हर साल 31 मई को ‘विश्व तंबाकू निषेध दिवस’ मनाया जाता है। ‘विश्व तंबाकू निषेध दिवस’ मनाने का मुख्य उद्देश्य तंबाकू के खतरों और स्वास्थ्य पर इसके नकारात्मक प्रभावों के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाना है। इस अभियान को बल देने के लिए हर वर्ष इसकी थीम रखी जाती है। इस वर्ष की थीम है ‘हमें भोजन चाहिए, तंबाकू नहीं’।
कोलकाता : आधुनिक युग में मनुष्य ने बीड़ी-सिगरेट, चाय-कॉफी, सोडा कोला, शराब, चाय-समोसा आदि सभी वस्तुएं फैशन के रूप में अपना रखी हैं। खुद तो इनका प्रयोग करते ही हैं, मेहमानों को भी आदर स्वरूप सेवन कराते हैं। इनमें बीड़ी-सिगरेट का चलन तो बहुतायत से होता है। बीड़ी-सिगरेट गरीब-अमीर, पढ़ा लिखा-अनपढ़, सभी प्रयोग में लाते हैं। प्रत्येक मनुष्य इसके गुण-अवगुण भली-भांति जानते हुए भी इसको मुंह लगाये रहते हैं।तंबाकू में पाये जाने वाले रासायनिक यौगिक बहुत खतरनाक होते हैं। तंबाकू में फरफ्युरल, सलफ्रेटेड, रबीडाइन, निकोटिन आदि रासायनिक यौगिक पाये जाते हैं। इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जिनका लेप अगर चूहों पर कर दिया जाये तो उन्हें त्वचा का कैंसर हो जाता है। तंबाकू की कुछ बूंदें अर्क के रूप में अगर कुत्ते या बिल्ली को पिला दी जायें तो वे मर भी सकते हैं।तम्बाकू का सेवन चाहे बीड़ी-सिगरेट के रूप में किया जाय अथवा खैनी या किसी अन्य रूप में, दोनों ही दशा में यह हानिकारक है। विशेषज्ञों की राय में धूम्रपान करने वालों की उम्र 7 वर्ष तक कम हो जाती है। तम्बाकू से होने वाली बीमारियों में कैंसर, खांसी, क्षयरोग, गले की बीमारी, नपुंसकता, अंधापन, दांतों का झड़ना, बहरापन और लकवा प्रमुख हैं।अमरीकी शोध पत्रिका ‘जर्नल ऑफ न्यूरो सर्जरी’ की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार बीड़ी और तम्बाकू पीने वालों को ब्रेन हैमरेज एवं ब्रेन-अटैक का खतरा 27 प्रतिशत तक ज्यादा रहता है। वरिष्ठ चिकित्सकों ने भी लोगों को आगाह किया है कि वे धूम्रपान से बचें क्योंकि इससे रक्त-धमनियां सिकुड़ने लगती हैं, फलत: दिमाग की नसें फट सकती हैं और व्यक्ति अकाल मृत्यु के गाल में समा सकता है। तम्बाकू के अन्य दोषों एवं तज्जनित रोगों तथा समस्याओं की लम्बी सूची है। बीड़ी-तम्बाकू के सेवन करने से नकारात्मक प्रवृत्ति को भी बढ़ावा मिलता है। धूम्रपान करने वाले के चेहरे पर कभी भी तेज और सौंदर्य प्रकट नहीं होता। पारिवारिक झगड़ों के कारणों में अस्सी फीसदी कारण नशाबाजी ही होता है। धूम्रपान करने वालों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव का असर उनकी संतान पर भी पड़ता है। नशाबाजों की बुद्धि भ्रमित, विकृत और विषाक्त हो जाती है तथा वे छल-कपट और झूठ का आश्रय लेकर जीते हैं। ईमानदारी, वफादारी, सज्जनता और मधुर व्यवहार की आशा उससे नहीं की जा सकती। इस प्रकार वे समाज में भी सम्मान नहीं प्राप्त कर सकते। मनुष्य समझदार प्राणी होकर भी इसे मुंह लगाये हुए है। आश्चर्य का विषय यह है िक तम्बाकू खाने-पीने वाले स्वयं जानते हैं कि वे हानिकारक पदार्थ का सेवन कर रहे हैं।गुटका, खैनी, तम्बाकू, बीड़ी-सिगरेट को छोड़ने के लिए सबसे जरूरी है कि आदमी अपनी दिनचर्या बदले। प्रतिदिन आधा घंटा अच्छी पुस्तकें पढ़ें। भगवान की पूजा, बागवानी एवं बच्चों को पढ़ाने-लिखाने में अपना मन लगाकर धूम्रपान से काफी हद तक बचा जा सकता है। पत्नियों का योगदान भी नशेबाज पतियों को काफी तादाद में नशामुक्त कर सकता है। जब तलब महसूस हो, तब सौंफ, इलायची, धनिया, सोंठ, मुलहठी, आदि चबाये जा सकते हैं। योग्य चिकित्सक और वैद्य भी आपको नशा छुड़ाने में मदद कर सकते हैं।धूम्रपान न करने में ही भलाई है क्योंकि स्वास्थ्य ही मनुष्य का गहना है। धूम्रपान की आदत घातक बीमारियो को दावत है।