

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कुछ नाम ऐसे हैं जो अमर हो गए हैं। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और रोशन सिंह ऐसे ही वीर थे जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी। ये तीनों हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के सदस्य थे और काकोरी कांड में उनकी भूमिका ने इतिहास रच दिया। उनका बलिदान आज भी युवाओं को प्रेरित करता है, जो एकता और देशभक्ति का प्रतीक है।
जीवन यात्रा: विविध पृष्ठभूमि से एक लक्ष्य
राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 1897 में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ। वे कवि, लेखक और क्रांतिकारी थे, जिनकी रचनाएं जैसे 'सरफरोशी की तमन्ना' आज भी गूंजती हैं। अशफाक उल्ला खां, 1900 में जन्मे, मुस्लिम परिवार से थे और कविता में रुचि रखते थे। वे हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक बने। रोशन सिंह, 1892 में जन्मे, एक साधारण किसान परिवार से थे लेकिन उनकी बहादुरी असाधारण थी। तीनों की पृष्ठभूमि अलग थी, लेकिन स्वतंत्रता का सपना उन्हें एक सूत्र में बांधता था।
काकोरी कांड: क्रांति की चिंगारी
1925 में काकोरी रेलवे स्टेशन के पास ब्रिटिश ट्रेन से सरकारी खजाना लूटने का यह कांड HRA की योजना थी। बिस्मिल ने योजना बनाई, अशफाक ने सहयोग दिया और रोशन ने सुरक्षा का दायित्व संभाला। यह लूट स्वतंत्रता आंदोलन के लिए धन जुटाने का माध्यम थी। हालांकि, गिरफ्तारी के बाद मुकदमा चला और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई, लेकिन इस घटना ने पूरे देश में क्रांति की लहर पैदा कर दी।
बलिदान का क्षण: फांसी की अमर कहानी
19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल में रोशन सिंह को फांसी दी गई, जबकि बिस्मिल और अशफाक को 19 दिसंबर को ही लेकिन अलग-अलग जेलों मेंफांसी हुई। फांसी से पहले बिस्मिल ने 'वंदे मातरम' गाया, अशफाक ने कुरान पढ़ी और रोशन ने शांत भाव से अंतिम क्षण बिताए। उनका बलिदान हिंदू-मुस्लिम एकता का उदाहरण है, जो दिखाता है कि देशभक्ति धर्म से ऊपर है।
विरासत: प्रेरणा का स्रोत
आज इन शहीदों की याद में स्मारक बने हैं और उनकी कहानी स्कूलों में पढ़ाई जाती है। वे हमें सिखाते हैं कि स्वतंत्रता की कीमत चुकानी पड़ती है। उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया; यह 1947 की आजादी की नींव बना। युवा पीढ़ी को इनसे सीखना चाहिए कि एकता में शक्ति है।