बंधुआ मजदूर से महिला सरपंच तक का सफर, लोकतंत्र की मिसाल पुरुसाला लिंगम्मा

लिंगम्मा ने बताया कि वह और उनके परिवार के अन्य सदस्य बंधुआ मजदूर के रूप में मछली पकड़ने जाते थे।
बंधुआ मजदूर से महिला सरपंच तक का सफर, लोकतंत्र की मिसाल पुरुसाला लिंगम्मा
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हैदराबाद: बंधुआ मजदूर से गांव की सरपंच बनने तक का पुरुसाला लिंगम्मा का सफर लोकतंत्र की ताकत की मिसाल है। नागरकुरनूल जिले की चेंचू जनजाति की महिला लिंगम्मा हाल में तेलंगाना के ग्राम पंचायत चुनाव में अमरागिरि गांव की सरपंच चुनी गईं। लगभग 40 वर्षीय निरक्षर महिला लिंगम्मा बचपन से लेकर कई दशकों तक जिले के नल्लामाला जंगलों में बंधुआ मजदूरी किया करती थीं और उन्हें कई साल पहले सरकारी अधिकारियों ने बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराया था।

कर्ज ने बनाया बंधुआ मजदुर

लिंगम्मा ने शनिवार को बताया कि वह और उनके परिवार के अन्य सदस्य बंधुआ मजदूर के रूप में मछली पकड़ने जाते थे। उनके माता-पिता भी बंधुआ मजदूरी करते थे। उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “हमें यह भी नहीं पता था कि हम पर कितना कर्ज है। वे हमें जाल देते थे और हमें मछली पकड़ने जाना पड़ता था। उन दिनों हमारे पास खाने के लिए भी कुछ नहीं हुआ करता था।”

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गावं की प्रेरणा से उसने चुनाव लड़ा

लिंगम्मा ने कहा कि 300 की आबादी वाला उनका गांव स्थानीय निकाय चुनाव में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित था। गांव के अन्य निवासियों और स्थानीय अधिकारियों ने उन्हें चुनाव में उम्मीदवार बनने के लिए प्रेरित किया क्योंकि उन्होंने सामुदायिक कल्याण के लिए काम किया था। हालांकि, उन्हें चुनाव मैदान में अपने ही छोटे भाई से अप्रत्याशित मुकाबले का सामना करना पड़ा।

संबंधियों के बीच था मुकाबला

संबंधियों के बीच इस मुकाबले में लिंगम्मा ने जीत हासिल की। उन्होंने कहा कि इस चुनाव में कोई अन्य उम्मीदवार नहीं था। लिंगम्मा ने यह भी कहा कि उन्होंने अपनी बेटी को पढ़ाया, जो अब एक आंगनवाड़ी शिक्षक के रूप में काम कर रही है। लिंगम्मा ने अपने भविष्य के कार्यों के बारे में बताया कि वह गांव में सड़कें, पानी और बिजली जैसी सुविधाओं में सुधार करना चाहेंगी। तेलंगाना में ग्राम पंचायत चुनाव 11, 14 और 17 दिसंबर को तीन चरण में आयोजित किए गए थे।

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