

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बाल तस्करी को आधुनिक गुलामी का सबसे भयावह रूप करार देते हुए कहा कि यह अपराध गरिमा, शारीरिक अखंडता और प्रत्येक बच्चे को शोषण से बचाने के राज्य के सांविधानिक वादे की बुनियाद पर चोट करता है। कोर्ट ने बाल तस्करी की शिकार हुई नाबालिग लड़की की गवाही में मामूली विरोधाभासों को खारिज करते हुए कहा कि यौन तस्करी की नाबालिग पीड़ितों की गवाही को संवेदनशीलता और यथार्थवाद के साथ देखा जाना चाहिए। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने बाल तस्करी के मामलों में दिशा-निर्देश भी निर्धारित किये।
दोषियों की सजा बरकरार
दो जजों के पीठ ने बेंगलुरू में तस्करों के गिरोह द्वारा जबरन यौन शोषण की शिकार नाबालिग लड़की के मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि यह बेहद चिंताजनक हकीकत है। सुरक्षा कानूनों के बावजूद संगठित गिरोहों द्वारा बच्चों का यौन शोषण फल-फूल रहा है। पीठ ने इसके साथ ही अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम के तहत गिरोह के सदस्यों की सजा को बरकरार रखा। पीठ ने संगठित अपराध नेटवर्क की जटिल और बहुस्तरीय संरचना की ओर ध्यान दिलाया, जो नाबालिग पीड़ितों की भर्ती, परिवहन व शोषण के विभिन्न स्तरों पर काम करते हैं।
गवाही में मामूली विरोधाभासों के खिलाफ तर्कों को खारिज किया
बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि पीड़िता ने कोर्ट में दावा किया कि जबरन यौन संबंध बनाने से उसे चोटें आयीं और खून बहने लगा जबकि मजिस्ट्रेट के सामने दिये गये उसके पिछले बयान में इसका जिक्र नहीं था। बाल तस्करों की ओर से यह तर्क दिया गया कि तलाशी और बरामदगी के दौरान ITPA की धारा 15(2) का उल्लंघन किया गया।
इस धारा के अनुसार तलाशी के दौरान इलाके के दो या अधिक सम्मानित निवासियों (जिसमें कम से कम एक महिला हो) का उपस्थित होना अनिवार्य है। पीठ ने पीड़िता की गवाही में मामूली विरोधाभासों से जुड़े तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि यौन तस्करी की नाबालिग पीड़ितों की गवाही को संवेदनशीलता के साथ देखा जाना चाहिए।