सोनबरसा जंगल में खरगोश की दुकान थी। वह ईमानदार और मेहनती था। सियार और भालू भी दुकानदारी करते थे। दोनों बहुत बेईमान और ईर्ष्यालु थे। हमेशा खरगोश को नीचा दिखाने की सोचते थे।
यदि खरगोश किसी चीज को 5 रूपए में बेचता तो सियार और भालू उसे 3 रुपए में बेच देते। देखते-देखते खरगोश की दुकानदारी चौपट होने लगी।
खरगोश को चिंतित देख एक दिन चूहे ने पूछा, ‘क्या बात है, आजकल तुम परेशान दिखाई देते हो?’
खरगोश ने चूहे को सारी बात कह सुनाई।
चूहा बोला, ‘जंगल में वकील पेंग्विन रहता है। सुना है, अच्छी सलाह दे कर वह सब की समस्याएं हल करता है। क्यों न हम उसके पास चलें।’
अगले दिन दोनों वकील पेंग्विन के घर पर पहुंच गए। खरगोश ने उस को अपना कष्ट बताया।
वकील पेंग्विन कुछ देर सोचता रहा। फिर बोला, ‘खरगोश भाई, तुम्हारी समस्या का समाधान हो सकता है। तरीका यही है कि सियार और भालू दोनों साझेदारी में दुकानदारी शुरू कर दें।’
खरगोश और चूहा घर लौट आए। खरगोश ने चूहे से कहा, ‘चूहा भाई, कोई ऐसा उपाय करो जिस से सियार और भालू साझेदारी में दुकानकारी करने लगें।’
‘तुम उस की फिक्र मत करो। मैं उनकी तैयार कर लूंगा।’ चूहा बोला।
दूसरे दिन चूहा सियार और भालू से मिला। बोला, ‘तुम्हारे कारण खरगोश की दुकानदारी दिन प्रतिदिन चौपट होती जा रही है। यदि तुम दोनों साझेदारी में दुकान शुरू कर दो तो उस के भूखों मरने की नौबत आ सकती है।’
सियार और भालू को चूहे की बात जंच गई। अगले ही दिन से दोनों ने साझेदारी में दुकान शुरू कर दी दोनों ने तय किया कि सियार दुकान में बैठेगा और भालू बाजार से थोक खरीदारी कर के लाएगा लेकिन दोनों एक नंबर के बेईमान थे।
सियार दुकान में जितनी बिक्री आती, उस में से बहुत सारा पैसा अपने पास रख लेता और भालू को रोज घाटा बताता।
भालू बहुत परेशान था। सोचता था, ‘मैं इतनी मेहनत कर के थोक बाजार से वस्तुएं खरीद कर लाता हूं पर सियार के कारण दुकानदारी में घाटा ही हो रहा है। वह जरूर बेईमानी करता है।
अब भालू ने भी अपनी जेब गरम करने की सोची। वह समान खरीदारी करने के लिए जो पैसा लेता, उस में से आधा बचा लेता, बाकी पैसों से घटिया सामान खरीद कर ले आता।
ग्राहक जब दुकान पर सामान खरीदने आते तो वे सियार से घटिया सामानों की शिकायत करते। धीरे-धीरे जानवरों ने उनकी दुकान से सामान खरीदना बंद कर दिया।
इस तरह सियार और भालू का धंधा चौपट होने लगा। सियार सोचने लगा, ‘भालू सामान खरीदने के लिए ढेर सारे रूपये लेता है। इसके बावजूद ग्राहक सामानों की घटिया किस्म की शिकायत करते हैं। लगता है, वह बेईमानी पर उतर आया है।’
उस ने एक दिन भालू से कहा, ‘तुम सामान खरीदारी के लिए इतने सारे रुपये लेते हो, फिर भी दुकान आ कर ग्राहक सामानों की घटिया किस्म की शिकायतें करते हैं तुम्हारे कारण हमारी दुकानदारी चौपट होती जा रही है।’
यह सुन भालू ने भी उस की सारी पोल खोल दी। बोला, ‘तुम भी तो काफी पैसा अपनी जेब में रख लेते हो। मुझे झूठ मूठ का घाटा दिखाते हो। दुकानदारी में घाटे के लिए तुम भी जिम्मेदार हो।’
बस फिर क्या था। अब तो छोटी छोटी बातों को लेकर वे एक दूसरे से लड़ने लगे। जंगल में उन दोनों के झगड़े की बात तो फैल ही चुकी थी। उन की बेईमानी का भी भांडा फूट गया। वह दिन भी आया जब उन की दुकान बिल्कुल ठप्प हो गई। उधर खरगोश का व्यापार उस की मेहनत और ईमानदारी के कारण फिर से चमक उठा। एक दिन खरगोश और चूहा वकील पेंग्विन का धन्यवाद करने उसके घर गए।
खरगोश ने वकील को सारी घटना बताई यह सुन कर वकील पेंग्विन बोला, ‘बेईमानों के बीच साझेदारी का यही परिणाम होता है।’ नरेंद्र देवांगन(उर्वशी)
साझे की दुकानदारी
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