न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने का कोई प्रस्ताव नहीं, सरकार ने राज्यसभा में किया स्पष्ट

न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने का कोई प्रस्ताव नहीं, सरकार ने राज्यसभा में किया स्पष्ट

रिक्त पदों और लंबित मामलों के समाधान पर जोर, सेवानिवृत्ति आयु में बदलाव से इनकार
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नई दिल्ली: सरकार ने बृहस्पतिवार को राज्यसभा में कहा कि देश की विभिन्न अदालतों में न्यायाधीशों की पद पर बने रहने की आयु सीमा बढ़ाने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है। उच्च सदन में विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने प्रश्नकाल के दौरान भाजपा के संजय सेठ द्वारा पूछे गये एक प्रश्न के उत्तर में यह बात कही। सेठ ने पूरक प्रश्न पूछते हुए सरकार का ध्यान दिलाया कि सरकार द्वारा स्वास्थ्य के क्षेत्र में उठाये गये विभिन्न कदमों से देश में नागरिकों की औसत आयु सीमा बढ़ गयी है।

विदेशों के न्यायधीशों का दिया गया हवाला

सेठ ने कहा कि अमेरिका में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश आजीवन सेवा देते हैं, जबकि ब्रिटेन, बेल्जियम, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में इनकी आयु 70 वर्ष तक होती है। उन्होंने कहा कि भारत में जिला अदालतों में न्यायाधीशों की आयु सीमा 60 वर्ष, उच्च न्यायालयों में 62 वर्ष और उच्चतम न्यायालय में 65 वर्ष है। उन्होंने सरकार से जानना चाहा कि अदालतों में लंबित मामलों की बड़ी संख्या को देखते हुए क्या वह न्यायाधीशों की पद पर बने रहने की आयु सीमा बढ़ाने पर विचार कर रही है।

अभी कोई ऐसा प्रस्ताव विचाराधीन नहीं

इसके जवाब में मेघवाल ने कहा, ‘‘अभी कोई ऐसा प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।’’ कानून मंत्री ने देश की अदालतों पर मामलों के भारी बोझ संबंधित पूरक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड बनाया है, जिसमें मामलों का विश्लेषण किया जाता है। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय में एक समिति बनी हुई है, जिसमें यह देखा जाता है कि 50 साल, 40 साल, 30 साल, 20 साल या कितने पुराने मामले हैं तथा उच्चतम न्यायालय ऐसे मामलों को जल्द निबटाने का प्रयास करता है।

कांग्रेस ने उठाए सवाल

कांग्रेस के शक्ति सिंह गोहिल ने कहा कि देश के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के 297 पद खाली पड़े हैं जिनमें गुजरात उच्च न्यायालय के 16 रिक्त पद शामिल हैं। उन्होंने सरकार से जानना चाहा कि इन खाली पड़े पदों को भरने के लिए क्या किया जा रहा है।

कॉलेजियम से प्रस्ताव आएगा तो विचार किया जायेगा

इस प्रश्न के उत्तर में मेघवाल ने सदन को बताया कि देश के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के कुल 1122 स्वीकृत पद हैं, जिनमें से अभी 825 पदों पर न्यायाधीश काम कर रहे हैं और 297 पद खाली पड़े हैं। उन्होंने कहा कि इनमें 97 पदों पर भर्ती प्रक्रिया चालू है तथा 200 पदों के लिए उच्च न्यायालय कॉलेजियम से प्रस्ताव अभी सरकार के पास आने हैं। मेघवाल ने सदन को आश्वासन दिया कि जब कॉलेजियम से प्रस्ताव आयेगा तो सरकार न्यायाधीशों के पदों को भरने के लिए अवश्य कार्रवाई करेगी।

लंबित मामलों को निबटाने के लिए क्या कदम उठाये जा रहे हैं - स्वाति मालीवाल

आम आदमी पार्टी की स्वाति मालीवाल ने पूरक प्रश्न पूछते हुए सरकार का ध्यान दिलाया कि देश में हर घंटे 51 महिलाओं के साथ अपराध होता है। उन्होंने सरकार से जानना चाहा कि देश के उच्च न्यायालयों में जो 63 लाख मामले हैं, उनको निबटाने तथा देश भर की अदालतों में न्यायाधीशों के रिक्त पदों को भरने के लिए क्या कदम उठाये जा रहे हैं।

कानून मंत्री ने इसका जवाब देते हुए कहा कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत ही देश में फास्ट ट्रैक अदालतें, पाक्सो अदालतें गठित की गयी हैं। उन्होंने कहा कि देश के 29 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में 400 ई-पाक्सो अदालतों के साथ 773 फास्ट ट्रैक अदालतें काम कर रही हैं।

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