कोलकाता : जब कूरियर कंपनी का डिलिवरी ब्वॉय कुम्हारटोली पहुंचा तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि उसके सामने जो पैकेट रखी है उसमें दुर्गा मां की प्रतिमा है क्योंकि पैकेट का वजन महज 70 किलो दिखा रहा था। उसने दोबारा चेक किया तो पैकेट उतने ही किलो का दिखा, तब जाकर उसकी नजर बगल में बन रही दुर्गा मां की प्रतिमा पर पड़ी तो उसने देखा के मूर्तिकार एक और ऐसी मूर्ति बना रहा था जो देखने में खुबसूरत थी व हल्की दिख रही थी। आमतौर पर कुम्हारटोली के मूर्तिकार जो मूर्तियां विदेश भेजते हैं वे उन मूर्तियों को फाइबर ग्लास से बनाते हैं। लेकिन सभी कलाकारों से अलग हैं वहां मौजूद कलाकार पशुपति रुद्रपाल जिन्होंने विदेशों में मूर्तियों की आपूर्ति के लिए समाचार पत्रों से मूर्तियां बनाईं।
पेपर पल्प का उपयोग कर बना डाली मां दुर्गा की मूर्ति
साल भर अखबारों से पेपर पल्प बनाई जाती है। पशुपति ने उस पल्प से मूर्तियां बनाईं और उन्हें दुबई और ओमान की राजधानी मस्कट में भेजा। फाइबर ग्लास से मूर्ति बनाने की तुलना में पेपर पल्प से मूर्ति बनाना अधिक श्रमसाध्य है। इसमें अधिक समय लगता है, फिर भी वे पेपर पल्प से ही मूर्तियां बनाना पसंद करते हैं। उन्होंने कहा, ”जो लोग फाइबर की मूर्तियां लेकर जाते हैं, वे कई सालों तक उस मूर्ति का इस्तेमाल भी करते हैं। पेपर पल्प की मूर्ति भी ऐसी ही है। अगर पानी नहीं लगे तो ये सालों साल चलेगी। कलाकार का कहना है कि अधिकांश भार संरचना के लिए है। मिट्टी की सजावट करने पर मूर्ति का वजन 100 किलो के करीब होता है और पोशाक का वजन 70 किलोग्राम से अधिक नहीं होगा”।
उन्होंने कहा, फाइबर के मामले में आमतौर पर एक सांचा होता है। उसी सांचे के अनुरूप मूर्तियां बनाई जाती हैं। कलाकार का कौशल सांचे बनाने तक ही सीमित है। लेकिन अगर आप कागज का मांडा लेकर काम करना चाहते हैं तो आपको मिट्टी की तरह बिल्कुल स्क्रैच से मूर्ति बनाने की शुरुआत करनी होगी। पशुपति कहते हैं, एक निश्चित मात्रा में कागज का मांडा बनाने के बाद मूर्ति बनाने का काम शुरू होता है। तीन मजदूरों से पांच फीट ऊंची मूर्ति बनाने में कम से कम दो से ढाई महीने का समय लगता है। मूर्ति पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है क्योंकि यह कागज से बनी है। कलाकार का यह भी कहना है कि अगर उचित देखभाल की जाए तो ऐसी मूर्ति को पांच साल तक आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है।
फाइबर का उपयोग सही नहीं
पारिस्थितिकीविज्ञानी स्वाति नंदी चक्रवर्ती ने फाइबर के बजाय कागज से मूर्तियां बनाने के इस प्रयास का स्वागत करते हुए कहा, “फाइबर एक प्रकार का पॉलीविनाइल है। हर किसी को यह सोचना चाहिए कि इसके स्थान पर अन्य कौन सी पर्यावरण-अनुकूल सामग्री का उपयोग किया जा सकता है। कागज का गूदा बहुत उपयोगी होता है। मूर्तियां बनाने की सामग्री के रूप में बेकार पड़े अखबारों का उपयोग बढ़ेगा। इस काम में पहले से ही विभिन्न प्रकार की घास का उपयोग किया जा रहा है।