ताने सुनकर भी नहीं मानी हार, बंगाल की महिला Cab Driver बनी मिसाल

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सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : कहते हैं अगर हौसला बुलंद हो तो कोई भी बाधा आड़े नहीं आती है। कुछ इसी तरह पश्चिम बंगाल की महिला ऐप कैब ड्राइवर दिप्ता घोष ने लोगों के ताने सुनकर भी हार नहीं मानी और दूसरी महिलाओं के लिये अब वह एक मिसाल बन गयी हैं। टॉलीगंज के बांसद्रोणी में रहने वाली 30 वर्षीया दिप्ता घोष ने जलपाईगुड़ी गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक्स एण्ड कम्युनिकेशन विभाग में पढ़ाई की है। बी. टेक की छात्रा रही दिप्ता वर्ष 2021 से ऐप कैब चला रही हैं। मजबूरियों और जिम्मेदारियों ने कुछ यूं कर दिया कि इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री के बावजूद दिप्ता अपनी नौकरी छोड़ कैब ड्राइवर बन गयी हैं। सन्मार्ग से खास बातचीत में दिप्ता घोष ने अपने जीवन से जुड़े कई पहलुओं को साझा किया।
कुछ यूं ऐप कैब ड्राइवर बनीं दिप्ता
ऐप कैब ड्राइवर बनने की दिप्ता की दास्तां कुछ यूं शुरू हुई कि कॉलेज से वर्ष 2015 में पास होने के बाद उन्होंने कुछ करने का सोचा। हालांकि कोलकाता के बाहर दिप्ता को काम करने की इच्छा नहीं थी। ऐसे में उन्होंने कोलकाता में ही एक ऑफिस में जॉब शुरू किया, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। वर्ष 2017 के मध्य में ट्रेन दुर्घटना के कारण दिप्ता के माथे पर 10 स्टिच लगाये गये और उन्हें 6 महीने पूरी तरह बेड रेस्ट करने को कहा गया। ठीक होने के बाद उन्होंने एक स्कूल में जॉइन किया, लेकिन उसमें वेतन काफी कम होने के कारण वह नौकरी छोड़ दी। इसके बाद 2021 में उन्होंने एक निजी ऑफिस में काम करना चालू किया। इस बीच, वर्ष 2020 में दिप्ता के घर पर गाड़ी आयी। सितम्बर महीने में गाड़ी आयी और इसी बीच उनके पिता की मौत स्ट्रोक के कारण हो गयी। इसके बाद घर में मां और छोटी बहन को संभालने के लिये केवल दिप्ता ही थीं और जहां वह काम कर रही थीं, उस रुपये से उनके घर का भरण-पोषण नहीं हो पा रहा था। दिप्ता ने कहा, ‘मेरी मां पद्मश्री घोष ने मुझे यह सुझाया कि तुम ऐप कैब ड्राइवर बन जाओ। मैं गाड़ी चलाना जानती थी, लेकिन केवल गाड़ी चलाना जानना और कॉमर्शियल वाहन चलाने में काफी अंतर होता है। हालांकि घर की मजबूरियों ने कोई और चारा नहीं छोड़ा जिसके बाद मैंने ऐप कैब चलाना शुरू कर दिया।’
अब भी झेलती हूं लोगों के ताने
दिप्ता ने कहा, ‘शुरुआत में 1,2 या 3 ट्रिप ही चलाती थी। धीरे-धीरे ट्रिप की संख्या बढ़ानी मैंने चालू की। अब तो बगैर किसी झिझक या शर्म के कैब चलाती हूं।’ हालांकि अब भी लोगों के ताने दिप्ता को झेलने पड़ते हैं। इस पर उन्होंने कहा, ‘शुरुआत में डर लगता था। कुछ लोग देखकर कहते थे कि यह महिला भला कैसे चलायेगी, महिला है तो जरूर गलत ही चलायेगी। इस तरह की मानसिकता आज भी कुछ लोगों में है और आज भी लोगों के ताने झेलती हूं मगर अब कोई फर्क नहीं पड़ता। अब भी अगर गाड़ी का स्टार्ट कहीं बंद हो जाये तो लोग हॉर्न बजा-बजाकर परेशान कर देते हैं और कहते हैं कि क्यों यह महिला कैब चला रही है। ऐसे लोगों का मानना होता है कि अगर महिला कोई भी वाहन चला रही है तो वह गलत ही चलायेगी। हालांकि अब इस तरह की बाताें पर अ​धिक ध्यान नहीं देती हूं जिस कारण अब तक मैंने लगभग 5,000 ट्रिप पूरे कर लिये हैं।’

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