हिंदू कानूनों के बौद्धों पर लागू होने के खिलाफ याचिका, विचार का निर्देश

गौरतलब है कि बौद्ध भी हिंदुओं के लिए बने कानूनों के दायरे में आते हैं, जैसे कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956....
Supreme Court of India
Supreme Court of India
Published on

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को विधि आयोग से एक बौद्ध समूह की उस याचिका पर विचार करने को कहा है, जिसमें कहा गया है कि बौद्धों पर भी लागू होने वाले ‘हिंदू पर्सनल लॉ’ के कुछ प्रावधान धर्म की स्वतंत्रता समेत उनके मौलिक अधिकारों के खिलाफ हैं।

भारत के प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची के पीठ ने ‘बौद्ध पर्सनल लॉ एक्शन कमेटी’ की याचिका पर सुनवाई करते हुए विधि आयोग से इसे एक प्रतिवेदन के रूप में मानने को कहा कि कुछ मौजूदा कानूनी प्रावधान बौद्ध समुदाय के मौलिक अधिकारों और सांस्कृतिक प्रथाओं के विपरीत हैं,जिसके मद्देनजर इसमें संवैधानिक और वैधानिक बदलावों की आवश्यकता है।

गौरतलब है कि बौद्ध भी हिंदुओं के लिए बने कानूनों के दायरे में आते हैं, जैसे कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956, हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 और हिंदू दत्तक ग्रहण और देखभाल अधिनियम, 1956 द्वारा निर्दिष्ट है। संविधान के अनुच्छेद 25 में बौद्धों, जैनियों और सिखों को इन कानूनों के प्रयोजनों के लिए ‘हिंदू’ की परिभाषा में शामिल किया गया है।

मामले की सुनवाई शुरू होने पर CJI ने याचिका में मांगी गयी राहत की प्रकृति पर सवाल उठाया। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने पूछा, ‘आप संविधान और व्यक्तिगत कानूनों में संशोधन के लिए एक आदेश चाहते हैं? आपने सरकारी प्राधिकरण से कहां संपर्क किया है? आप चाहते हैं कि हम अब केशवानंद भारती पर विचार करें और बुनियादी ढांचे में भी संशोधन करें।’ याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि बौद्ध एक अलग समुदाय है और यह मुद्दा कई बार उठाया गया है।

संबंधित समाचार

No stories found.

कोलकाता सिटी

No stories found.

खेल

No stories found.
logo
Sanmarg Hindi daily
sanmarg.in