एक दिन माँ पार्वती ने शिव को समाधि में रत देखकर विचार किया ,महादेव दिन-रात तपस्या करते रहते हैं ,जरा देखूं तो सही उनका ध्यान कैसा है ?.. कहीं वे ढोंग तो नहीं कर रहे हैं ? पार्वती जी भीलनी का रूप धरकर वहां पहुंची, जहां मृगचर्म पर बैठे कैलासपति ध्यान कर रहे थे।
भीलनी के पैरों की पायल की रुनझुन से शंकरजी की अधखुली आंखें पूरी खुल गयीं ,सामने अप्सरा सी सुंदर भीलनी को देखकर उन्होंने पूछा -‘हे देवि ,तुम कौन हो ? यहां क्यों आयी हो ?’
भीलनी ने सुबकते हुए कहा –‘मैं भीलनी हूं ,अपने पति भील को ढूंढ़ने आयी हूं। ‘
शंकरजी जो कि भीलनी की सुंदरता पर मोहित हो चुके थे ,ने कहा -‘तुम भील को ढूंढ़ना छोड़ो और मेरी बन जाओ। मैं तुम्हें अपनी रानी बनाकर रखूंगा। ‘
भीलनी ,यह सुनकर हंसने लगी और बोली -‘मुझे तुमसे डर लगता है। माथे पर यह देखो ! कितनी जटाएं हैं ? गले में विषधर सर्प लटक रहे हैं ?’
शंकर बोलें –‘तुम मेरी बन जाओगी तो मैं इन्हे हटा दूंगा और सिर पर पगड़ी धारण कर लूंगा। ‘
भीलनी बोली ==’लेकिन तुम्हारे तो पहले से दो पत्नी हैं ,फिर मुझे कहां ले जाओगे ?’
महादेव ने कहा -‘पार्वती को तो उसके पीहर भेज दूंगा और गंगा तुम्हारी सेवा में रहेगी।
इस प्रकार भोले भण्डारी भीलनी के रूप सौंदर्य पर मंत्र -मुग्ध हो उसे अपना बनाने के लिए आजिजी करने लगें। भीलनी ने अंत में कहा -‘ठीक है ,मैं तुम्हारी बन जाऊंगी ,पर मेरी एक शर्त है ,उसे तुम पूरा कर दो। ‘
भावविभोर होकर शंकर ने पूछा -‘देवि ,क्या शर्त है ? मैं तुम्हारी हर शर्त को पूरा करूंगा। ‘
भीलनी भेदभरी मुस्कान सहित बोली –‘मेरा भील नाचकर मुझे प्रसन्न करता है। तुम भी नाचो और मुझे रिझाओ ,प्रसन्न करो ,तो मैं तुम्हारी बन जाऊंगी। ‘
और शंकरजी नाचने लगे … उधर भीलनी अपने असली स्वरूप में, पार्वती बनकर पूछने लगी -‘क्यों स्वामी !भीलनी चाहिए न ?’
शंकरजी शर्म से पानी-पानी हो पार्वती से क्षमा मांगने लगे। उन्हें मनाने के लिए अनुनय-विनय करने लगे। जब पार्वती नहीं मानी तब महादेव ने कहा ‘प्रिया !मैंने तो अपने अंतर्मन से जान लिया था कि भीलनी के रूप में तुम ही हो। इसलिए मैंने भी हंसी-ठिठौली के लिए ऐसा कौतुक किया था। ‘
इस पर शैलसुता हंस पड़ी क्योंकि वे जानती थी कि उनके पिछले जन्म में सती रूप में ,जब सीता का रूप धरकर वन में सीता को ढूंढ़ते युगल भ्राता राम-लक्ष्मण के पास परीक्षा लेने का अपराध किया था तो कैसे भोलेनाथ ने उनका परित्याग कर दिया था फिर उन्हें पुनः पति रूप में पाने के लिए पुनर्जन्म लेकर कितनी कठिन तपस्या करनी पड़ी थी तब जाकर शिवशंकर को पति रूप में पार्वती जी ने पाया था। यह सब स्मरण होने पर पार्वती ने अपने स्वामी की लीलाओं और उनके ईष्टदेव को श्रद्धा से प्रणाम किया तो आशुतोष अपनी प्रिया को देखकर मंद-मंद मुस्कराने लगे और मैना की पुत्री के कपोल लाज से आरक्त हो गये। अन्जु सिंगड़ोदिया
जब भीलनी के आगे शंकर नाचने लगे
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