फिलिस्तीन को अब मान्यता देगा ऑस्ट्रेलिया, जानें इसका पूरा इतिहास

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नई दिल्ली: ब्रिटेन, कनाडा और फ्रांस के बाद अब ऑस्ट्रेलिया फिलिस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता देगा। रिपोर्ट के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में फिलिस्तीन को मान्यता देगा।

फिलिस्तीन को एक देश के तौर पर मान्यता देना, एक स्तर पर प्रतीकात्मक है। यह फिलिस्तीनियों के अपने देश के अधिकारों के पीछे बढ़ती वैश्विक सहमति का संकेत देता है। अल्पावधि में, इसका गाजा में जमीनी स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

व्यावहारिक रूप से, वेस्ट बैंक, गाज़ा पट्टी और पूर्वी यरुशलम को मिलाकर एक भावी फिलिस्तीन देश का गठन कहीं अधिक कठिन है।

इजराइल सरकार ने द्विराष्ट्र के समाधान को खारिज कर दिया है और जी20 समूह के चार सदस्यों द्वारा फिलिस्तीन को मान्यता देने के कदम पर रोष व्यक्त किया है।

‘शर्मनाक है ये फैसला’

वहीं दूसरी तरफ इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस फैसले को ‘शर्मनाक’ बताया है। वहीं फिलिस्तीनी देश की परिकल्पना साकार होने से पहले किन राजनीतिक मुद्दों को हल करने की आवश्यकता है? और मान्यता का क्या मतलब है?

बस्तियों का तेजी से विस्तार

पहली समस्या यह है कि वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम में इजराइली बस्तियों का क्या किया जाए, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने अवैध घोषित किया है।

इजराइल ने 1967 से दो लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए ये बस्तियां बसाई हैं। यरुशलम के भविष्य के किसी भी विभाजन को रोकना और पर्याप्त क्षेत्र पर कब्ज़ा करना ताकि फिलिस्तीनी देश का निर्माण असंभव हो। वेस्ट बैंक में अब 500,000 से ज़्यादा और पूर्वी यरुशलम में 2,33,000 से ज्यादा लोग बसे हुए हैं।

फिलिस्तीनी पूर्वी यरुशलम को किसी भी भावी देश का एक अनिवार्य हिस्सा मानते हैं। वे इसे अपनी राजधानी बनाए बिना किसी देश को कभी स्वीकार नहीं करेंगे।

मई में, इजराइल सरकार ने अब तक के सबसे बड़े विस्तार की घोषणा करते हुए कहा कि वह वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम में 22 नई बस्तियां बसाएगी। रक्षा मंत्री इजराइल काट्ज़ ने इसे एक रणनीतिक कदम बताया जो फिलिस्तीन की स्थापना को रोकने के साथ-साथ इजराइल को खतरे में डाल सकता है।

भावी देश की भौगोलिक जटिलताएं

दूसरा मुद्दा फिलिस्तीन और इजराइल के बीच भावी सीमा का है। गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम की सीमाएं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमाएं नहीं बल्कि, ये 1948 के युद्ध की युद्धविराम रेखाएं हैं, जिन्हें ‘ग्रीन लाइन’ के नाम से जाना जाता है।

1948 के युद्धविराम के बाद इजराइल बना

इजराइल ने 1967 के छह-दिवसीय युद्ध में, वेस्ट बैंक, गाजा, पूर्वी यरुशलम, मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप (जो अब वापस आ गया है) और सीरिया की गोलान पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया। इसके बाद इजराइली सरकारों ने कब्ज़े वाले क्षेत्रों में बस्तियों के निर्माण के साथ-साथ विशाल बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल नए ‘ज़मीनी तथ्य’ गढ़ने के लिए किया है।

इजराइल इस क्षेत्र को ‘अपनी भूमि’ घोषित करके इस पर अपनी पकड़ मज़बूत कर रहा है, जिसका अर्थ है कि वह अब फिलिस्तीनी स्वामित्व को मान्यता नहीं देता, जिससे भविष्य में फलस्तीनी देश की संभावना और भी कम हो जाती है।

ऐसे फिलिस्तीनी लोगों को रोकता है इजराइल

इजराइल फिलिस्तीनी क्षेत्र पर और अधिक कब्जा करने के लिए अपनी ‘सेपरेशन वाल’ या अवरोध का भी उपयोग करता है, जो वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम से होकर लगभग 700 किमी तक फैला हुआ है। इस अवरोध को अलगाव के अन्य तरीकों जैसे कि चौकियां, मिट्टी के टीले, अवरोधक, खाइयां, सड़कों पर नाकेबंदी और अवरोध, और मिट्टी की दीवारों से पुख्ता किया जाता है।

वेस्ट बैंक में इजराइल के कब्जे का जटिल भूगोल भी है। 1990 के दशक के ओस्लो समझौते के तहत, पश्चिमी तट को तीन क्षेत्रों में विभाजित कर क्षेत्र ए, क्षेत्र बी और क्षेत्र सी नाम दिया गया था।

क्षेत्र ए और बी आज कई छोटे-छोटे हिस्सों में विभाजित हो गए हैं, और क्षेत्र सी पर इजराइल के नियंत्रण के कारण एक-दूसरे से अलग-थलग हैं। यह जानबूझकर किया गया यहूदी बस्ती बसावट वेस्ट बैंक में अलग-अलग नियम, कानून और मानदंड बनाता है, जिसका उद्देश्य फिलिस्तीनी क्षेत्रों के बीच आवागमन की स्वतंत्रता को रोकना और फिलिस्तीन की स्थापना में बाधा डालना है।

भावी देश पर शासन कौन करेगा?

पश्चिमी सरकारों ने फिलिस्तीन को मान्यता देने के लिए कुछ शर्तें रखी हैं, जो फिलिस्तीनियों से उनकी स्वतंत्रता एक तरह से छीन लेती हैं। प्रमुख शर्त यह है कि हमास भविष्य में फिलिस्तीन के शासन में कोई भूमिका नहीं निभाएगा। अरब लीग ने भी इसका समर्थन किया है, जिसने हमास से गाज़ा में निरस्त्रीकरण और सत्ता छोड़ने का आह्वान किया है।

फतह और हमास वर्तमान में फिलिस्तीनी राजनीति में केवल दो ऐसी धुरी हैं जो सरकार बनाने में सक्षम हैं। मई में हुए एक सर्वेक्षण में, गाज़ा और पश्चिमी तट दोनों में 32 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि वे हमास को पसंद करते हैं, जबकि 21 प्रतिशत ने फ़तह का समर्थन किया। एक-तिहाई ने दोनों में से किसी का भी समर्थन नहीं किया या उन्होंने कोई राय नहीं दी।

80% फिलिस्तीनी क्या चाहते हैं?

फिलिस्तीनी प्राधिकरण के नेता महमूद अब्बास बेहद अलोकप्रिय हैं और 80 प्रतिशत फिलिस्तीनी चाहते हैं कि वह इस्तीफा दे दें। फिलिस्तीन पर शासन के लिए पश्चिमी देशों का पसंदीदा विकल्प ‘सुधार वाला एक फिलिस्तीनी प्राधिकरण’ है। लेकिन अगर पश्चिमी शक्तियां खुद यह तय करती हैं कि सरकार के चयन में किसकी अहम भूमिका होगी और फिलिस्तीनियों को अपनी पसंद की सरकार चुनने का अवसर नहीं मिलता है, तो नयी सरकार को अवैध माना जाएगा। इससे इराक और अफगानिस्तान में अपनी पसंद की सरकारें बनाने के पश्चिमी प्रयासों की गलतियां दोहराने का जोखिम है। साथ ही इजराइल की इस दलील को भी मजबूती मिलेगी कि फिलिस्तीनी स्वयं शासन करने में असमर्थ हैं।

इन मुद्दों के समाधान में समय, धन और काफी प्रयास लगेगा। सवाल यह है कि फ्रांस, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया (और अन्य) के नेता फिलिस्तीन को मान्यता देने के परिणामस्वरूप एक वास्तविक देश सुनिश्चित करने के लिए कितनी राजनीतिक पूंजी खर्च करने को तैयार हैं?

ये मान्यता आखिर किसके लिए?

क्या होगा अगर इजराइल अपनी बस्तियों और पृथक्करण दीवार को हटाने से इनकार कर दें, और वेस्ट बैंक पर कब्ज़ा करने की दिशा में आगे बढ़े? ये पश्चिमी नेता क्या करने को तैयार या सक्षम हैं? अतीत में, वे द्विराष्ट्र के समाधान को आगे बढ़ाने से इजराइल के इनकार के बाद कड़े शब्दों में बयान जारी करने से ज़्यादा कुछ नहीं कर पाए।

पश्चिमी देशों की राजनीतिक इच्छाशक्ति और इजराइल को द्विराष्ट्र के समाधान पर सहमत होने के लिए मजबूर करने की वास्तविक शक्ति के बारे में इन संदेहों को देखते हुए, यह सवाल उठता है: मान्यता किसके लिए है?

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