Karwa Chauth 2023: करवा चौथ पर सरगी की परंपरा कैसे शुरू हुई, जानें सरगी की कथा | Sanmarg

Karwa Chauth 2023: करवा चौथ पर सरगी की परंपरा कैसे शुरू हुई, जानें सरगी की कथा

कोलकाता : कल यानी 1 नवंबर को करवा चौथ का व्रत किया जाएगा। इस व्रत में कई तरह की परंपराओं का पालन किया जाता है, जिसकी शुरुआत सरगी खाने से होती है। सरगी खाने की परंपरा में घर के बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद शामिल होता है। करवा चौथ का व्रत पति पत्नी के आपसी प्रेम और विश्वास का प्रतीक है। यह व्रत पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला रखा जाता है। रात को चंद्रमा देखकर महिलाएं अपना व्रत तोड़ती हैं। यह व्रत बिना सरगी के अधूरा माना जाता है। जिस तरह रात में चंद्रमा का इंतजार रहता है, उसी तरह सरगी खाने के समय को जानने की भी चाहत रहती है। आइए जानते हैं करवा चौथ पर सरगी खाने की परंपरा कैसे शुरू हुई…
करवा चौथ पर सरगी खाने का समय
चतुर्थी तिथि का आरंभ 31 अक्टूबर को रात 9 बजकर 31 मिनट से हो रहा है और चतुर्थी तिथि का समापन 1 नवंबर को रात 9 बजकर 20 मिनट पर होगा। सरगी खाने का समय 1 नवंबर को सुबह 4 बजकर 49 मिनट से शुरू होकर 5 बजकर 41 मिनट तक रहेगा। यह समय सरगी खाने के लिए सर्वोत्तम रहेगा।
करवा चौथ तिथि और शुभ योग
चतुर्थी तिथि का आरंभ – 31 अक्टूबर, रात 9 बजकर 31 मिनट से
चतुर्थी तिथि का समापन – 1 नवंबर, रात 9 बजकर 20 मिनट
उदया तिथि को मानते हुए चतुर्थी तिथि 1 नवंबर दिन बुधवार को है इसलिए यह व्रत 1 नवंबर को ही रखा जाएगा। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, शिव योग और परिघ योग जैसे महायोग बन रहे हैं, जिससे इस दिन का महत्व भी बढ़ गया है।
सरगी का महत्व
करवा चौथ के दिन सास अपनी बहुओं के लिए सरगी बनाती हैं और बहुएं इसे खाकर व्रत शुरू करती है। इसके साथ ही सास अपनी बहु को श्रृंगार का सामान भी भेंट करती हैं। दरअसल सरगी बहु के लिए सास का प्रेम और आशीर्वाद होता है। सरगी खाने के बाद महिलाएं ऊर्जावान महसूस करती हैं और व्रत में कोई समस्या नहीं होती है। बहुओं के लिए सास द्वारा तैयार किया गया भोजन ही सरगी कहलाता है।
सरगी की पौराणिक कथा
सरगी को लेकर एक पौराणिक कथा है बताया जाता है माता पार्वती ने करवा चौथ का व्रत किया था। देवी पार्वती की कई सास नहीं थी इसलिए मायके से माता मैना ने ही माता पार्वती को सरगी दी थी। इसलिए विवाह के पहले वर्ष में मायके से सरगी देने की भी परंपरा रही है। जबकि एक अन्य कथा के अनुसार, जब द्रौपदी ने पांडवों के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था तब इनकी सास माता कुंती ने सरगी दी थी। इस तरह मायका और ससुराल से सरगी की परंपरा शुरू हुई।

 

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