उड़न गिलहरी की विश्व भर में करीब 3 दर्जन जातियां हैं। तेज दौड़ती और उछलकूद मचाती गिलहरियां तो हमने प्राय: देखी हैं मगर उडऩे वाली गिलहरी नहीं। विश्व के अनेक भागों में उड़न गिलहरी या ‘फ्लाइंग स्क्विरल’ पाई जाती हैं। असल में उड़न गिलहरी उड़ती नहीं है। यह ‘ग्लाइडिंग’ जैसी कुछ करती है इस कारण इसे ‘फ्लाइंग स्क्विरल’ (उडऩ गिलहरी) कहते हैं।
उड़न गिलहरी के हाथों से लेकर पैरों तक एक पतली झिल्ली होती है। जब गिलहरी पेड़ या पहाड़ आदि कहीं ऊपर चढ़ी हो और चलकर नीचे न आना चाहे तो ग्लाइडिंग करती हुई नीचे आ सकती है। इसके लिए यह पैरों को (अगले दोनों पैर हाथों का काम भी करते हैं) को फैला लेती है। तब झिल्ली फैलकर छतरी का आकार बना देती है। अब गिलहरी ग्लाइडिंग कर आराम से नीचे आ सकती है। ग्लाइडिंग के वक्त गिलहरी की दुम संतुलन बनाने का काम करती है।
विश्व में लगभग ढाई सौ जातियों की गिलहरियां पाई जाती हैं। उनमें से सिर्फ तीन दर्जन के करीब ही उड़न गिलहरी हैं। बाकी गिलहरियां जहां दिन में कूद-फांद और तमाम अन्य क्रिया कलाप करती हैं वहीं उड़न गिलहरियां रात को भोजन आदि की तलाश में निकलती हैं। यह मेवे (नट्स), बीज, फल, कंद-मूल अंडे और कीड़े खाती हैं। सर्दियों में ये बहुत सुस्त रहती हैं और इन्हें नींद भी बहुत आती है। सर्दियां आने से पूर्व ही यह भोजन संग्रहित करके रख लेती हैं।
उडऩ गिलहरियों की अधिकतर प्रजातियां एशियाई देशों भारत, श्रीलंका, चीन, कोरिया, जापान आदि में पाई जाती हैं। ‘इंडियन स्क्विरल’ नामक उड़न गिलहरी श्रीलंका और भारत में पायी जाती है। इसके शरीर पर लंबी-काली धारियां होती हैं। यह सामाजिक प्राणी है और परिवार बसाकर रहती है। अयोध्या प्रसाद ‘भारती'(उर्वशी)
उड़ने वाली गिलहरी
Visited 612 times, 2 visit(s) today