कोलकाता: स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) से पीड़ित 18 महीने के बच्चे सौम्यजीत पॉल को NRS मेडिकल कॉलेज अस्पताल में जीन थेरेपी के माध्यम से नया जीवन मिला है। इस सरकारी अस्पताल ने बच्चे के इलाज के लिए विश्व की सबसे मंहगी दवा जोलगेन्स्मा का इस्तेमाल किया, जिसके केवल एक डोज की कीमत 17.5 करोड़ रुपये है। राज्य के सरकारी अस्पताल में यह इस तरह का यह पहला इलाज है।
मासूम के पिता रणजीत पेशे से हैं सुनार
हालांकि, सौम्यजीत राज्य में ये इलाज पाने वाले दूसरे मरीज हैं। पहला इलाज पिछले साल अगस्त में पीयरलेस अस्पताल में किया गया था। SMA एक दुर्लभ विकार है जो मांसपेशियों को नियंत्रित करने वाले मोटर न्यूरॉन्स को प्रभावित करता है। इस बिमारी को केवल चिकित्सा के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है। एसएमए से ग्रसित मरीज के मांसपेशियों की प्रगती कमजोर पड़ने लगती है। मरीज के हाथ, पैर और श्वसन तंत्र विशेष रूप से प्रभावित होते हैं। हावड़ा के श्यामपुर के एक गांव का निवासी सौम्यजीत के पिता रणजीत पाल पेशे से एक सुनार हैं।
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बीते डेढ़ साल चल रहा मासूम का इलाज
सौम्यजीत पॉल का इलाज बीते डेढ साल से एनआरएस अस्पताल में किया जा रहा था। मात्र 6 महीने की आयु में उसे SMA से पीड़ित पाया गया था। तभी से एनआरएस के डॉक्टर बच्चे को जीन थेरेपी देने की कोशिश कर रहे थे। आखिरकार डॉ. जसोधरा चौधरी की सहायता से नि:शुल्क दवा प्राप्त हुई। जिसके बाद गत 2 मई को सौम्यजीत को एनआरएस मेडिकल कॉलेज में न्यूरोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर जसोधारा चौधरी के नेतृत्व में नोवार्टिस द्वारा ग्लोबल मैनेज्ड एक्सेस प्रोग्राम के तहत प्रदान की गई दवा से थेरेपी दी गई। क्योर एसएमए फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने कागजी कार्रवाई और आवेदन में मदद की। स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) एक जीन (एसएमएन1 जीन) में असामान्यता के कारण होने वाला विकार है, जिसे बचपन में ही डायग्नोस कर लिया जाता है। मांसपेशियां कमजोर होने के कारण बच्चा न तो चल सकता है, न बैठ सकता है और न ही सिर उठा सकता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार एसएमए का उपचार जीन थेरेपी से संभव है। लेकिन उच्च लागत और अनुमोदन के लिए लंबी प्रक्रिया के कारण, भारत में केवल 45 बच्चों को ही अब तक इस थेरेपी का लाभ प्राप्त हुआ है।
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