उत्तराखंड सरकार भालू के शीतनिद्रा में नहीं जाने से हैं चिंतित, सतर्कता के दिए निर्देश

उत्तराखंड सरकार वन्यजीवों से जुड़े शोध संस्थानों से विस्तृत अध्ययन करवाएगी ताकि यह पता चल सके कि भालू अपने प्राकृतवासों में शीतनिद्रा काल में क्यों नहीं गए।
उत्तराखंड सरकार भालू के शीतनिद्रा में नहीं जाने से हैं चिंतित, सतर्कता के दिए निर्देश
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ऋषिकेश: आधे से अधिक दिसंबर बीत जाने के बावजूद उत्तराखंड में अब तक भालुओं के शीतनिद्रा में नहीं जाने और आक्रामक होकर इंसानों पर हमला करने की कई घटनाओं के सामने आने से वन्यजीव विशेषज्ञ और राज्य सरकार चिंतित है। वन्यजीव विशेषज्ञों ने बताया कि भालू और सर्प प्रजातियां सर्दियों में शीतनिद्रा काल में चली जाती हैं और यह इनकी सहज प्रवृत्ति है। उन्होंने बताया कि शीतनिद्रा काल में जाने से पहले इन प्रजातियों के जीवों द्वारा शरीर में चर्बी इकठ्ठा करने के लिए प्रायः इनके व्यवहार में आक्रामकता देखी जाती रही है।

भालू बने पहेली

उन्होंने कहा कि हालांकि, ठंड के दौरान भालुओं के शीतनिद्रा में नहीं जाने तथा भ्रमणशील बने रहने जैसा असामान्य व्यवहार एक पहेली बन गया है। राज्य के वन मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि जलवायु परिवर्तन एक बहुत व्यापक कारण है जो अप्रत्याशित रूप से अपना असर छोड़ रहा है। उन्होंने प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में भालुओं के इंसानों पर हमले की घटनाओं को चिंताजनक बताते हुए कहा कि जंगली भालुओं का यह समय गहन शीतनिद्रा काल में रहने का है लेकिन कुछ जगह वे खेत खलियानों में घूम रहे हैं।

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भालू पर सरकार करेगी शोध

उनियाल ने कहा कि इसके कारणों की वजह जानने के लिए उत्तराखंड सरकार वन्यजीवों से जुड़े शोध संस्थानों से विस्तृत अध्ययन करवाएगी ताकि यह पता चल सके कि भालू अपने प्राकृतवासों में शीतनिद्रा काल में क्यों नहीं गए। उन्होंने कहा कि अध्ययन रिपोर्ट के निष्कर्षों के आधार पर प्रदेश में इस जनसमस्या को हल करने का प्रयास किया जाएगा।

जंगली भालुओं से बचने के लिए सतर्कता का निर्देश

उनियाल ने वन विभाग को राज्य के जंगलों से सटे आबादी क्षेत्रों में सघन गश्त करने के भी निर्देश दिए हैं तथा जनता से भी अतिरिक्त सतर्कता बरतने को कहा है। प्रदेश के वन विभाग के प्रमुख (हॉफ) रंजन कुमार मिश्रा ने कहा कि भालुओं द्वारा हमले की अधिकांश घटनाएं संरक्षित वन क्षेत्रों से बाहर हुई हैं और इसकी समीक्षा की जाएगी।

उन्होंने कहा कि जंगली भालुओं द्वारा वन क्षेत्र में स्थित अपने प्राकृतवासों को उपयोग में नहीं लाने के कारणों की जानकारी अध्ययन से ही पता चल पाएगी जिसके बाद उसके अनुसार कार्य योजना तैयार करके काम किया जाएगा।

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