल भक्तों के लिए तो वे केवल राम हैं जिनका नाम वे दिन रात जपते हैं। भारत के जनमानस में रचे बसे हैं राम। दु:ख में राम हैं तो सुख में भी राम हैं। हम कह सकते हैं कि रोम-रोम में राम हैं। भगवान श्री राम का बाल रूप भी मनमोहक और प्यारा है। जैसे अपने कृष्ण अवतार में वे यशोदानंदन लड्डू गोपाल के रूप में पूजे जाते हैं, वैसे ही अपने राम अवतार में वे अयोध्या में राम लला के रूप में पूजे जाते हैं। उत्तर प्रदेश में नन्हें बालक को प्यार से लला और बालिका को लाली कह कर पुकारा जाता है। भगवान विष्णु के अयोध्या के राजा दशरथ के घर मानव रूप में जन्म लिया तो उनको यहां राम लला के रूप में पूजा जाता है। जहां वे जन्मे, वहीं उनका जन्मभूमि मंदिर होगा, यह स्वाभाविक है।

● जब आस्था पर चोट हुई

अयोध्या के रामकोट क्षेत्र में है राम लला का मंदिर, जहां भगवान राम बाल रूप में विराजमान हैं, विदेशी आक्रांता बाबर के सेनापति मीर बाकी ने 1528 ईसवी में राम जन्मभूमि मंदिर तोड़ कर यहां मस्जिद बनवा दी। बस उसके बाद से ही आरंभ हो गया राम भक्तों का संघर्ष, हिंदुओं की आस्था पर चोट भारत का समाज सहन नहीं कर पाया। समय-समय पर खूनी संघर्ष हुए। विश्व हिंदू परिषद के अनुसार 1530 से लेकर अब तक श्री राम जन्मभूमि मंदिर के लिए जितने खूनी संघर्ष हुए उनमें लगभग 4 लाख भक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दी।

● पहला मुकदमा

कानूनी लड़ाई 1885 में निर्मोही अखाड़े ने 15 जनवरी को शुरू की। महंत रघुवर दास ने पहला मुकदमा दायर किया। उन्होंने राम चबूतरे पर मंदिर बनाने की अनुमति अदालत से मांगी। अदालत में उनकी अर्जी रद्द कर दी गयी।

● जब मूर्ति प्रकट हुई

श्री राम जन्मभूमि मंदिर में नया मोड़ तब आया, जब 22 दिसंबर 1949 की रात को राम लला की मूर्ति विवादित मस्जिद में प्रकट हुई। हिंदुओं ने राम लला की पूजा और मुसलमानों ने नमाज अदा करने की अर्जी अदालत में दी। अदालत ने विवादित भवन में ताला लगाने का आदेश दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि राम लला की पूजा अर्चना जारी रहेगी, मूर्तियां जहां हैं वहीं रहेंगी, मुस्लिम पक्षकारों को पूजा-पाठ में रुकावट न डालने का आदेश दिया।

मंदिर की लड़ाई में फिर एक नया मोड़ आया, 29 अगस्त 1964 को विश्व हिंदू परिषद की स्थापना हुई। उन्होंने राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन शुरू कर दिया, 1989 में भाजपा भी लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा के साथ राम मंदिर आंदोलन में कूद गयी। मंदिर मस्जिद के पक्षकार, हिंदू समाज,राजनीतिक दल, साधु-संत, अखाड़े, सब राम जन्मभूमि की लड़ाई लड़ रहे थे लेकिन जिस राम लला के लिए लड़ाई थी, वो कानूनी लड़ाई में कहीं पक्षकार ही नहीं थे।

● इन्होंने मुकदमा दायर किया राम लला की आेर से

राम लला नन्हंे बालक हैं पांच वर्ष के,अपनी लड़ाई लड़ें तो कैसे लड़ें ! अदालत जाएं तो कैसे जाएं ! इसका हल भी विश्व हिंदू परिषद ने निकाला। इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज देवकीनंदन अग्रवाल ने इस मुकदमें की सुनवाई की थी। रिटायर होने के बाद वे विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता बन गए। संगठन ने उनको उपाध्यक्ष पद दिया। कानून के जानकार वे थे ही। उन्होंने 1 जुलाई 1989 को भगवान राम लला विराजमान की ओर से इलाहाबाद हाई कोर्ट में मुकदमा दायर किया। उन्होंने अपने को राम लला के निकट सखा, अभिन्न मित्र के रूप में उनका पक्षकार पेश किया।

● प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति जीवित इकाई होती है

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति जीवित इकाई होती है और अपना मुकदमा लड़ सकती है लेकिन जब वह नाबालिग होती है, उसे किसी को माध्यम बनाना पड़ता है। राम लला के सखा बने इलाहाबाद हाई कोर्ट के रिटायर जस्टिस देवकीनंदन अग्रवाल। उनकी मृत्यु के बाद विहिप के त्रिलोकी नाथ पांडे राम लला के निकट सखा बने। भारत की न्याय प्रक्रिया संहिता के की धारा 32 के अनुसार भी मंदिर का प्राण प्रतिष्ठित विग्रह मनुष्य के समान है और उसको कानूनी केस में पक्षकार बनाया जा सकता है। राम लला के सखा की याचिका अदालत ने स्वीकार कर ली।

● पहली सफलता

राम लला को पहली सफलता अक्टूबर 1991 में मिली जब अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार को अधिगृहीत जमीन का कब्जा लेने को कहा लेकिन साथ ही सख्त निर्देश दिया कि किसी तरह का स्थायी निर्माण यहां नहीं होगा। उत्तर प्रदेश की तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार ने 1992 में अधिगृहीत 42.09 एकड़ ज़मीन राम जन्मभूमि ट्रस्ट को सौंप दी। यहां ज़मीन के समतलीकरण का काम शुरू हुआ। मुस्लिम पक्ष ने रोक लगाने की अर्जी हाईकोर्ट में दी, उनकी अर्जी खारिज कर दी गयी। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, 23 जुलाई 1992 को सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी तरह के निर्माण पर रोक लगा दी। अगले ही महीने प्रधानमंत्री कार्यालय में अयोध्या सेल का गठन कर दिया गया, उस समय नरसिंह राव देश के प्रधानमंत्री थे। विश्व हिंदू परिषद और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी की बैठकों का कोई हल नहीं निकला। लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा बिहार में रोक कर उनको गिरफ्तार कर लिया गया। इधर विहिप ने 6 दिसंबर को कार सेवा की घोषणा कर दी। लाखों की संख्या में एकत्रित कार सेवक विवादित ढांचे पर चढ़ गए और देखते ही ढांचा गिर गया। सुरक्षा बलों ने गोलियां चलायीं। केंद्र के आदेश पर पूरा परिसर केंद्रीय सुरक्षा बलों ने अपने कब्जे में ले लिया। फिर एक लंबी लड़ाई चली। विवादित ढांचा गिराए जाने की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन किया गया।

● जब आया फैसला

राम लला अपना मुकदमा लड़ते रहे। 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। पूरे विवादित परिसर को तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया, जिसमें एक तिहाई हिस्सा राम लला को मिला, बाकी दो में से एक निर्मोही अखाड़े को और दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का कहा। इसके खिलाफ सुन्नी वक्फ बोर्ड और अखिल भारतीय हिन्दू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने ज़मीन के बंटवारे पर रोक लगा दी। मतलब राम लला फिर से खाली हाथ।

● जस्टिस उदय ललित अलग हुए

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला संवेदनशील है। कोर्ट से बाहर सभी पक्षों की सहमति से इसका समाधान खोजना चाहिए; लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाया। फरवरी 2017 से सुप्रीम कोर्ट ने तेजी से सुनवाई शुरू की। 2018 में मुख्य पक्षकारों के अलावा सभी 32 हस्तक्षेप अर्जियां रद्द कर दीं। तीन जजों की बेंच सुनवाई करती रही। 2019 जनवरी से पांच सदस्यीय खंडपीठ ने सुनवाई शुरू की लेकिन जस्टिस उदय ललित इससे अलग हो गए। उनका तर्क था कि वे आरोपी कल्याण सिंह के वकील रहे हैं इसलिए उनका खंडपीठ का सदस्य होना ठीक नहीं है।

● जब ऐतिहासिक फैसला आया

नए खंडपीठ का गठन किया गया। खंडपीठ ने मध्यस्थता पैनल बनाने को कहा लेकिन बातचीत पूरी तरह गुप्त रखने को कहा। मध्यस्थता पैनल मामला सुलझाने में असफल रहा। 6 अगस्त 2019 से प्रतिदिन सुनवाई शुरू हुई। चालीस दिन की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा। सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर 2019 को अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया। विवादित इमारत को राम लला का जन्म स्थान माना और पूरी ज़मीन राम लला विराजमान को दे दी।

राम लला (नाबालिग) लंबी लड़ाई के बाद केस जीते। उनके केस जीतने की खुशी करोड़ों हिंदुओं को हुई। पांच फरवरी 2020 को श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की गयी, 5 अगस्त 2020 को स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया, इसी साल 11 नवंबर को मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष ऩृपेंद्र मिश्र ने मंदिर निर्माण कमेटी का गठन किया। दो साल बाद 2022 में एक जून को मंदिर के गर्भगृह में पहली शिला रखी गयी, मंदिर बन रहा है और 22 जनवरी 2023 को राम लला की उनके भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। तीस साल की कानूनी लड़ाई में अंतत राम लला जीते, यह उनकी नहीं करोड़ों हिंदुओं की आस्था और भक्ति की जीत है।

 

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