आधुनिकता के आगे रो रही है सुराही, 40% घटा बाजार | Sanmarg

आधुनिकता के आगे रो रही है सुराही, 40% घटा बाजार

कोलकाता : चिलचिलाती गर्मी में सूखे कंठ को तर करने के लिए घड़ों का शीतल जल मिल जाए तो क्या कहना। आमतौर पर गर्मियों में ठंडे पानी का प्राचीन स्रोत मिट्टी से बना मटका अब घरों से दूर हो रहा है। अब घरों में मटकों की जगह फ्रीज, आरओ फिल्टर, पानी की केन ने ले ली है, जिसके चलते मिट्टी के बर्तन बनाने वालों की बिक्री कम हो गई है। आधुनिकता के इस दौर में लोग मटके और सुराहियों की जगह ज्यादातर फ्रीज का इस्तेमाल करने लगे हैं। ऐसे में फ्रीज की बिक्री काफी ज्यादा बढ़ गई है, मगर सुराही की बिक्री में जितनी उछाल आनी चाहिए उतनी नहीं आयी है। इसकी वजह यह है कि लोग सुराही युग में फिर से लौटना नहीं चाह रहे हैं। फ्रीज की बढ़ती मांग से मटके की बिक्री में लगभग 40 से 50% की कमी आई है। एक समय ऐसा था जब मटका बेचने वालों की दुकानों पर गर्मी के मौसम में खरीददारों की भीड़ लगी रहती थी, लेकिन आजकल मटका बेचने वाले सुबह से शाम तक कुछ गिने-चुने मटके ही बेच पाते हैं। मटका बेचने वालों ने बताया कि एक जमाना था जब घर-घर में मटके का प्रयोग होता था, मगर आजकल लोग मटके का उपयोग नहीं करते हैं।

क्या कहा मटका बेचने वालों ने

मटका बेच रही एक महिला पुष्पा दास ने सन्मार्ग से कहा कि कुछ सालों में मटके की बिक्री बहुत कम हो गयी है। उनके पास 50 से लेकर 150 रुपये तक के घड़े और मटके हैं। उन्होंने कहा कि पहले बहुत सारे लोग प्रतिदिन सुराही खरीदने आते थे, मगर अब 3 से 4 ग्राहक आते हैं। दुकानदार सयोन चटर्जी ने कहा कि समय बदलने के साथ ही मिट्टी से बने बर्तनों की बिक्री थोड़ी कम हो गई है। पहले की तुलना में करीब 40% बिक्री कम हो गई है।

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