नई दिल्ली : भाजपा ने राहुल और प्रियंका गांधी के रिश्ते पर तंज कसते हुए एक वीडियो जारी किया है। इसके कैप्शन में लिखा- राहुल गांधी और प्रियंका का रिश्ता एक आम भाई-बहन जैसा नहीं है। प्रियंका राहुल से तेज हैं, पर राहुल के इशारे पर ही पार्टी नाच रही है, सोनिया गांधी भी पूरी तरह राहुल के साथ हैं। घमंडिया गठबंधन की मीटिंग से प्रियंका का गायब होना यूं ही नहीं है। बहन का इस्तेमाल सिर्फ चुनाव प्रचार के लिए किया जा रहा है।
पार्टी में प्रियंका गांधी का इस्तेमाल केवल चुनाव प्रचार के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कर्नाटक-हिमाचल में 28 से ज्यादा रैलियां कीं। इसके बावजूद जीत का श्रेय राहुल को दे दिया जाता है, जबकि वो कांग्रेस पार्टी को 39 बार हरवा चुके हैं।
1. बहन का इस्तेमाल केवल चुनाव के लिए
2019 में राहुल गांधी औपचारिक रूप से राजनीति में आए, लेकिन उससे पहले से ही प्रियंका दादी इंदिरा की साड़ी पहनकर प्रचार कर रही थीं। ये सब परिवार के किसी न किसी सदस्य के लिए था। प्रियंका ने कर्नाटक और हिमाचल में 28 से ज्यादा रैलियां कीं और पार्टी की जीत में अहम भूमिका निभाई।
हिमाचल में कांग्रेस नेता भूपेश बघेल के साथ चुनाव की तैयारियों में जुटी रहीं। वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी को 39 बार हरवा चुके हैं। इसके बावजूद जीत का श्रेय राहुल को दे दिया जाता है।
2. राहुल-प्रियंका के बीच तकरार है
हमने तेजस्वी-तेज प्रताप को लड़ते देखा है। सुप्रिया सुले और अजित पवार के बीच तनाव देखा है। अखिलेश और शिवपाल दुश्मन बने बैठे हैं। ऐसी ही कुछ तकरार है राहुल और प्रियंका के बीच में। मां सोनिया और राहुल को पता है कि अगर प्रियंका गांधी को राजनीति में अवसर मिला तो पार्टी के सारे लोग उनकी तरफ हो जाएंगे।
भाजपा ने कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम् का वो बयान भी दिखाया, जिसमें वो कह रहे हैं कि अगर नरेंद्र मोदी को हराना है तो प्रियंका गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाना चाहिए।
3. प्रियंका को राजनीति में दबाए रखने की साजिश
राहुल अब समझ गए हैं कि बहन प्रियंका उनसे ज्यादा काबिल हैं। इसी वजह से गठबंधन I.N.D.I.A. की तीनों बैठक में वो बहन को साथ लेकर नहीं गए। जबकि पार्टी के छोटे-मोटे नेता भी इस मीटिंग में शामिल हुए थे। राहुल जिस तरह से इस बैठक से बहन को दूर रखते हैं, उससे पता चलता है कि यहां पर जलन का मामला है।
राहुल अपनी बहन प्रियंका से पार्टी के लिए प्रचार तो करवा लेते हैं, लेकिन उन्हें सांसदी के लिए सीट तक नहीं देते। जानबूझकर प्रियंका को वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाने की बात की जाती है, ताकि वो नरेंद्र मोदी से हार जाएं और उनका राजनीतिक करियर खत्म हो जाए।
4. राहुल पार्टी अध्यक्ष बने, प्रियंका को कुछ नहीं मिला
1989 लोकसभा चुनाव के दौरान अमेठी में प्रियंका ने अपने पिता राजीव गांधी के लिए प्रचार किया था। अब इस समय वो भाई के लिए प्रचार करती हैं। राहुल तो पार्टी के अध्यक्ष भी बन गए और प्रधानमंत्री की दावेदारी के सपने देख रहे हैं, लेकिन प्रियंका वहीं हैं, जहां पहले थीं।
5. प्रियंका को खेलना पड़ा दांव
जानकारों का कहना है कि प्रियंका ने ही राहुल को अपने बयान के लिए माफी न मांगने की सलाह दी थी। इसी वजह से उनकी सांसदी चली गई थी। राहुल भले ही पार्टी अध्यक्ष न हों, लेकिन कांग्रेस के सभी फैसले वही लेते हैं। राहुल-प्रियंका के बीच फूट साफ दिख रही है। इसी वजह से रक्षाबंधन के दिन राहुल की कलाई सूनी दिखी थी।